केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि कृषि क्षेत्र उतना प्रैक्टिकल (Viable) नहीं है जितना होना चाहिए. केंद्रीय सड़क और परिवहन मंत्री गडकरी ने एक प्रोग्राम में कहा कि देश की जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी घटकर 14 परसेंट पर आ गई है. कई साल से गिरावट का सिलसिला जारी है. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि खेती अब आर्थिक तौर पर उतनी प्रैक्टिकल नहीं है जितनी होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि जीडीपी में खेती की हिस्सेदारी 22 परसेंट तक जा सकती है, अगर हम तेलों की आधी मात्रा को बायोफ्यूल से रिप्लेस कर दें.
गडकरी ने कहा, "हमारे सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र का योगदान 22 प्रतिशत, सेवा क्षेत्र का 52-54 प्रतिशत और कृषि क्षेत्र का योगदान केवल 14 प्रतिशत है. जब हमें आजादी मिली थी, तो महात्मा गांधी कहते थे कि हमारा देश गांवों में बसता है, क्योंकि उस समय 90 प्रतिशत आबादी गांवों में थी. आज, उस आबादी का 25-30 प्रतिशत हिस्सा पलायन कर चुका है."
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि लोग दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और बेंगलुरु जैसे महानगरों में चले गए हैं और उनमें से कई झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं, और उनका जीवन स्तर बहुत खराब है.
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जैव ईंधन यानी बायोफ्यूल उपलब्ध कराने के लिए कृषि क्षेत्र की क्षमता को बताते हुए मंत्री ने कहा कि किसी भी चीज की सफलता और किसी भी क्षेत्र में उसके अपनाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज टेक्नोलॉजी, आर्थिक व्यवहार्यता, कच्चे माल की उपलब्धता और तैयार प्रोडक्ट की मार्केटिंग क्षमता पर निर्भर है.
गडकरी ने कहा, "हम लोगों से यह नहीं कह सकते कि अगर आप पेट्रोल पर 10,000 रुपये खर्च कर रहे हैं, तो पर्यावरण को बचाने के लिए 15,000 रुपये खर्च करें. यह संभव नहीं है. अगर लोगों को कोई समाधान देना है, तो वह लागत प्रभावी, आयात का विकल्प, प्रदूषण मुक्त और स्वदेशी होना चाहिए." उन्होंने आगे कहा कि "आप बांस से बने कपड़ों की मार्केटिंग सिर्फ लोगों से यह कहकर नहीं कर सकते कि वे इसे खरीदें, क्योंकि यह किसी आदिवासी ने बनाया है."
उन्होंने कहा कि कई बंजर जमीन हैं जहां फसलें उगाई जा सकती हैं. लेकिन केवल गेहूं, धान, मक्का या गन्ना जैसी फसलों के माध्यम से कृषि आय बढ़ाने की एक सीमा है. उन्होंने कहा कि बांस जैसी फसलों में वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत, चाहे इथेनॉल हो या सफेद कोयला, का उत्पादन करने के लिए एक प्रमुख कच्चा माल बनने की क्षमता है.
गडकरी ने कहा, "हमें मांग और आपूर्ति के बारे में सोचना होगा, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था में बहुत महत्वपूर्ण हैं, जहां मक्का, चीनी या सोयाबीन जैसी वस्तुओं की कीमतें अमेरिका, ब्राजील और अर्जेंटीना द्वारा उनके बड़े उत्पादन आधार के कारण तय की जाती हैं."
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उन्होंने कहा, "वैकल्पिक (जैव) ईंधन भारत की अर्थव्यवस्था को बदल सकता है." उन्होंने कहा कि अगर तेलों के आयात पर खर्च होने वाले 22 लाख करोड़ रुपये को तेल के स्वदेशी स्रोत से रोक दिया जाए तो इससे भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी. उन्होंने कहा, "मैं कह रहा हूं कि एक दिन ऐसा आएगा जब कम से कम 10 लाख करोड़ रुपये (कच्चे तेल के आयात पर खर्च होने वाली विदेशी मुद्रा में से) किसानों के पास जाएंगे और उस दिन विकास में कृषि का हिस्सा 22 प्रतिशत से अधिक होगा. कोई भी व्यक्ति अपना गांव छोड़कर दिल्ली, मुंबई या कोलकाता नहीं आएगा."
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