Agri Quiz: किस फसल की वैरायटी है वरदान, इसकी अन्य उन्नत किस्मों के बारे में भी जानें

Agri Quiz: किस फसल की वैरायटी है वरदान, इसकी अन्य उन्नत किस्मों के बारे में भी जानें

भारत में अलग-अलग फसलें अपनी अलग-अलग पहचान के लिए जानी जाती हैं. कई फसलें अपने अनोखे नाम के लिए तो कई अपने स्वाद और खास पहचान के तौर पर मशहूर हो जाती हैं. ऐसी ही एक फसल है जिसकी वैरायटी का नाम वरदान है. आइए जानते हैं इसके बारे में.

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Agri Quiz: किस फसल की वैरायटी है वरदान, इसकी अन्य उन्नत किस्मों के बारे में भी जानेंकिस फसल की वैरायटी है वरदान

भारत खेती-किसानी और विविधताओं से भरा देश है. यहां अलग-अलग फसलें अपनी खास पहचान की वजह से मशहूर होती हैं. वहीं, कई फसलें अपने अनोखे नाम के लिए तो कई अपने स्वाद के लिए जानी जाती हैं. ऐसी ही एक फसल है जिसकी वैरायटी का नाम वरदान है. दरअसल, ये वैरायटी चने की एक खास किस्म है, जिसकी खेती रबी सीजन में की जाती है. वहीं, बात करें चने की तो ये रबी फसल की एक प्रमुख दलहनी फसल है. चने की खेती किसानों के लिए काफी लोकप्रिय खेती है. इस फसल की खेती कम सिंचाई और कम लागत में आसानी से हो जाती है. ऐसे में आइए जानते हैं चने की कौन-कौन सी उन्नत किस्में हैं?

चने की पांच उन्नत किस्में

वरदान: चने की इस किस्म की सिंचित और असिंचित दोनों जगहों पर आसानी से बुवाई की जा सकती है. इस किस्म के पौधे सामान्य ऊंचाई के होते हैं. इस किस्म के पौधे बुवाई के लगभग 130 से 140 दिनों में तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के दाने का रंग गुलाबी भूरा होता है. इस किस्म के चने का उत्पादन लगभग प्रति हेक्टेयर 20 से 25 क्विंटल तक है.

जवाहर चना-24: इसी तरह जवाहर चना-24 भी बेहतरीन किस्म है. इस किस्म की खासियत है कि इसके पौधे काफी लंबे होते हैं. ऐसे में इसकी कटाई किसान हार्वेस्टर मशीन से भी कर सकते हैं. साथ ही यह किस्म 100 से 115 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. वहीं, इसका तना भी मजबूत होता है, ऐसे में तेज आंधी में फसलों की बर्बादी नहीं होती है.

पूसा-256: चने की यह किस्म सिंचित और असिंचित दोनों जगहों पर पछेती रोपाई के लिए उपयुक्त होती है. इस किस्म के ज्यादातर पौधे लंबे और सीधे होते हैं. जो बीज बुवाई के लगभग 130 दिन के आस-पास पककर तैयार हो जाते हैं. इस किस्म की औसतन उपज लगभग 27 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. साथ ही इस किस्म के पौधों में अंगमारी की बीमारी कम होती है.

फुले 9425-5 किस्म: चने की फुले 9425-5 किस्म बंपर उत्पादन के लिए जानी जाती है. इसे फुले कृषि विश्वविद्यालय राहुरी ने विकसित किया है. अक्टूबर से नवंबर का महीना इसकी बुवाई के लिए बेहतर होता है. यह किस्म 90 से 105 दिन में पककर तैयार हो जाती है. फुले 9425-5 की उत्पादन क्षमता 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है.

पूसा जेजी-16: पूसा जेजी 16 किस्म को आईसीएआर-आएआरआई ने विकसित किया है. वैज्ञानिकों ने इस किस्म को उत्तर भारत वाले राज्यों की जलवायु को ध्यान में रखते हुए इजाद किया है. यानी इन राज्यों के किसान अगर पूसा जेजी 16 किस्म की बुवाई करते हैं, तो सिंचाई को लेकर टेंशन लेने की जरूरत नहीं है. क्योंकि यह किस्म कम पानी में बंपर पैदावार देगी. इस किस्म की सबसे बड़ी खासियत है कि सूखा प्रभावित इलाके में भी इसकी उत्पादन क्षमता 1.3 टन प्रति हेक्टेयर से 2 टन प्रति हेक्टेयर है. 

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