तिलहन फसलों से तेल निकालने के बाद बड़ी मात्रा में बचने वाले वेस्ट का इस्तेमाल खली (जैसे- सोयाबीन खली, सरसों खली, चावल की खली आदि) के रूप में पशुचारे और पोल्ट्री फीड में किया जाता है. लेकिन हाल के कुछ महीनों में पशुचार और पोल्ट्री फीड में इसका इस्तेमाल कम हुआ है, जबकि डिस्टिलर्स ड्राइड ग्रेन विद सॉल्यूबल्स (DDGS) का इस्तेमाल बढ़ा हैं. सरल भाषा में कहें तो डिस्टिलरी से निकलने वाले सूखे अनाजों को घुलनशील पदार्थों को पशुओं को खिलाया जा रहा है. लेकिन, कंपाउंड लाइवस्टॉक फीड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (सीएलएफएमए ऑफ इंडिया) के चेयरमैन दिव्य कुमार गुलाटी ने कहा कि डीडीजीए का इस्तेमाल बढ़ने से सोयाबीन खली के
उद्योग पर कोई खतरा नहीं है.
दरअसल, इथेनॉल बनाने के दौरान जब प्लांट्स में मक्का और चावल जैसे अनाजों को प्रोसेस किया जाता है तो डीडीजीएस उसमें एक बाय प्रोड्क्ट के रूप में निकलता है यानी प्रक्रिया तो इथेनॉल हासिल करने के लिए पूरी की जा रही है, लेकिन उसमें इथेनॉल के अलावा डीडीजीएस भी मिल रहा है. अब इस प्रक्रिया में जो मक्का और चावल जैसे अनाज बचते हैं उन्हें पशुओं के चारे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन कुछ महीनों से इसका इस्तेमाल बढ़ रहा है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, डीडीजीएस में प्रोटीन और ऊर्जा के लिहाज से पशुओं के लिए एक अच्छा चारा है और खली के मुकाबले दाम भी सस्ता है, इसलिए यह लागत प्रभावी है.
सरकार इथेनॉल उत्पादन को लगातार बढ़ाने का काम कर रही है और इसमें भी अनाज से इथेनॉल बनाने का चलन बढ़ा है. ऐसे में इसके साथ डीडीजीएस का भी उत्पादन बढ़ रहा है, जो सोयाबीन खली के व्यापार के लिए चुनौती बन रहा है. ‘बिजनेसलाइन’ की रिपोर्ट के मुताबिक, दिव्य कुमार गुलाटी ने कहा कि डीडीजीएस पूरी तरह से सोयाबीन खली की जगह नहीं ले सकता है. पोषण से जुड़े कारणों के चलते इसे पूरी तरह बदलना संभव नहीं है.
अगर इसका इस्तेमाल बढ़ता भी है तो यह सोयाबीन खली के व्यापार के 10 से 15 प्रतिशत हिस्से पर ही असर डाल सकता है. हालांकि, इसमें भी डीडीजीएस की क्वालिटी एक बड़ा फैक्टर रहेगी.गुलाटी ने आगे कहा कि भारत का पोल्ट्री उद्योग सालाना 8 से 10 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है, लेकिन सोयाबीन खली का उत्पादन इतना नहीं बढ़ रहा है. इसलिए, वर्तमान में तो डीडीजीएस से सोयाबीन खली उद्योग को कोई खतरा नहीं है.
वहीं, सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA) ने बयान जारी कर कहा कि अक्टूबर से शुरू होने वाले तेल वर्ष 2024-25 के पहले छह महीनों में एनिमल फीड सेगमेंट ने सोयाबीन खली का उठाना कम किया, जिसमें 7 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट देखी गई. चालू सीजन में अक्टूबर से मार्च के बीच फीड सेक्टर ने 32.50 लाख टन सोयाबीन खली का उठान किया, जबकि पिछले सीजन में इसी अवधि के दौरान यह 35 लाख टन था. सोपा ने मांग में गिरावट के पीछे एनिमल फीड के रूप में डीडीजीएस को प्राथमिकता देना बताया, क्याेंकि यह पशुपालकों के लिए खली से सस्ता है.
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