आजकल देश में क्रिकेट वर्ल्ड कप का उत्साह ज़ोरों पर है. लगभग हरेक शख्स इस खेल में उतना ही शामिल नज़र आता है जितना खुद क्रिकेट खिलाड़ी. फिल्म जगत में भी एक ऐसी यादगार फिल्म आई, जिसने हमारे देश के क्रिकेट प्रेम और किसानों के मुद्दे को रोचक तरीके से उठाया. इसे देश की पहली महत्वपूर्ण स्पोर्ट्स फिल्म भी कहा जाता है. बॉक्स ऑफिस पर तो यह फिल्म बहुत सफल रही ही, इसे राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत सराहा गया. फिल्म ‘लगान’ को जितनी सराहना, पुरस्कार और सफलता मिली, उस दास्तां से ज़्यादा दिलचस्प है. इसके बनने की कहानी। यही वजह है कि इस फिल्म के बीस साल पूरे होने पर नेटफ्लिक्स ने ‘लगान’ बनने की कहानी पर एक डॉक्यूमेंटरी ‘ मैडनेस इन द डेज़र्ट’ भी रिलीज़ की थी.
जब आमिर खान को इस फिल्म की कहानी संक्षेप में सुनाई गई थी, तो आमिर ने इसमें अभिनय करने से साफ इंकार कर दिया, लेकिन पूरी स्क्रिप्ट सुनने के बाद न सिर्फ आमिर अभिनय के लिए तैयार हुए बल्कि बाद में जब कोई प्रोड्यूसर न मिला तो उन्होंने अपनी प्रोडक्शन कंपनी लॉन्च करके इसे प्रोड्यूस भी किया.
वैसे आइडिया भी अनोखा ही था. 1893 में गुलाम भारत के सूखा पीड़ित किसान और क्रिकेट का खेल. एक गांव के सूखा पीड़ित किसान चाहते हैं कि अंग्रेज सरकार उनका लगान माफ कर दे, लेकिन अंग्रेज़ शासक इसके पक्ष में नहीं. दोनों पक्षों में तय होता है कि अगर किसान अंग्रेज़ टीम से क्रिकेट में जीत गए तो उनका लगान माफ हो जाएगा और अगर हार गए तो तीन गुना लगान देना होगा. किसानों के लिए ये जान की बाज़ी लगाने जैसा प्रस्ताव है, लेकिन हताश किसान इसके लिए भी राज़ी हो जाते हैं. अब खेल अंग्रेजों का, शर्त अंग्रेजों की, सारे संसाधन अंग्रेजों के पास, किसानों के पास सिर्फ एक चीज़-ज़मीन और उस पर बनी पिच. ऐसी विषम परिस्थितियों में किसान जी तोड़ लगन और संघर्ष के बाद आखिरकार क्रिकेट मैच जीत जाते हैं.
सात राज्यों में फिल्म की लोकेशन की लंबी तलाश कच्छ, गुजरात के एक गांव कुनरिया में जाकर खत्म हुई. यहां का मौसम शुष्क, रेगिस्तानी था और तेज़ धूप भी. सूखा ग्रस्त गांव दिखने के लिए यह आदर्श जगह थी. फिर वहां गांव वालों को मनाया गया कि वे 1893 के गांव चम्पानेर को बसाने के लिए इजाज़त दें और ज़मीन भी. ये लगभग ऐसा था मानो कुछ किसान मिल कर पहले ज़मीन तय करते हैं. फिर वहां बीज बोते हैं और हाड़-तोड़ मेहनत से फसल उगाते हैं, तो गांव वालों ने इस शर्त पर कुछ ज़मीन शूटिंग के लिए दी कि शूटिंग के बाद फिल्म की क्रू सेट तोड़ेगी और ज़मीन जस की तस वापिस कर देगी. निर्देशक आशुतोष गोवारिकर और प्रोड्यूकर आमिर खान सहर्ष मान गए. फिर 1893 के चम्पानेर का सेट बनना शुरू हुआ.
गांव का नाम चम्पानेर भी बिहार के चंपारण का प्रतीक था, जहां से महात्मा गांधी ने किसान आंदोलन की शुरुआत की थी. फिर आज़ादी से पहले के गांव की सारी डिटेल्स पर गंभीरता से काम किया गया. सेट डिज़ाइनर थे नितिन देसाई और कॉस्ट्यूम तैयार किए ऑस्कर पुरस्कार विजेता भानु अथाइया ने सेट और कॉस्ट्यूम बहुत महत्वपूर्ण थे, चूंकि यह एक ‘पीरियड फिल्म’ थी. आमिर बार-बार इंग्लैंड की कुछ पुरानी दुकानों पर उस वक्त के इंग्लैंड और अंग्रेजों की वेषभूषा की तस्वीरें लेते रहे और वहीं संयोग से उन्हें मिला 19वीं सदी का एक क्रिकेट बैट, जिसके डिज़ाइन को फिल्म में इस्तेमाल किया गया. छह महीने तक लगभग 3000 लोगों ने 100 एकड़ ज़मीन पर काम किया चम्पानेर का सेट बनाने के लिए, इसमे सभी स्थानीय कारीगरों की मदद ली गई.
फिर अभिनेताओं को ठहराने के लिए इस दूर दराज़ के गांव में कोई होटल नहीं था, सो, गांव के पास भुज में एक पांच मंज़िला सहजानन्द निवास को किराए पर लिया गया, जहां सभी लोगों को रहना था और सुबह सात बजे सभी को एक ही वाहन मे लोकेशन पर ले जाया जाता. अगर कोई लेट हो गया तो उसे अपने आने का खुद इंतज़ाम करना पड़ता. अनुशासन इतना कि एक बार खुद आमिर खान को लेट होने पर वहीं छोड़ दिया गया.
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फिर कुनरिया की तपती गर्मी में काम करना आसान नहीं था. इंग्लैंड से जो अभिनेता आए थे उन्हें और भी दिक्कत हुई. रेचल शेली गर्मी और हिन्दी संवादों के बीच डगमगाती हुई कई बार अपना आपा खो देतीं, पॉल ब्लैकथोर्न को भी हिन्दी, घुड़सवारी और विकट गर्मी की आदत डालनी पड़ी क्योंकि निर्देशक आशुतोष गोवारिकर किसी काम में कोई कोताही नहीं चाहते थे.
भीषण गर्मी में अभिनय करना देसी अभिनेताओं के लिए भी मुश्किल था. कुछ बीमार भी पड़े और सबसे सीनियर अभिनेता ए के हंगल फिसल गए और घायल हो गए. उनके लिए खड़ा होना भी मुश्किल था लेकिन वे डटे रहे. आशुतोष ने उनसे कहा भी कि वे शहर के किसी अस्पताल मे इलाज करवाएं, लेकिन 81 वर्षीय हंगल फिल्म में अपना आखिरी शॉट देकर ही मुंबई गए.
ज्यों-ज्यों शूटिंग आगे बढ़ी फिल्म का बजट भी बढ़ता गया. कोई और फिल्म में पैसा लगाने को तैयार नहीं था सो, आमिर खान कर्जा लेकर फिल्म बनाते रहे. ‘लगान’ का बजट था 25 करोड़. यह तब तक की सबसे महंगी फिल्म था. दो ब्रिटिश अभिनेता जेमी विट्बि और कैथरीन केटकिन भारतीय रीति से शादी करना चाहते थे, तो आमिर खान के कहने पर चम्पानेर के सेट में बने मंदिर में ही उनका विवाह सम्पन्न हुआ.
‘लगान’ पहली हिन्दी फिल्म थी, जिसमें इतने सारे ब्रिटिश अभिनेता थे, जिनके लिए अलग से एक हिन्दी ट्यूटर रखा गया और पहली बार हिन्दी फिल्म में ‘सिंक साउंड’ का इस्तेमाल हुआ, यानी सेट पर ही बोले गए संवादों को रिकॉर्ड किया गया, उनकी डबिंग नहीं की गई. क्रिकेट मैच को शूट करना सबसे मुश्किल था आसपास के गांव वालों को बतौर दर्शक बुलाया गया. वैसे भी फिल्म में मुख्य अभिनेताओं के अलावा अन्य भूमिकाओं में स्थानीय लोगों को ही रखा गया था. इतने रीटेक्स हुए कि खुद निर्देशक बीमार पड़ गए और चारपाई पर पड़े-पड़े निर्देश देते रहे, लेकिन यही इस फिल्म की खासियत है. यह मैच बहुत ही रोचक है और दर्शकों में अंत तक उत्सुकता बनाए रखता है.
कैसे जाति, धर्म और वर्ग के तमाम मतभेदों को ताक पर रख कर गांव के किसान इकट्ठा होकर एक टीम की तरह काम करते हैं. यह प्रभावपूर्ण तरीके से दर्शा कर ही फिल्म ने आडियन्स को मोह लिया.जून 2001 में यह फिल्म रिलीज़ हुई और इस फिल्म ने न सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया भर में लोगों के दिलों को जीत लिया. बॉक्स ऑफिस पर 66 करोड़ की कमाई करके यह वर्ष 2001 में तीसरी सबसे बड़ी सफल फिल्म बनी और भारत की यह तीसरी फिल्म थी जिसे ऑस्कर पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म की श्रेणी में चयनित किया गया.
किसानों के जरिए एक शोषित वर्ग के स्वाभिमान की बात करने वाली और खेल के जरिए अहिंसापूर्ण विरोध की शक्ति को चित्रित करने वाली फिल्म ‘लगान’ आज भारत की चंद ऐसी ऐतिहासिक फिल्मों में से गिनी जाती है जिन्होने दुनिया भर में नाम कमाया.
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