जैसे इंसानों में रोग के इलाज के लिए दवा की जरूरत होती है, वैसे ही फसलों के रोग के लिए भी दवा और स्प्रे की जरूरत होती है. इसी में एक दवा है ट्राइकोडर्मा विरिडी जो फसलों में रोग प्रबंधन के लिए बेस्ट इलाज माना जाता है. इस ट्राइकोडर्मा विरिडी के बारे में आईसीएआर के वैज्ञानिक राधिका शर्मा और जगमोहन ढिल्लों विस्तार से बताते हैं. वे कहते हैं कि ट्राइकोडर्मा विरिडी को जैविक खेती में रोग प्रबंधन के लिए एक महत्वपूर्ण जैव-नियंत्रक कवक के रूप में मान्यता प्राप्त है. यह प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होने वाला कवक किसानों को रसायन पर निर्भरता कम करने में मदद करता है. यानी अगर ट्राइकोडर्मा का प्रयोग करें तो फसलों में केमिकल स्प्रे की जरूरत बहुत हद तक कम हो जाएगी.
वहीं रसायनों के प्रयोग से कई जोखिम होते हैं, जैसे कि लाभकारी कवक का नष्ट होना, रोगजनकों में रसायन से प्रतिरोधक क्षमता का विकास और पर्यावरण को नुकसान आदि. ट्राइकोडर्मा विरिडी जैव कवक मिट्टी में पाए जाने वाले रोगजनकों जैसे कि राइजोक्टोनिया, पिथियम और फ्यूजेरियम को नियंत्रित करने में प्रभावी होता है और पौधों की वृद्धि में सुधार करता है. यह कवक अलग-अलग एंजाइमों का उत्पादन करता है, जो रोग कारकों पर आक्रमण करते हैं और पौधों को सुरक्षा प्रदान करते हैं.
इसके अलावा, ट्राइकोडर्मा विरिडी पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता, पोषक तत्वों के अवशोषण और एंटीऑक्सीडेंट गतिविधि को भी बढ़ावा देता है. ट्राइकोडर्मा का उपयोग जैविक खाद के रूप में भी किया जा सकता है, जो मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है और जैविक खेती में लगातार विकास को सुनिश्चित करता है. इस जैव-नियंत्रक उपयोग न केवल खेती में सुरक्षित है, बल्कि यह दीर्घकालिक कृषि उत्पादकता के लिए भी अनिवार्य घटक है, जो पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखते हुए खेती के लिए एक टिकाऊ दृष्टिकोण मुहैया कराता है."
राधिका शर्मा और जगमोहन सिंह ढिल्लों बताते हैं, ट्राइकोडर्मा विरिडी रोगकारक जीवों की वृद्धि को रोकता है या उन्हें मारकर पौधों को रोग मुक्त करता है. यह पौधों की रासायनिक प्रक्रियाओं को परिवर्तित कर पौधों में रोगरोधी क्षमता को बढ़ाता है. इसलिए इसके प्रयोग से रासायनिक दवाइयों, विशेषकर फंगीसाइड्स पर निर्भरता कम होती है. यह पौधों में रोगकारकों के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता की क्रिया विधि को सक्रिय करता है. यह मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों के टूटने की दर बढ़ाता है. इसलिए यह जैव उर्वरक की तरह काम करता है.
यह पौधों में एंटीऑक्सीडेंट गतिविधि को बढ़ाता है. टमाटर के पौधों में यह देखा गया कि जहां मिट्टी में ट्राइकोडर्मा डाला गया, उन पौधों के फलों की पोषक तत्वों की क्वालिटी, खनिज तत्व और एंटीऑक्सीडेंट गतिविधि अधिक पाई गई. यह पौधों की वृद्धि को बढ़ाता है. यह फॉस्फेट और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों को घुलनशील बनाता है. इसके प्रयोग से घास और कई अन्य पौधों में गहरी जड़ों की संख्या में बढ़ोतरी देखी गई, जो उन्हें सूखे में भी बढ़ने की क्षमता मुहैया कराता है. यह कीटनाशकों, शाकनाशकों से प्रदूषित मिट्टी के जैविक उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इनमें विभिन्न प्रकार के कीटनाशक जैसे ऑर्गेनोक्लोरीन, ऑर्गेनोफॉस्फेट और कार्बामेट समूह के कीटनाशकों को नष्ट करने की क्षमता होती है.
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