यूरिया भारत में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला नाइट्रोजन युक्त उर्वरक है. यूरिया के अधिक प्रयोग से मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों विशेषकर जिंक, सल्फर व आयरन की कमी होने लगती है. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार भारत की मिट्टी में लगभग 42 प्रतिशत सल्फर की कमी है और यह प्रत्येक वर्ष बढ़ती जा रही है. इसलिए सरकार यूरिया की एक नई किस्म यूरिया गोल्ड लेकर आई है, जो सल्फर कोटेड है. इसके इस्तेमाल से फसलों में नाइट्रोजन के साथ-साथ सल्फर की भी पूर्ति होगी. दावा है कि इससे पौधों में नाइट्रोजन उपयोग दक्षता में सुधार होता है, यह उर्वरक की खपत कम करता है तथा फसल की गुणवत्ता बढ़ाता है.
कृषि वैज्ञानिक अश्विन कुमार और आरएन मीना के अनुसार यूरिया गोल्ड का इस्तेमाल करने से सामान्य यूरिया की अपेक्षा लगभग 10 प्रतिशत मात्रा कम प्रयोग करनी पड़ती है. इसके द्वारा पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ उत्पादन लागत में भी कमी की जा सकती है. यूरिया गोल्ड में 37 प्रतिशत नाइट्रोजन और 17 प्रतिशत सल्फर होता है. इस यूरिया को सल्फर के साथ फोर्टिफाइड करके बनाया गया है. इससे, इसके रिलीज पैटर्न में बदलाव होता है तथा यह नाइट्रोजन मिट्टी में धीरे-धीरे समावेशित होता है. सल्फर की कमी वाले पौधों में छोटे या पतले तने होते हैं और नए पत्ते पीले पड़ जाते हैं.
गोल्ड शब्द उसके पीले-सुनहरे रंग का प्रतीक है. इसमें प्रूमिक एसिड होता है, जो उर्वरक की आयु को बढ़ा देता है. यूरिया गोल्ड की उपयोग दक्षता 70 से 75 प्रतिशत होती है. प्रति बैग की वास्तविक लागत 1457 रुपये है, लेकिन भारत सरकार 1190 रुपये प्रति बैग की सब्सिडी प्रदान करती है. इस कारण अधिकतम खुदरा मूल्य 266 रुपये प्रति बैग है. यूरिया गोल्ड के एक बैग का वजन 40 किलोग्राम रखा गया है. दावा है कि 15 किलोग्राम यूरिया गोल्ड, 20 किलोग्राम पारंपरिक यूरिया के बराबर काम करता है.
यूरिया में नाइट्रोजन की उच्च मात्रा 46 प्रतिशत होती है. इसकी नाइट्रोजन उपयोग दक्षता बहुत कम है. इसीलिए अधिक कुशल नाइट्रोजन प्रबंधन के लिए विभिन्न प्रकार के धीमी गति से निकलने वाले उर्वरक जैसे-नीम लेपित यूरिया, सल्फर लेपित यूरिया, पॉलीमर लेपित यूरिया आदि को अपनाने की तत्काल आवश्यकता है. ये नाइट्रोजन उपयोग दक्षता (एनयूई) के अलावा फसल की गुणवत्ता और उपज को भी बढ़ाते हैं. इनमें से सल्फर कोटेड यूरिया अपनी अपेक्षाकृत कम कीमत और अतिरिक्त सल्फर के कारण किसानों के लिए एक अच्छा विकल्प बताया गया है.
भारतीय मिट्टी में सल्फर की कमी पाई जाती है. तिलहन और दालों की खेती में सल्फर की विशेष रूप से आवश्यकता होती है. यूरिया गोल्ड सल्फर कोटेड होने के कारण नाइट्रोजन, मिट्टी में धीरे-धीरे समावेशित होता है तथा इसकी उपलब्धता अधिक समय तक बनी रहती है.
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