उत्तर भारत में पड़ रहा कोहरा गेहूं के लिए क्यों वरदान पूरे उत्तर भारत में इस समय कड़ाके की ठंड पड़ रही है और कई हिस्सों में भीषण कोहरा और शीत लहर है. जहां आम इंसान इससे आजिज हो चुका है तो वहीं गेहूं के किसानों के चेहरे खिले हैं. दरअसल गेहूं उत्तर भारत में ठंड के सीजन में उगने वाली एक ऐसी फसल है जिसके लिए हर किसान काफी इमोशनल होता है. रबी की यह फसल न सिर्फ देश को खाद्य सुरक्षा मुहैया कराती है बल्कि किसानों को भी मोटा मुनाफा हासिल करने में मदद करती है. अक्टूबर के अंत से नवंबर तक बोई जाने वाली इस फसल के लिए ठंड का मौसम काफी अहम होता है.ऐसे में अगर कोहरा भी पड़े तो सोने पर सुहागा जैसी स्थिति हो जाती है.दिसंबर से फरवरी के बीच पड़ने वाला कोहरा गेहूं की बढ़वार और पैदावार में बड़ी भूमिका निभाता है.
किसान अक्सर मानते हैं कि अगर सर्दियों में हल्का और संतुलित कोहरा पड़े तो फसल अच्छी होती है. संतुलित मात्रा में पड़ा कोहरा गेहूं की फसल के लिए वरदान साबित होता है. यह नमी, अनुकूल तापमान और बेहतर दाना भराव देता है. आइए आपको उन कुछ खास वजहों के बारे में बताते हैं जिससे यह साबित होता है कि कोहरा गेहूं की फसल के लिए क्यों अच्छा है.
कोहरे की माइक्रो वॉटर कंटेंट्स हवा में लंबे समय तक बने रहते हैं और और धीरे-धीरे पौधों व मिट्टी की ऊपरी सतह पर जमते हैं. इससे खेत में वाष्पीकरण की गति कम होती है और नमी लंबे समय तक बनी रहती है. इसका सीधा फायदा यह होता है कि सिंचाई के अंतराल बढ़ जाते हैं और पानी की खपत कम होती है. वहीं कोहरा सूरज की तेज किरणों को सीधे खेत तक पहुंचने से रोकता है. इससे दिन का तापमान अचानक नहीं बढ़ता. गेहूं की बढ़वार के लिए जरूरी 10–15 डिग्री सेल्सियस का दायरा बना रहता है. ये पौधों में ज्यादा कल्ले बनने और मजबूत जड़ों के विकास में मदद करता है.
ठंडा और नम वातावरण गेहूं की टिलरिंग स्टेज के लिए सबसे बेहतर माना जाता है. कोहरे के कारण पौधे पर मौसम का दबाव नहीं पड़ता और वह अपनी ऊर्जा नई शाखाएं निकालने में लगाता है. इससे प्रति वर्ग मीटर बालियों की संख्या बढ़ती है, जो उपज बढ़ाने का अहम आधार है.ग्रेन फिलिंग के समय बहुत ज्यादा गर्मी दानों को हल्का और सिकुड़ा हुआ बना देती है. कोहरे की वजह से तापमान संतुलित रहता है और नमी भी बरकरार रहती है. इसकी वजह से दाने धीरे-धीरे और पूरी क्षमता के साथ भरते हैं. इससे हजार दानों का वजन बढ़ता है और फसल की गुणवत्ता सुधरती है.
कोहरा रात के समय खेत की गर्मी को वातावरण में तेजी से निकलने नहीं देता. इससे तापमान जीरो के करीब जाने से पहले ही स्थिर हो जाता है. यही कारण है कि कोहरे की मौजूदगी में पाले का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है.वहीं कम वाष्पीकरण और ज्यादा नमी के कारण पौधों में पानी की कमी का तनाव नहीं बनता. पत्तियां ज्यादा देर तक हरी रहती हैं और प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बेहतर ढंग से चलती रहती है. इसका असर सीधे दाने के आकार और वजन पर पड़ता है.
जिस तरह से अति हर चीज की बुरी होती है, उसी तरह से ज्यादा कोहरा भी फसल को नुकसान पहुंचा सकता है. अगर कोहरा लंबे समय तक छाया रहे और धूप न निकले तो खेत में नमी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. ऐसी स्थिति में पीला रतुआ, पत्ती झुलसा और अन्य फफूंद रोग तेजी से फैलते हैं. इसलिए किसानों को फसल की नियमित निगरानी और समय पर फफूंदनाशक छिड़काव पर ध्यान देना चाहिए.
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