हरित क्षेत्र के रूप में पहचान बनाने वाले पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की नदियां, जो कभी जीवनदायिनी थीं, आज गंभीर प्रदूषण की चपेट में हैं. यह प्रदूषित जल भूजल में मिलकर न केवल पर्यावरण ही नहीं, बल्कि ग्रामीण समुदायों, किसानों की फसलों और मानव स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा बन रहा है. पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, इन राज्यों में स्थित औद्योगिक इकाइयां अपने कचरे को बिना किसी उपचार के नदियों में प्रवाहित कर रही हैं. इन कचरों में हानिकारक रसायन और भारी धातुएं होती हैं, जो जल को विषाक्त बना रही हैं. इसके अतिरिक्त, शहरी क्षेत्रों से निकलने वाला अनुपचारित सीवेज भी नदियों में छोड़ा जा रहा है, जिससे मल-मूत्र, डिटर्जेंट और अन्य हानिकारक पदार्थ जल में मिल रहे हैं. दूषित जल अब नदियों के किनारे बसे गांवों के लोगों के लिए गंभीर खतरा बन चुका है.
सवाल यह उठता है कि किसानों की पराली जलाने पर सरकार ड्रोन से निगरानी करती है, अक्टूबर से दिसंबर तक इस पर हाहाकार मचता है, और किसानों को प्रदूषण का सबसे बड़ा दोषी ठहराया जाता है. लेकिन जब बात नदियों में बढ़ते जल प्रदूषण की आती है, तो इस पर वैसी सख्ती क्यों नहीं दिखाई जाती? किसानों ने सरकार के साथ मिलकर पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को काफी हद तक नियंत्रित कर लिया है, लेकिन अब वही गांव और किसान उस जल प्रदूषण का खामियाजा भुगत रहे हैं, जिसके लिए वे स्वयं जिम्मेदार नहीं हैं.
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नदियों का जहरीला पानी भूजल में मिलकर किसानों के घरों और खेतों तक पहुंच रहा है. ये जल प्रदूषण मानव स्वास्थ्य, कृषि और पारिस्थितिकी के लिए गंभीर खतरा बन चुका है. इसकी वजह से किसानों की फसलें प्रभावित हो रही हैं, और ग्रामीणों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ रहा है. प्रदूषित पानी पीने से लोग कैंसर, लीवर की बीमारियां, त्वचा संक्रमण, पीलिया, दांतों की समस्याएं और गुर्दे की पथरी जैसी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं. यहां तक कि नदी का जहरीला पानी पीने से पशु-पक्षी भी प्रभावित हो रहे हैं.
पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, इन राज्यों में स्थित औद्योगिक इकाइयां बिना उपचार किए अपने कचरे को नदियों में छोड़ रही हैं, जिसमें हानिकारक रसायन और भारी धातुएं होती हैं. इसके अलावा, शहरी क्षेत्रों से निकलने वाला सीवेज भी बिना शुद्धिकरण के नदियों में मिल रहा है, जिससे जल स्रोत दूषित हो रहे हैं. सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट के अनुसार, कई नदियों के निगरानी स्थलों पर BOD (बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड) का स्तर 30 mg/l से अधिक पाया गया है, जो अत्यधिक प्रदूषण को दर्शाता है. जल में मौजूद कार्बनिक पदार्थों के विघटन के लिए सूक्ष्मजीवों को ऑक्सीजन की जरूर होती है. यदि BOD अधिक होता है, तो जल में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है, जिससे जलीय जीवों और पौधों के लिए संकट उत्पन्न हो जाता है.
• घग्गर नदी:
◦ काला अंब से नारायणगढ़ तक: 21-40 mg/l BOD
◦ विभिन्न स्थानों पर: 40 mg/l से 21 mg BOD स्तर
• मारकंडा नदी:
◦ काला अंब डाउनस्ट्रीम: 590 mg/l BOD (बेहद चिंताजनक स्तर)
• पश्चिमी यमुना नहर:
◦ यमुनानगर डाउनस्ट्रीम: 247 mg/l BOD
◦ दमला यमुनानगर डाउनस्ट्रीम: 188 mg/l BOD
◦ कुछ स्थानों पर 590 mg/l तक BOD स्तर, औद्योगिक अपशिष्ट के कारण.
• सतलुज नदी:
◦ लुधियाना के पास: 50 mg/l BOD
• अन्य नदियां:
◦ धकांशु नाला, झरमल नदी (सरदूलगढ़), सरस्वती नदी (रतन्हेरी), पटियाला नदी, झरमल नदी: 30-50 mg/l BOD
• घग्गर नदी का बड़ा हिस्सा गंभीर रूप से प्रदूषित, औद्योगिक और नगरपालिका अपशिष्ट मुख्य कारण.
• यमुना नदी:
◦ आगरा, मथुरा, वृंदावन, इटावा से सीवेज: 20-36 mg/l BOD
◦ कृष्णी और काली नदी संगम: 36 mg/l BOD
◦ पुरा महादेव नदी: 34 mg/l BOD
• हिंडन नदी:
◦ सहारनपुर से यमुना नदी संगम तक: 24 mg/l BOD
◦ हिंडन की सहायक काली नदी मुजफ्फरनगर डाउनस्ट्रीम: 364 mg/l BOD
• काली नदी:
◦ मेरठ से कन्नौज तक:
▪ कन्नौज: 120 mg/l BOD
▪ गुलावठी (बुलंदशहर) अपस्ट्रीम: 183 mg/l BOD
◦ प्रदूषण के स्रोत: मेरठ, मोदीनगर, बुलंदशहर, हापुड़, गुलावठी और कन्नौज से औद्योगिक और नगरपालिका सीवेज.
ये जल प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन चुका है, जिसका प्रभाव केवल पर्यावरण तक सीमित नहीं है, बल्कि मानव स्वास्थ्य और कृषि पर भी गहरा असर डाल रहा है. पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की नदियां गंभीर प्रदूषण की चपेट में हैं. इन राज्यों की नदियों में BOD (जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग) का स्तर चिंताजनक रूप से अधिक पाया गया है, जो जल प्रदूषण की गंभीर स्थिति को दर्शाता है.
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