खेती में कल्चर तकनीक का बहुत बड़ा रोल है. इससे फसलों की उपज बढ़ाने में मदद मिलती है. साथ ही रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है. इसे देखते हुए आज हम आपको दो अलग तरह के कल्चर बता रहे हैं जिसका इस्तेमाल फसलों और बीजों पर करके बढ़िया मुनाफा कमाया जा सकता है. इस तरह के कल्चर से पौधों के विकास और फल-फूल में वृद्धि होती है. आगे चलकर पैदावार में बढ़ोतरी होती है. आइए इन दो कल्चर के बारे में जान लेते हैं.
इस कल्चर का प्रयोग सभी प्रकार के अनाज, दलहन, तेलहन और सब्जी में करते हैं. यह पौधों में फास्फोरस की उपलब्धता को बढ़ाता है. इसके प्रयोग से भूमि में घुलनशील फास्फोरस अवशोषित होकर पौधों की जड़ों में सीधा पहुंचता है. यह फास्फोरस प्रदान करने के अतिरिक्त पौधों का जल और अन्य पोषक तत्व उपलब्ध कराने में सहायक है.
खेत को तैयार करने के बाद उसकी सतह पर पुआल बिछा कर जला दें. उसके बाद पंक्तियों में कल्चर का छिड़काव कर बुआई कर दें. 10 वर्ग मीटर टांड़ भूमि में 2 कि.ग्रा. कल्चर पंक्तियों में छिड़काव करें. इन पंक्तियों में ज्वार, मकई, गिन्नी घास में से कोई एक फसल लगाएं. 45 दिनों के बाद पौधों का ऊपरी भाग काट कर हटा दें. पौधे की जड़ को मिट्टी सहित 15 सें.मी. गहराई तक उठाकर प्लास्टिक की थैली में रखें. अपनी आवश्यकतानुसार कल्चर का उत्पादन कर 1.5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के समय पंक्ति में छिड़काव कर बीज को लगाएं. इसे धूप और पानी से बचाएं. उर्वरक और दवाओं के सीधे संपर्क से बचाएं. संभव हो सके तो गोबर की खाद या कम्पोस्ट का प्रयोग फसल में करें. पौधों की जड़ से लगी मिट्टी का प्रयोग करें. कल्चर उत्पादन खेत को तैयार करने के बाद सतह पर पुआल बिखेर कर जला दें. इसके बाद पंक्ति में कल्चर को छिड़क कर बुआई करें.
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इस जीवाणु खाद का प्रयोग सभी फसलों (दलहन, अनाज और सब्जियों) में स्फूर (फॉस्फेट) की उपलब्धता बढ़ाने के लिए करते हैं. अम्लीय मिट्टी में यह बहुत लाभकारी हैं. फसल की पैदावार में नाइट्रोजन के बाद फॉस्फेट दूसरा महत्वपूर्ण पोषक तत्व है. पौधों के विकास या दानों को पुष्ट और मोटा बनाने के लिए फॉस्फेट की जरूरत होती है. यह कोशिकाओं के विभाजन और वसा एवं अल्बुमीन (प्रोटीन) के निर्माण में सहायता करता है. फूल लगने और बीज बनने, जड़ बनने और इसके फैलने में मदद करता है.
जब फॉस्फेट खाद का प्रयोग भूमि में किया जाता है, तो उसका 12 से 15 प्रतिशत भाग ही पौधों को प्राप्त होता है और बाकी भाग भूमि में अघुलनशील अवस्था में स्थिर हो जाता है. भूमि में प्रयोग किया गया फॉस्फेट खाद में से अधिकांश ट्राई कैल्शियम फॉस्फेट के रूप में भूमि में स्थिर हो जाता है, जो फसलों के लिए अनुपयोगी होता है. यह जीवाणु खाद मिट्टी में पाए जाने वाले अघुलनशील फॉस्फेट को जल्द ही घोल के रूप में परिवर्तित कर देते हैं, जिसे पौधे आसानी से ग्रहण कर लेते हैं.
पी.एस.बी. के प्रयोग से उपज में 10-25 प्रतिशत तक वृद्धि संभव है. फॉस्फेट विलयनीकरण जीवाणु (पी.एस.बी.) लैक्टीक, साइट्रीक, आक्जेलिक और फ्यूमैरिक जैसे कार्बनिक अम्ल उत्पन्न करते हैं, जो मिट्टी के फॉस्फेट या रॉक फॉस्फेट को अधिक मात्रा में घुलनशील बनाने में मदद करते हैं और इस प्रकार लगभग 20-25 प्रतिशत फॉस्फेट पौधों को मिल जाता है. इस जीवाणु खाद का प्रयोग करके हमारे किसान अनाज, दलहन और सब्जियों की उपज में वृद्धि कर सकते हैं. ये जीवाण रोग प्रतिरोधक यौगिक भी स्रावित करते हैं, जो पौधों को रोग से बचाते हैं.
बीज को उपचारित करने के लिए सबसे पहले आधा लीटर पानी में लगभग 100 ग्राम गुड़ डालकर पंद्रह मिनट तक उबालें. इसके बाद घोल को ठंडा होने दें. इसके बाद इस घोल में एक पैकेट पी.एस.बी. कल्चर को मिला दें. अब यह बीजों को उपचारित करने वाला घोल बन गया. आधा एकड़ के लिए पर्याप्त बीज को पानी में धो और सूखा कर कल्चर घोल को बीज के ऊपर थोड़ा-थोड़ा डालकर साफ हाथों से अच्छी तरह इस प्रकार मिलाएं, जिससे कि बीजों के ऊपर कल्चर की एक परत चढ़ जाए. कल्चर उपचारित बीजों को अखबार या साफ कपड़े पर फैलाकर छाया में आधा घंटा तक सूखने दें, उसके बाद उपचारित बीजों की बुआई जल्द कर दें. किसान ध्यान दें कि जिन फसलों का बिचड़ा लगाया जाता है, उसकी रोपाई करने से पूर्व पौधों की जड़ों को धोकर कल्चर के घोल में डुबोकर (10-15 मिनट) उपचारित करें और बुआई/रोपाई कर दें.
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कल्चर उपचारित बीज की बुआई जल्द कर दें. गुड़ के घोल के ठंडा होने के बाद ही उसमें कल्चर डालें. कल्चर को धूप और अधिक गर्मी से बचाकर सुरक्षित स्थान पर रखें. कल्चर बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची के अलावा किसी भी विश्वसनीय संस्थान से ही खरीदें. कल्चर का प्रयोग पैकेट पर लिखे अवधि तक अवश्य कर लें. इस अवधि तक उसे ठंडे और सूखे स्थान पर रखें.
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