Basant Panchami 2024: वसंत पंचमी का त्योहार माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है. इसी दिन से वसंत ऋतु का आगमन होगा. इस दिन पूरे विधि-विधान से मां सरस्वती की पूजा करने की परंपरा है. लेखक, कवि, संगीतकार और छात्र सभी सबसे पहले सरस्वती को प्रणाम करते हैं. माना जाता है कि ऐसा करने से उनके भीतर रचना की ऊर्जा उत्पन्न होती है. शास्त्रों के अनुसार इस दिन पीले रंग को भी विशेष महत्व दिया जाता है. वसंत पंचमी का दिन शिक्षा आरंभ करने या किसी भी शुभ कार्य के लिए बहुत अच्छा माना जाता है.
यज्ञोपवीत संस्कार, यज्ञ एवं सूर्योपासना के लिए वसंत ऋतु सबसे उपयुक्त काल है. भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि मैं छह ऋतुओं में वसंत हूं. वेदों में लिखा है कि वसंत ऋतु सभी चीजों में खुशियां बांटती है. इससे निर्जीव पदार्थों में भी जीवन का संचार होने लगता है.
पंचांग के अनुसार पंचमी तिथि 13 फरवरी को दोपहर 02:41 बजे से शुरू हो रही है. इसका समापन अगले दिन 14 फरवरी को दोपहर 12:09 बजे होगा. उदया तिथि के अनुसार इस वर्ष वसंत पंचमी का त्योहार 14 फरवरी को मनाया जाएगा.
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इस दिन सुबह स्नान के बाद सफेद या पीले वस्त्र धारण करें और विधिपूर्वक कलश की स्थापना करें. वास्तु के अनुसार, पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम दिशा को सरस्वती पूजा के लिए आदर्श स्थान माना जाता है. यदि इस दिशा में व्यवस्था न हो तो पूर्व, उत्तर-पूर्व या उत्तर दिशा में भी पूजा कर सकते हैं. चौकी पर सफेद या पीला कपड़ा बिछाकर मां सरस्वती की मूर्ति या फोटो स्थापित करें. उन्हें गंगा जल से स्नान कराएं और पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें. रोली, चंदन, हल्दी, केसर, अक्षत, पीले या सफेद रंग के फूल और पीली मिठाई चढ़ाएं. मां सरस्वती की पूजा पाठ करें. छात्र चाहें तो इस दिन मां सरस्वती के लिए व्रत भी रख सकते हैं. यथाशक्ति “ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः” का जाप करें. इस मंत्र का जाप करने से मां सरस्वती प्रसन्न होती हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है.
शास्त्रों में वसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती के साथ-साथ राधे-कृष्ण की पूजा का भी वर्णन किया गया है. दरअसल राधे-कृष्ण प्रेम का प्रतीक हैं. बसंत पंचमी के दिन पहली बार राधा-कृष्ण ने एक-दूसरे को गुलाल लगाया था, इसलिए बसंत पंचमी पर गुलाल लगाने की परंपरा भी चली आ रही है.
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