हिमाचल प्रदेश में किसान इन दिनों केमिकल फ्री खेती की तरफ बढ़ रहे हैं. पिछले दिनों कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) सिरमौर में प्राकृतिक खेती पर पांच दिनों तक चलने वाला एक ट्रेनिंग प्रोग्राम खत्म हुआ है. इसके तहत किसानों को बताया गया है कि वो कैसे केमिकल फ्री खेती को सफलतापूर्वक अपना सकते हैं. ट्रेनिंग सेशन में 42 पुरुष और महिलाओं को सामुदायिक संसाधन व्यक्तियों (सीआरपी) के तौर पर ट्रेनिंग दी गई. अब ये सभी लोग किसानों को स्थायी और पर्यावरण-अनुकूल कृषि पद्धतियां अपनाने में मदद करेंगे और उनके साथ जमीनी स्तर पर काम भी करेंगे.
केवीके-सिरमौर के चीफ साइंटिस्ट डॉक्टर पंकज मित्तल के अनुसार जहां पहले एग्री केमिकल ने फसल उत्पादन बढ़ाने में मदद की थी, वहीं अब उनके हानिकारक प्रभावों ने मानव स्वास्थ्य, पशुधन और पर्यावरण को खतरे में डाल दिया है. इस बात पर ज़ोर दिया कि प्राकृतिक खेती एक सुरक्षित और अधिक टिकाऊ विकल्प प्रदान करती है. महिलाओं की भागीदारी के महत्व पर जोर देते हुए. डॉक्टर मित्तल ने सामुदायिक संसाधन व्यक्ति (सीआरपी) को इस मिशन की रीढ़ बताया. उनका कहना था कि इनका काम किसानों को स्वस्थ कृषि पद्धतियों की ओर प्रोत्साहित करना है.
दूसरी ओर स्थायी कृषि को बढ़ावा देने की एक ऐतिहासिक पहल के तहत, चंबा जिले की पांगी घाटी, राज्य का पहला प्राकृतिक कृषि उपखंड बनने के लिए तैयार है. यह कदम राज्य सरकार के आत्मनिर्भर और पर्यावरणीय रूप से सुदृढ़ हिमाचल प्रदेश के निर्माण के मिशन में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर करार दिया जा रहा है. बताया जा रहा है कि इसका विशेष ध्यान किसानों को सशक्त बनाने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के उत्थान पर है.
हिमाचल प्रदेश के कृषि विभाग की तरफ से सहभागी गारंटी योजना (PGS) के तहत पांगी को एक प्राकृतिक कृषि उपखंड के रूप में प्रमाणित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना (PK3Y) के तहत गठित एक समर्पित समिति बड़े पैमाने पर क्षेत्र प्रमाणन के लिए घाटी में व्यापक सर्वेक्षण कर रही है. इस प्रमाणन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि क्षेत्र की उपज सख्त प्राकृतिक कृषि प्रोटोकॉल का पालन करती है और सिंथेटिक रसायनों और उर्वरकों से मुक्त है.
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