Success Story: गन्‍ना उगाने वाले खेतों में मूंगफली ला रही है क्रांति, बदल रही किसानों की तकदीर 

Success Story: गन्‍ना उगाने वाले खेतों में मूंगफली ला रही है क्रांति, बदल रही किसानों की तकदीर 

Intercropping Method: पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रगतिशील किसान नीमेश ने गन्ने के साथ मूंगफली व अन्य फसलों की इंटरक्रॉपिंग कर नई मिसाल पेश की. इस मॉडल से किसानों की आय बढ़ी, मिट्टी की उर्वरता सुधरी और फसल विविधीकरण को बढ़ावा मिला. इस तरीके से उन्‍हें तो फायदा हुआ ही साथ ही साथ अब दूसरे किसान भी उनसे प्रेरणा लेकर इसे अपनाने के लिए आगे आने लगे हैं.

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Success Story: गन्‍ना उगाने वाले खेतों में मूंगफली ला रही है क्रांति, बदल रही किसानों की तकदीर Intercropping Sugarcane: पश्चिमी यूपी के निमेश बने बाकी किसानों के लिए प्रेरणा

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की उपजाऊ धरती पर सदियों से गन्‍ने की मिठास बिखरी है लेकिन यह मिठास किसानों की मुश्किलों की भी वजह बनती जा रही है. लगातार गन्‍ना और गेहूं की खेती करने से मिट्टी की उर्वरता घट गई जिससे उत्पादन में विविधता खत्म हो गई और किसानों की आय भी सीमित रह गई. ऐसे समय में एक प्रगतिशील किसान, नीमेश, ने हिम्‍मत दिखाई और खेती का एक नया रास्‍ता चुना. मई 2025 में जिला स्तर पर आयोजित विकसित कृषि संकल्प अभियान के कार्यक्रम में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नीमेश को सम्मानित किया. वजह थी, उनकी नई सोच और गन्‍ने के खेतों में अपनाया गया एडिटिव इंटरक्रॉपिंग मैथेड. 

प्रेरणादायक शुरुआत

नीमेश से जब उनकी सफलता के बारे में पूछा गया तो उन्‍होंने मुस्कुराते हुए कहा, 'मैं खुश हूं कि मेरे प्रयोग ने कई किसानों को नई प्रेरणा दी है. यह पहली बार था जब मैंने गन्‍ने के साथ मूंगफली बोई थी. कुछ गलतियां भी हुईं लेकिन परिणाम उम्मीद से बेहतर रहे. अगले साल इसे बड़े स्तर पर करेंगे और बंपर पैदावार का लक्ष्य रखेंगे.' नीमेश के खेत से निकली मूंगफली की ताजा फसल उनका आत्मविश्वास है और यही उनकी सफलता की गवाही देता है. 

गन्‍ने की खेती बनी समस्‍या!  

वेबसाइट www.cimmyt.org के अनुसार निमेश पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उन 50 किसानों में से एक हैं जो चार जिलों - मेरठ, मुजफ्फरनगर, बागपत और हापुड़ से आते हैं और मुख्य फसल गन्‍ने के साथ मूंगफली, चारा मक्का, सब्‍जी,  लोबिया और भिंडी उगाकर अतिरिक्त इंटरक्रॉपिंग खेती को तरजीह देने लगे हैं. ऐसा करके किसान गन्‍ने की पैदावार से समझौता किए बिना दूसरी फसल भी ले सकते हैं. जिन जिलों के बारे मे हमने जिक्र किया है, ये पश्चिमी उत्तर प्रदेश के वो जिले हैं जिन्‍हें देश की गन्‍ना बेल्‍ट का तमगा हासिल है. यहां की जमीन और जलवायु गन्‍ने की खेती के लिए अनुकूल है. लेकिन दशकों से चली आ रही गन्‍ने और गेहूं की खेती ने कई समस्याएं पैदा कर दी हैं. 

खेती के इस दशकों पुराने तरीके ने मिट्टी की उर्वरता में कमी और उत्पादन विविधता को कम कर दिया है. लगातार एक ही तरह की फसल लेने से पोषक तत्व घट गए. एक जैसा उत्‍पादन होने से किसानों के पास आमदनी के विकल्‍प भी सीमित हो गए. भारत की आयातित तिलहनों पर बढ़ती निर्भरता के कारण करीब 60 फीसदी खाद्य तेल की मांग इंपोर्टेड तेलों से पूरी होती है. इस बीच, तिलहन और दलहन की मांग में लगातार वृद्धि हो रही है जिससे आयात में भी इजाफा हुआ है और देश के खजाने पर दबाव बढ़ता जा रहा है. 

सरकार की खास पहल 

इस चुनौती से निपटने के लिए सरकार की तरफ से 2024-25 से 2030-31 तक के लिए राष्‍ट्रीय खाद्य तेल-तिलहन मिशन (NMEO-तिलहन) जैसी नीतियों और कार्यक्रमों को लॉन्‍च किया गया है जिनके जरिये से फसल विविधीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है. हालांकि, इन फसलों का बड़े पैमाने पर विस्तार करना चुनौतीपूर्ण बना हुआ है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां लंबे समय से किसानों की प्राथमिकताएं गन्‍ने या गेहूं जैसी फसलें रही हैं और उनके पुराने विचार खेती को आकार देते आ रहे हों. 

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान (ICAR-IIFSR), मोदीपुरम के सीनियर साइं‍टिस्‍ट रघुवीर सिंह के अनुसार मुख्य फसल की उपज से समझौता किए बिना, गन्‍ने जैसी चौड़ी कतार वाली फसलों में तिलहनों को शामिल करना एक प्रैक्टिकल और बहुत उम्‍मीदों भरा सॉल्‍यूशन है. उन्‍होंने बताया, 'खांचे विधि का प्रयोग करके जोड़ी-पंक्ति गन्‍ना रोपण यानी जोड़ियों के बीच 30 सेमी की दूरी और इंटर-क्रॉपिंग फसलों के लिए न्यूनतम 120 सेमी क्यारियों के साथ,  प्रभावी साबित हुआ है.' उनका कहना है कि यह तरीका किसानों को गन्‍ने को अपनी मुख्‍य नकदी फसल के तौर पर बनाए रखने में तो सक्षम बनाता है ही साथ ही साथ सब्जी फसलों, दलहन और तिलहन को भी इस सिस्‍टम में जगह मिल जाती है. 

गन्‍ने के साथ और कौन सी फसलें 

2023 में CIMMYT ने भारत, भूटान और बांग्लादेश में एडिटिव इंटरक्रॉपिंग के जरिये उत्पादकता, पोषण, कृषि आय और जलवायु लचीलापन बढ़ाने के लिए ऑस्ट्रेलिया के अंतरराष्‍ट्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र (ACIAR) द्वारा वित्त पोषित अंतर-फसल परियोजना शुरू की. उत्तर प्रदेश में, CIMMYT किसानों के खेतों और IIFSR रिसर्च सेंटर, दोनों में एडिटिव इंटरक्रॉपिंग फसलों को परखने के लिए ICAR-IIFSR के साथ सहयोग कर रहा है. यहां गन्‍ने को मूंगफली, लोबिया, भिंडी और चारा मक्का के साथ फूल और पेड़ी गन्‍ना दोनों फसलों में अंतर-फसल के रूप में परीक्षण किया जाता है. यह पहली बार है जब पेड़ी गन्‍ने में इंटरक्रॉपिंग फसलों को टेस्‍ट किया जा रहा है. इसे संभव बनाने के लिए, फसल की कटाई के बाद गन्‍ने के कचरे का प्रबंधन करने और एडिटिव इंटरक्रॉपिंग को सक्षम करने के लिए एक मल्चर का उपयोग किया गया. 

कई फीसदी तक बढ़ा उत्‍पादन 

प्रोजेक्‍ट टीम का मानना है कि किसानों की निरंतर भागीदारी, उन्‍हें मिलने वाले फायदों का नजर आना और तिलहन-दलहन को बढ़ावा देने वाली सरकारी पहलों के साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फसल प्रणाली और मिट्टी की सेहत में सुधार आ सकता है. प्रयोगों के बारे में डॉक्‍टर रघुवीर सिंह कहते हैं, 'खासकर मूंगफली ने एक प्रभाव दिखाया है. यह एक जीवित गीली घास बनाकर मिट्टी की नमी को संरक्षित करती है, खरपतवारों को दबाती है, और एक फलीदार फसल होने के कारण मिट्टी को नाइट्रोजन रिच करती है.' उनकी मानें तो पहले सीजन में साफ दिखा कि कैसे मूंगफली के साथ इंटरक्रॉपिंग ने गन्‍ने की पैदावार को 10 से 15 फीसदी तक बढ़ा दिया. 

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