Soil health भारत के कृषि विशेषज्ञों ने देशभर में उत्पादन बढ़ाने के लिए उसी रणनीति को अपनाने पर जोर दिया है जो अमेरिका और यूरोप में अपनाई जा रही है. उनकी मानें तो जिस तरह से इन देशों में एक सॉइल हेल्थ फ्रेमवर्क है, वैसा ही भारत में भी होना चाहिए. आपको बता दें कि एक सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ है कि भारत के अलग-अलग राज्यों की मिट्टी की उर्वरता में गिरावट आई है. पिछले काफी से विशेषज्ञ इसके लिए एक लगातार स्टडी और किसानों को सलाह देने की बात भी करते आ रहे हैं. इस मसले पर पिछले दिनों एक कार्यक्रम का आयोजन भी हुआ. इसमें पहुंचे विशेषज्ञों ने केमिकल फ्री खेती की अपील की है.
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लांट हेल्थ मैनेजमेंट (NIPHM) के डायरेक्टर-जनरल सागर हनुमान सिंह ने कहा है कि यूरोप और अमेरिका की सॉइल हेल्थ पॉलिसी की तरह, एक फॉर्मल नेशनल सॉइल हेल्थ फ्रेमवर्क की जरूरत है. उन्होंने कहा, 'केमिकल खेती ने मिट्टी को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. पौधों की सेहत और इंसानों की सेहत को अलग नहीं किया जा सकता. अब हमें नेशनल लेवल पर सॉइल हेल्थ पॉलिसी, गाइडलाइंस और मिट्टी को फिर से बेहतर बनाने वाले प्रोग्राम की जरूरत है.'
बुधवार को उन्होंने यह बात उस समय कही जब वह बायोएग्री 2025 को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि कीटनाशकों के ज्यादा इस्तेमाल से तेलंगाना की मिर्च सहित कई फसलें एक्सपोर्ट के लिए बेकार हो रही हैं और उन्होंने भारत के प्रोडक्ट्स को अवशेष-मुक्त और एक्सपोर्ट के लिए तैयार रखने के लिए तुरंत कार्रवाई करने का अनुरोध किया. कावेरी यूनिवर्सिटी के वाइस-चांसलर वी प्रवीण राव ने कहा कि पब्लिक संस्थानों और बायोलॉजिकल इंडस्ट्री के बीच सहयोग अब एग्रीकल्चर में बदलाव का मुख्य हिस्सा बनना चाहिए.
बायोएग्री इनपुट प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (BIPA) के प्रेसीडेंट जॉन पीटर ने कहा कि बायोलॉजिकल खेती भारत के लिए नई नहीं है. उन्होंने कहा, 'हमने आठ दशक पहले बायोलॉजिकल खेती की थी. फिर केमिकल का दौर आया. अब हमें इस ट्रेंड को पलटने और अपनी बायोलॉजिकल विरासत को वापस पाने की ज़रूरत है.' BIPA के सेक्रेटरी-जनरल वेंकटेश देवनूर ने बुधवार को एक बयान में कहा, 'हम श्रीलंका से शुरू करके विदेशों में विस्तार की संभावना तलाश रहे हैं और स्किल डेवलपमेंट के लिए कावेरी एग्री यूनिवर्सिटी के साथ एक MoU साइन किया है.'
यह भी पढ़ें-
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today