GI Tag : बिहार के 5 कृषि उत्पादों को मिल चुका है जीआई टैग, जानें किसमें क्या है खास

GI Tag : बिहार के 5 कृषि उत्पादों को मिल चुका है जीआई टैग, जानें किसमें क्या है खास

बिहार के कुल 5 कृषि उत्पादों को अब तक GI Tag मिल चुका है. ऐसे में किस आधार पर इन कृषि उत्पादों को जीआई टैग मिला है आज हम उसपर चर्चा करेंगे. साथ ही इन उत्पादों की क्या खासियत, उत्पादन और रकबा है उसपर भी जानेंगे

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GI Tag : बिहार के 5 कृषि उत्पादों को मिल चुका है जीआई टैग, जानें किसमें क्या है खासमिथिला मखाना

जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग (GI Tag) एक प्रकार का लेबल होता है जिसमें किसी प्रॉडक्टफ को विशेष भौगोलि‍क पहचान दी जाती है. ऐसा प्रॉडक्टै जिसकी विशेषता या फिर प्रतिष्ठाट मुख्यग रूप से प्राकृति और मानवीय कारकों पर निर्भर करती है. यह किसी भी वस्तु को दी जा सकती है अगर वह सभी कारकों पर सफल होता है तो. ऐसे में आज हम बात करेंगे बिहार के उन कृषि उत्पादों के बारे में जिन्हें सरकार द्वारा GI Tag दिया जा चुका था. साथ ही इन कृषि उत्पादों की विशेषता क्या है इसपर भी चर्चा करेंगे.

बिहार में अब तक कुल 5 कृषि उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है. जिसमें भागलपुरी जर्दालू, कतरनी चावल, मघई पान, बिहार की शाही लीची और मिथिला मखाना शामिल हैं. इन फसलों के स्वाद, गुणवत्ता, उपज और साथ ही रकबे को देखते हुए इन्हें GI Tag से सम्मानित किया गया है.

इन कृषि उत्पादों को क्यों मिला GI Tag

भागलपुर के जर्दालु आम, कतरनी धान, नवादा के मगही पान और मुजफ्फरपुर के शाही लीची को जीआइ टैग में शामिल किया गया. जिसके बाद साल 2022 में बिहार के मिथिला जिले के मखाने को जीआई टैग में शामिल किया गया है.

भागलपुर का जर्दालु

जीआई टैग मिलने के बाद भागलपुर के जर्दालु आम का क्रेज लगातार बढ़ता ही जा रहा है. इसका मुख्य कारण इस आम का मिठापन है. दूसरे आम के मुकाबले इसका स्वाद काफी अलग है. जर्दालू आम की गिनती दुनिया के सबसे उन्नत आम की किस्मों में की जाती है. जर्दालू आम की मांग दुनिया के कई देशों में बढ़ रही है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022 में भागलपुर से 500 क्विंटल से भी ज्यादा जर्दालू आम विदेश भेजने की खबर सामने आई है. वहीं इसकी कीमत इस साल 7000 रुपये सैकड़ा तक पहुंच चुका था, जो कभी 12 से 1500 रुपये तक हुआ करता था.

कतरनी चावल

कतरनी चावल अपने खास सुगंध और स्वाद के लिए ना सिर्फ भारत बल्कि विदेशों तक में मशहूर है. शाही दावत में मेहमान नवाजी के लिए कतरनी चावल का ही इस्तेमाल किया जाता है. इतना ही नहीं इसका महत्व हिन्दू संस्कृति में भी देखने को मिला है. इसके बिना कोई पूजा नहीं होता है. इस धान की खेती बिहार के अलग-अलग जिले में की जाती है जैसे भागलपुर, बांका और मुंगेर. साल 2017 में बिहार के कतरनी चावल को जीआई टैग में शामिल किया गया है. 2020-21 में कतरनी धान की खेती 14 सौ एकड़ में की गई थी. 2021-22 में रकवा बढ़कर 17 सौ हेक्टेयर हो गई.

मगही पान

मगही पान को इसकी अनूठी विशेषता के कारण जीआई टैग में शामिल किया गया है. दरअसल लोग खाने के बाद या फिर जिन्हें पायरिया की समस्या है वह अधिकतर माउथ फ्रेशनर का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में मगही पान के आयुर्वेदिक औषधि गुण और माउथ फ्रेशनर वाली विशेषता को देखते हुए इसे जीआई टैग में शामिल किया गया है.

शाही लीची

बेहतरीन स्वाद और उपज को ध्यान में रखते हुए बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की शाही लीची को जीआई टैग दिया गया है. आपको बता दें बिहार में 32 से 34 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में लीची का उत्पादन होता है. बिहार देश के लीची उत्पादन का 40 प्रतिशत उत्पादन करता है. यहां कुल 300 मीट्रिक टन लीची का उत्पादन होता है. मुजफ्फरपुर बिहार में कुल लीची उत्पादन का 70 प्रतिशत उत्पादन करता है. मुजफ्फरपुर में लीची की खेती 18 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में होती है. मुजफ्फरपुर में सर्वाधिक 12 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में शाही लीची का उत्पादन होता है.

मिथिला मखाना

मिथिला के मखाने को अपने उम्दा स्वाद, पोषक तत्व और प्राकृतिक रूप से उगाए जाने के तरीके को देखते हुए इसे जीआई टैग दिया गया है. इतना ही नहीं भारत के 90 फीसदी मखानों का उत्पादन बिहार के मिथलांचल जिले में होता है. इसकी खेती तालाब में की जाती है. आज से करीब 5-6 साल पहले जब मिथिला मखाने को जीआई टैग नहीं मिला था तब मिथिला-कोसी में मखाना की खेती 17750 हेक्टेयर में की जाती थी. इसका रकवा आज की तारीख में बढ़ कर 25 हजार हेक्टेयर हो गया है. जो बिहार जैसे राज्य और वहां के किसानों के लिए गर्व की बात है.  

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