निजी रेटिंग एजेंसी इन्वेस्टमेंट इंर्फोमेशन एंड क्रेडिट एजेंसी (ICRA) ने सरकार की उर्वरक सब्सिडी खर्च को अगले वित्त वर्ष 2024 में लगभग 20 प्रतिशत घटकर 2 ट्रिलियन रुपये तक रहने की संभावना जताई है, जो चालू वित्त वर्ष में अनुमानित 2.5 ट्रिलियन रुपए है. वहीं एजेंसी ने कहा है कि कच्चे माल और तैयार उर्वरकों की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय कीमतों में मजबूती के कारण सब्सिडी की आवश्यकता अपने उच्चतम स्तर, चालू वित्त वर्ष 2023 में लगभग 2.5 ट्रिलियन रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है.
ICRA का मनाना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में उर्वरकों की उपलब्धता में सुधार हुआ है और कीमतें भी गिरना शुरू हो गई हैं. जो घरेलु उर्वरक उद्योग के लिए एक अच्छा संकेत है क्योंकि भारत प्रमुख कच्चे माल के साथ-साथ तैयार उर्वरकों का एक बड़ा (लगभग 25-28) हिस्सा आयात करता है.
रेटिंग एजेंसी ने नोट किया है कि चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में सब्सिडी की मंजूरी में कुछ देरी हुई थी. जिसने ऊंची कीमतों के साथ-साथ उर्वरक उद्योग के लिए कार्यशील पूंजी के आवश्यकताओं को बढ़ाए रखा. हालांकि, पिछले कुछ महीनों से सब्सिडी का एक बड़ा हिस्सा चुका दिया गया है. जिसके बाद बकाया सब्सिडी कम हो गई है. वहीं देश डायम्मोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की अपनी आवश्यकता का लगभग आधा आयात करता है और लगभग 25 प्रतिशत यूरिया आवश्यकताओं को आयात के माध्यम से पूरा किया जाता है.
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उर्वरक विभाग के सचिव अरुण सिंघल ने पिछले सप्ताह कहा था कि उर्वरकों की वैश्विक कीमतों में और नरमी आने की संभावना है. वहीं वैश्विक कीमतों में भविष्य की अस्थिरता का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि रूस और यूक्रेन के संघर्ष से भविष्य में सामाजिक पोषक तत्वों के वैश्विक मूल्य के आंदोलनों पर प्रभाव पड़ेगा.
व्यापार सूत्रों ने कहा कि यूरिया की कीमत में पिछले साल अक्टूबर में 700 डॉलर प्रति टन से 31 प्रतिशत घटकर 478 डॉलर प्रति टन हो गई थी. जबकि डीएपी की कीमत 35 प्रतिशत घटकर 700 टन प्रति टम हो गई थी. वहीं यूरिया के मामले में किसान लगभग 2650 रुपये प्रति बैग की उत्पादन लागत के मुकाबले 242 रुपये (45 किलोग्राम) प्रति बैग के निर्धारित मूल्य का भुगतान करते हैं. बाकी बची राशि सरकार द्वारा उर्वरक इकाइयों को सब्सिडी के रूप में प्रदान की जाती है.
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