GI Tag में देश का दूसरा सबसे अग्रणी राज्य बना बिहार, महाराष्ट्र को पीछे छोड़ने की तैयारी

GI Tag में देश का दूसरा सबसे अग्रणी राज्य बना बिहार, महाराष्ट्र को पीछे छोड़ने की तैयारी

बिहार के उत्पादों को जीआई टैग दिलाने की दिशा में बीएयू ने रचा इतिहास. देश का दूसरा सबसे अग्रणी राज्य बना बिहार, जिसने 1,247 पंजीकृत जीआई उपयोगकर्ताओं के साथ 1,000 के लक्ष्य को पार किया.

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GI Tag में देश का दूसरा सबसे अग्रणी राज्य बना बिहार, महाराष्ट्र को पीछे छोड़ने की तैयारीGI tag मामले में बिहार दूसरे स्थान पर

देश का हर राज्य चाहता है कि उसके प्रमुख उत्पादों को जीआई टैग (भौगोलिक संकेत) प्राप्त हो, और इसको लेकर हर राज्य अपने स्तर पर प्रयासरत है.  हालांकि, बिहार इस दिशा में बेहतर कार्य करते हुए देश का दूसरा सबसे अग्रणी राज्य बन चुका है, जहां जीआई उपयोगकर्ताओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है. इस मामले में महाराष्ट्र पहले स्थान पर है. हाल ही में बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू), सबौर द्वारा आयोजित भौगोलिक संकेतक (Geographical Indications - G.I.) पंजीकरण की प्रगति पर 11वीं समीक्षा बैठक में अनुसंधान निदेशक डॉ. ए. के. सिंह ने यह जानकारी दी. उन्होंने कहा कि अब बिहार को देश का पहला राज्य बनने की दिशा में कार्य करने की जरूरत है.

महाराष्ट्र को पीछे छोड़ने की तैयारी

अनुसंधान निदेशक डॉ. ए. के. सिंह ने बताया कि बिहार ने 1,247 पंजीकृत जीआई उपयोगकर्ताओं के साथ 1,000 के लक्ष्य को पार कर लिया है. यह उपलब्धि वैज्ञानिक प्रमाणीकरण, क्षेत्रीय सत्यापन और कानूनी पात्रता के आधार पर सुनिश्चित की गई है. अब अगला लक्ष्य 2,000 उपयोगकर्ताओं तक पहुंचना है, ताकि बिहार इस क्षेत्र में देश का नंबर 1 राज्य बन सके. उन्होंने कहा कि 1,000 से अधिक पंजीकृत उपयोगकर्ताओं का आंकड़ा विज्ञान और टीमवर्क की जीत है. वहीं विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का अगला उद्देश्य बायोकेमिकल प्रोफाइलिंग, आणविक विश्लेषण और मूल्य श्रृंखला एकीकरण के माध्यम से उत्पादों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करना है.

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इतने उत्पादों को मिला जीआई टैग

बिहार के अब तक 17 जीआई टैग आधारित उत्पादक समितियां औपचारिक रूप से पंजीकृत की जा चुकी हैं, जो आगामी समय में गुणवत्ता नियंत्रण, सामूहिक विपणन और वैज्ञानिक ब्रांडिंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी.  वहीं, 13 उत्पादों के लिए जीआई आवेदन चेन्नई भेजे जा चुके हैं, जबकि 5 नए उत्पादों के लिए आवेदन की अंतिम समीक्षा चल रही है. इन सभी में भौगोलिक स्रोत की पुष्टि, ऐतिहासिक प्रमाण, आर्थिक प्रभाव और वैज्ञानिक परीक्षण जैसे पहलुओं का ध्यान रखा गया है.

वैज्ञानिकों को मिला नया दायित्व

नए संभावित उत्पादों की पहचान करने को लेकर डॉ. ए. के. सिंह ने वैज्ञानिकों को निर्देशित किया कि वे ऐसे उत्पादों पर कार्य करें जिनमें स्थानीय विशिष्टता, आनुवंशिक पहचान और आर्थिक संभावनाएं हों. विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. डी.आर. सिंह ने कहा, “जीआई केवल एक कानूनी टैग नहीं है, यह हमारी पारंपरिक विरासत की वैज्ञानिक पहचान और आर्थिक संभावना का प्रतीक है. बीएयू इसे नेतृत्व प्रदान करते हुए किसान-केंद्रित नवाचार और वैज्ञानिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर रहा है.  उन्होंने आगे कहा कि “बीएयू सबौर एक उभरती हुई जीआई शक्ति है.”

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