हिंदू धर्म में हर एक त्योहार और दिन का खास महत्व होता है और बैसाखी की बात करें तो यह खासतौर पर किसानों का पर्व है. इसे फसल उत्सव भी कहा जाता है. यूं तो खासतौर पर इस पर्व को सिख समुदाय द्वारा मनाया जाता है लेकिन फसल उत्सव के तौर पर यह पर्व हर किसान के लिए भी खास हो जाता है. इस साल बैसाखी का ये पर्व 14 अप्रैल को मनाया जा रहा है. क्या है इसका फसल से कनेक्शन और कैसे मनाया जाता है ये त्योहार जानें पूरी बात-
सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने पर यह त्योहार मनाया जाता है. इस बार सूर्य का मेष राशि में प्रवेश 14 अप्रैल को हो रहा है. दरअसल बैसाखी को सिख समुदाय का नववर्ष कहा जाता है. यह त्योहार खासतौर पर पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के किसानों द्वारा मनाया जाता है. इसे कई राज्यों में अलग-अलग नाम से भी जाना और मनाया जाता है. असम में इसे बिहू के तौर पर तो वहीं बंगाल में नबा वर्ष और केरल में पूरम विशु के नाम से मनाया जाता है.
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बैसाखी के दिन किसान अपने पूरे साल में हुई फसल के लिए ईश्वर का आभार व्यक्त करते हैं. वहीं किसान अपनी फसलों की पूजा कर अपने अन्न को भगवान के सामने अर्पित करते हैं. इस दिन पवित्र नदियों में डुबकी लगाकर बैसाखी मनाते हैं. किसान इस दिन जरूरतमंदों को फसल का थोड़ा सा हिस्सा दान में देते हैं. वहीं भक्तों को कड़ा प्रसाद नाम की एक विशेष मिठाई प्रसाद के रूप में दी जाती है. इस दिन सिख समुदाय के लोग चमकीले कपड़े पहन कर खुशी से भंगड़ा और पारंपरिक ऩृत्य करते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस दिन सेवा और दान करने से घर में बरकत बनी रहती है और दरिद्रता दूर होती है.
बैसाखी के त्योहार के मनाने के पीछे का इतिहास यह है कि इस दिन सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी. तब से इस दिन को बैसाखी के तौर पर मनाया जाता है. साथ ही इस दिन महाराजा रणजीत सिंह को सिख साम्राज्य का प्रभार सौंपा गया था. जिन्होंने एकीकृत राज्य की स्थापना की थी.
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