भारत के हर घर में आज हींग का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जाने लगा है. सेहत और स्वाद को देखते हुए इसका इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है. हींग, जो कभी केवल मध्य पूर्व में उगाई जाती थी, अब लगभग हर भारतीय के घर में इसका उपयोग किया जाने लगा है. आज हींग हर घर में प्रमुख मसाले के तौर पर इस्तेमाल होने लगी है. ऐसे में हींग गांठ से हींग पाउडर बनाने में एक लंबा सफर तय करना पड़ा. तब जाकर यह मसाला अपने आधुनिक अवतार में सामने आया.
आज के समय में जो हींग पाउडर आसानी से आपके घरों तक पहुंच रहा है. एक समय ऐसा भी था जब महिलाओं को खाने में हींग का इस्तेमाल करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी. तब जाकर खाने में हींग का तड़का लगता था. हींग का स्वाद जितना ही अच्छा उससे कई ज्यादा दिलचस्प इसकी कहानी है. क्या है वो कहानी आइए जानते हैं.
1978 से पहले, घरों में महिलाओं को महीन, पाउडर युक्त हींग के लिए हींग की गांठों को सुखाना और पीसना पड़ता था. जो असल में एक मुश्किल और समय लेने वाली प्रक्रिया थी. लेकिन 1978 में यह सब बदल गया जब एक गुजराती शख्स ने हींग में इनोवेशन शुरू किया. इनका नाम था अजीत खिमजी मर्चेंट और उनकी कंपनी थी लालजी गोधू एंड कंपनी. इस कंपनी ने में इस्तेमाल के लिए मिश्रित हींग की 50 ग्राम की बोतल पेश की. हालांकि, इस नई तरह की हींग को बनाने में कई साल लग गए. यही वजह है कि हींग के साथ गुजरातियों का एक लंबा इतिहास रहा है जो उनके खान-पान में पूरी तरह से रचा-बसा है.
Asafoetida, once produced only in the Middle East, is now a staple spice ingredient used in almost every Indian household. You may know it by its other name - ‘hing.’ But how the spice transformed into its modern avatar is quite a remarkable story. A thread. 1/15 pic.twitter.com/4pJGitS5z5
— The Paperclip (@Paperclip_In) September 7, 2023
गुजरात से मध्य पूर्वी देशों तक व्यापार होता था. इसके साथ ही पश्चिमी तट पर होने के कारण गुजरातियों ने कई वर्षों से ईरान और अफगानिस्तान जैसे देशों से हींग का आयात किया है. इस वजह से हींग पारंपरिक गुजराती व्यंजनों का एक प्रमुख हिस्सा बन गई और व्यापारी परिवार भी इससे अलग नहीं रहा. लेकिन सवाल है कि इसे एक व्यवसाय के रूप में कैसे आगे बढ़ाया गया?
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ऐसा माना जाता है कि 1890 के दशक में, लालजी गोधू की मुलाकात एक काबुली वाले से हुई, जो बॉम्बे की सड़कों पर हींग बेच रहा था. इस पूरे वाकये को गोधू ने व्यावसायिक नजरिए से देखा और समझा. उसके बाद, 1894 में लालजी गोधू एंड कंपनी की स्थापना की गई. शुरू में हींग की 'गांठ' हाथ से तैयार की जाती थी. उस समय शायद यह इस तरह का काम करने वाली एकमात्र कंपनी थी.
शुरुआत में इस कंपनी की हींग की बिक्री मुंबई तक ही सीमित थी, लेकिन समय के साथ मद्रास और अन्य दक्षिणी राज्यों तक फैल गई. जल्द ही, मांग बढ़ गई और पूरे देश से ऑर्डर आने शुरू हो गए. इसी के साथ, पूरे चेन्नई में शाखाएं बनाई गईं. इसी के साथ हींग के बिजनेस में मुकाबला दिन पर दिन बढ़ता गया क्योंकि अन्य व्यापारी भी इसमें हाथ आजमाने लगे.
चुनौतियों के बावजूद, लालजी एंड कंपनी की पाउडर हींग की बिक्री कुछ ही वर्षों में आसमान छू गई. हाई क्वालिटी वाले कच्चे माल को सावधानीपूर्वक उत्पादन प्रक्रिया के साथ जोड़कर, लालजी का पाउडर हींग एक ऐतिहासिक उत्पाद बन गया. आज, भारत दुनिया के हींग के उत्पादन का 40 परसेंट इस्तेमाल करता है और इसका एक बड़ा हिस्सा लालजी एंड कंपनी के माध्यम से जाता है. मर्चेंट परिवार की छठी पीढ़ी अब हींग का व्यवसाय चला रही है. यह परिवार सर्वोत्तम श्रेणी और किफायती हींग का उत्पादन कर रही है. इसमें एक अच्छी बात ये है कि पहले देश में हींग की खेती नहीं होती थी, लेकिन अब यह हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति में शुरू हो गई है. इसलिए अगली बार आपको देसी हींग का तड़का लगाने का मौका भी मिल सकता है.
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