बनारसी साड़ी (Banarasi saree) का इतिहास सदियों पुराना है. यूं तो इस साड़ी का पूरा काम हाथों से ही होता है, लेकिन आजकल पावर लूम के जरिए भी साड़ी बनाने का काम भी किया जा रहा है. बनारसी साड़ी के बारे में कहा जाता है कि ' दुल्हन के तन पे सजी तो सौभाग्य बनी, 'राज महलों में गई तो शान का प्रतीक बनी. बनारसी साड़ियां की खूबियां इतनी है कि इसको गिनना भी आसान नहीं है. इस साड़ी को बुनने में कई तरह की कारीगरी का प्रयोग होता है. इन्हीं में से एक है कढुआ रंगकाट कारीगरी इस कारीगरी के पूरे बनारस में गिने-चुने ही कारीगर हैं.
बनारसी साड़ी के कारीगर सुनील कुमार को 2019 में एक विशेष साड़ी के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित भी किया जा चुका है. सुनील कुमार ने बनारसी साड़ी के ऊपर महात्मा गांधी की 150 वी जयंती के उपलक्ष में उनकी पूरी जीवनी को उकेर दिया था. फिर क्या है यह साड़ी खूब चर्चाओं में रही. इस साड़ी को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला.आज भी सुनील कुमार इस बनारसी साड़ी को सहेज कर रखे हुए हैं.
बनारसी साड़ी (Banarasi saree) के बुनकर सुनील कुमार ने किसान तक को बताया कि उन्होंने महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के उपलक्ष में 2019 में अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए साड़ी पर ही महात्मा गांधी की पूरी जीवनी को उकेर दिया. उन्हें यह काम करने में 3 महीने से ज्यादा कर समय लगा. महात्मा गांधी ने पूरे विश्व में अपने कामों से एक अलग पहचान बनाई. मैंने भी उन्हें सम्मान देने के लिए साड़ी पर उनका जीवन चित्रण को उकेरने का काम किया है. पूरी साड़ी में महात्मा गांधी के चित्र से लेकर उनकी पूरी जीवनी लिखी हुई है.
बुनकर सुनील कुमार बताते हैं कि उन्होंने बनारसी साड़ी के ऊपर महात्मा गांधी की जीवनी को हाथों से उकेरने का काम किया है. इसमें रंग-बिरंगे रेशम के धागों के साथ-साथ दिन रात की कड़ी मेहनत भी शामिल है. उनके इसी काम को देखते हुए उन्हें 2019 में राष्ट्रीय पुरस्कार मिला, जिसमें उन्हें सम्मान पत्र के साथ-साथ डेढ़ लाख रुपए की नगद राशि भी मिली.
बनारसी साड़ी आज पूरे विश्व में मशहूर है. साड़ी की कड़वा कारीगरी पूरी तरीके से हाथ की कला है. इस कला में न तो किसी मशीन का इस्तेमाल होता है और नहीं पावर लूम का. यहां तक कि इसकी डिजाइन इसकी बूटी सब कुछ हाथ से ही कारीगरों द्वारा होता है. इस साड़ी में बूटीदार, आड़ा, जंगला, मीनाकारी जैसी डिजाइन कढुआ कारीगर करते हैं. इसलिए यह कारीगरी सबसे खास है और कढुआ साड़ी का दाम भी बाजार में सबसे ऊंचा रहता है. कढुआ रंगकाट कला के बुनकर सुनील कुमार ने किसान तक को बताया कि बनारसी साड़ी की कढुआ बुनाई सबसे मशहूर है. सैकड़ों वर्षो पुरानी यह कला उन्होंने अपने पिताजी से सीखी है. आज भी वह इस कला को पूरे विश्व में पहुंचाने का काम कर रहे हैं. उनके पास आज 45 हैंडलूम हैंं, जिन पर बनारसी साड़ियों को बनाने का काम डेढ़ सौ कारीगरों द्वारा किया जाता है.
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