भारत और अमेरिका के बीच व्यापार पर बातचीत की डेडलाइन जुलाई में मुकर्रर है. उससे पहले दोनों देशों के बीच बातचीत का दौर कुछ और आगे खिंच गया है. दोनों देशों के आला प्रतिनिधियों के बीच अब अगले हफ्ते बातचीत होगी. इस बातचीत में उई मुद्दों पर सहमति बनाने की कोशिश होगी जिन पर पेच फंसा हुआ है. इसमें सबसे बड़ा मुद्दा कृषि क्षेत्र से जुड़ा है जिस पर दोनों देश आम सहमति बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं. हालांकि भारत साफ कर चुका है कि कृषि के मसले पर वह किसी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं हैं. मगर टैरिफ पर होने वाली मीटिंग में फैसला क्या होता है, यह देखने वाली बात होगी.
भारत और अमेरिका के बीच 5-6 जून को टैरिफ को लेकर बैठक होने वाली थी. अब इसके 10 जून तक शुरू होने की संभावना है. इससे एक संकेत मिलता है कि 9 जुलाई की डेडलाइन से पहले दोनों देशों के बीच टैरिफ को लेकर कोई बात बन सकती है. पिछले हफ्ते नई दिल्ली में राजेश अग्रवाल की अध्यक्षता में भारतीय प्रतिनिधियों के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका व्यापार प्रतिनिधि कार्यालय (USTR) के वरिष्ठ अधिकारियों के नेतृत्व में एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने मुलाकात की. कहा जा रहा है कि दोनों पक्ष बाजार पहुंच में सुधार, टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करने और सप्लाई चेन को मज़बूत करने पर ध्यान लगा रहे हैं.
दोनों देशों के बीच मौजूदा वार्ता सीमित व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने के प्रयास का हिस्सा है, जिससे भारतीय निर्यात पर 26 परसेंट रेसिप्रोकल टैरिफ को फिर से लागू करने से बचने की उम्मीद है, जो 9 जुलाई तक शुरू हो सकता है. भारत सरकार के अधिकारियों को उम्मीद है कि जल्द ही आम सहमति बन जाएगी. यह भी कहा जा रहा है कि कई मुद्दों पर सहमति बन गई है, बस कृषि का मु्द्दा फंसा हुआ है क्योंकि यह भारत के लिए सेंसिटिव है.
दरअसल, अमेरिकी प्रशासन भारत सरकार से आग्रह कर रहा है कि वह अपने कृषि और डेयरी सेक्टर को खोले ताकि अमेरिकी कंपनियां भी इस व्यापार में दाखिल हो सकें. लेकिन भारत सरकार इस पर रजामंद नहीं है क्योंकि यह कदम भारत के छोटे किसानों को नुकसान पहुंचा सकता है. अमेरिका लगातार इस मसले पर भारत पर दबाव बना रहा है, लेकिन भारत इसे लेकर राजी नहीं है. इस दवाब को कमतर करने के लिए भारत सरकार डब्ल्यूटीओ शिकायत पर गौर कर सकती है जो स्टील और एल्युमिनियम पर अमेरिका ने टैरिफ लगाए हैं. हालांकि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय समझौते पर बातचीत भी चलती रहेगी.
जनवरी-अप्रैल की अवधि में भारत का अमेरिका को निर्यात साल-दर-साल लगभग 28 परसेंट बढ़कर 37.7 बिलियन डॉलर हो गया, जिसका एक कारण टैरिफ वृद्धि से पहले निर्यात में उछाल था. इसी अवधि के दौरान आयात 14.4 बिलियन डॉलर रहा.
'बिजनेस स्टैंडर्ड' की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत ने अपने कृषि उत्पादों को तीन कैटेगरी में रखा है और इसे ध्यान में रखते हुए ही अमेरिका के साथ बातचीत चल रही है. ये तीन कैटेगरी भारत के आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए तय की गई हैं. इसमें तीन कैटेगरी हैं- नॉन निगोशिएबल, वेरी सेंसिटिव और लिबरल.
रिपोर्ट के मुताबिक, चावल और गेहूं को नॉन निगोशिएबल कैटेगरी में रखा गया है जिस पर किसी तरह की टैरिफ छूट को लेकर बात नहीं होगी. 'वेरी सेंसिटिव' कैटेगरी में सेब जैसे उत्पाद को रखा गया है जो कुछ राज्यों में किसानों के हित से सीधा जुड़ाव रखते हैं और राजनीतिक मुद्दा भी बनता है. इसलिए, इसके इंपोर्ट में छूट बहुत हद तक प्रतिबंधित रह सकती है. यानी इसमें किसी तरह की छूट पर प्रतिबंध रहेगा.
इसके अलावा, बादाम, पिस्ता, अखरोट और ब्लूबेरी जैसे अधिक दाम वाले आयात, जिनका ज्यादातर इस्तेमाल अमीर लोग करते हैं, उन्हें "लिबरल" श्रेणी में रखा गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ऐसी वस्तुओं पर आयात शुल्क में कमी करने के लिए तैयार है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today