देश में इस साल मॉनसून सीजन में सामान्य से अधिक बारिश हुई है, जिससे प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों में मिट्टी में काफी समय तक नमी बनी रहने की संभावना है. वहीं, पिछले सीजन की तरह ही इस बार फिर बंपर बुवाई की उम्मीद है. एमएसपी में हर साल हो रही बढ़ोतरी और कुछ राज्यों में अतिरिक्त बोनस राशि मिलने से किसान गेहूं की खेती में खास रुचि ले रहे हैं. ऐसे में आज हम आपको गेहूं की एक ऐसी किस्म और इसके बीज के सरकारी रेट की जानकारी देने जा रहे हैं, जो ज्यादा पैदावार देने, कई बीमारियों से लड़ने में सक्षम है.
मौसम विभाग ने अक्टूबर 2025 में भी सामान्य से ज्यादा बारिश का अनुमान जताया है. ऐसे में कई किसान बुवाई को टाल सकते हैं. ऐसी स्थिति में किसान डीबीडब्ल्यू 222 (करण नरेंद्र) गेहूं की किस्म की खेती कर सकते हैं. यह किस्म कई मायने में किसानों के लिए फायदेमंद है.
केंद्रीय किस्मों की विमोचन और उप समिति ने इस किस्म को उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में किसानों के लिए अधिसूचित किया है. यह किस्म पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर डिवीजन को छोड़कर), पश्चिमी उत्तर प्रदेश (सहारनपुर से लखनऊ तक), उत्तराखंड (तराई क्षेत्र), जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश (ऊना और पांवटा साहिब क्षेत्र) में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है. इस किस्म को खासकर गर्मी से होने वाले वायवीय ब्लास्ट और अन्य प्रमुख रोगों के प्रतिरोध के लिए तैयार किया गया है.
डीबीडब्ल्यू 222 की औसत उपज 61.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इसकी उपज अन्य प्रमुख किस्मों जैसे HD2967 (54.2), DBW88 (56), DPW621 (57.6), WH1105 (57.6), HD3086 (58.9) की औसत उपज से ज्यादा है. इसकी उत्पादन क्षमता 82.10 टन प्रति हेक्टेयर तक पहुंच सकती है. यह किस्म अन्य क्षेत्रों और विभिन्न परिस्थितियों में भी बेहतर प्रदर्शन करने की क्षमता रखती है.
डीबीडब्ल्यू 222 किस्म पीला रतुआ और भूरा रतुआ सहित सभी प्रमुख रोगजनकों के लिए प्रतिरोधी है. इसके अलावा, करनाल बंट (9.1%) और खुला कंडुआ (कंजयारी) (4.9%) रोगों के खिलाफ भी अधिकतम प्रतिरोध प्रदान करती है. इस किस्म के दानों उच्च गुणवत्ता वाली प्रोटीन सामग्री होती है, जिससे यह किस्म खाने और प्रोसेसिंग के लिए उपयुक्त है.
भूमि का चयन और तैयारी: अच्छी जल निकासी वाली भूमि चुनें. खरीफ फसल के लिए मिट्टी की गहरी जुताई करें, ताकि मिट्टी का मिश्रण संतुलित हो. वहीं, बीजों को फफूंदी नाशक दवा (थायरम/कैप्टन/विटावैक्स 2 ग्राम/किग्रा) से उपचारित करें.
बुवाई का समय: 5 से 25 नवंबर के बीच बुवाई करें. बीज दर का हिसाब देखें तो 100 किलो बीज प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है और कतार अंतर की बात करें तो कतारों के बीच 22.4 से 22.8 सेमी की दूरी रखें. अच्छी बुवाई के लिए बीज को 4 से 6 सेमी की उचित गहराई में बोएं.
खाद और रसायन प्रबंधन: नाइट्रोजन 120, फास्फोरस 60 और पोटाश 40 किलो/हेक्टेयर और जरूरत के अनुसार कीटनाशक और खरपतवारनाशी का प्रयोग करें.
सिंचाई और पोषण: फसल के बीज अंकुरण, फूल निकलने, बालियां बनने की अवस्था में सिंचाई करें. वहीं, बुवाई के 25 से 30 दिन बाद यूरिया दें और आवश्यकतानुसार जिंक सल्फेट, सल्फर आदि तत्वों का प्रयोग करें.
रोग और कीट नियंत्रण: अगर फसल में पीला या भूरा रतुआ, करनाल बंट या खुला कंडुआ रोग के लक्षण दिखें तो प्रोपिकोनाजोल 0.1% (1 मिली/लीटर) छिड़काव 15 दिन अंतराल पर करें. वहीं, माहू और अन्य कीटों के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल 40 मिली/100 लीटर पानी का छिड़काव करें.
कटाई और उपज: किस्म 139–150 दिन में कटाई के लिए तैयार होती है. अनुमानित औसत उपज 24.5 क्विंटल प्रति एकड़ और उत्पादक क्षमता 32.8 क्विंटल प्रति एकड़ है.
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