झांसी कृषि विश्वविद्यालय ने विकसित की 100 दिन वाली चने की किस्म, कटाई होगी आसान, मिलेगी बंपर पैदावार

झांसी कृषि विश्वविद्यालय ने विकसित की 100 दिन वाली चने की किस्म, कटाई होगी आसान, मिलेगी बंपर पैदावार

किसानों के लिए बड़ी खुशखबरी है. झांसी स्थित रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने चने की एक नई और बेहतरीन किस्म विकसित की है. इस नई किस्म का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह फसल मात्र 100 दिनों में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाएगी. इससे किसानों का समय बचेगा. इसकी दूसरी बड़ी खासियत यह है कि इसकी कटाई मशीनों जैसे कंबाइन हार्वेस्टर से करना बहुत आसान होगा.

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झांसी कृषि विश्वविद्यालय ने विकसित की 100 दिन वाली चने की किस्म, कटाई होगी आसान, मिलेगी बंपर पैदावारचने की नई वैरायटी से मिलेगी बंपर पैदावार

रबी सीजन की बुवाई शुरू होने से पहले ही चना किसानों के लिए एक बड़ी खुशखबरी आई है. झांसी स्थित रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (RLBCAU) के वैज्ञानिकों ने चने की एक ऐसी नई और उन्नत किस्म ‘आरएलबीजी एमएच-4’ (RLBG MH-4) विकसित की है, जो किसानों की दो सबसे बड़ी समस्याओं का एक साथ समाधान करेगी. यह किस्म न सिर्फ 100 से 110 दिनों के कम समय में पककर तैयार हो जाती है. साथ ही 'आरएलबीजी एमएच-4' से प्रति हेक्टेयर 15 से 20 क्विंटल तक की शानदार उपज प्राप्त की जा सकती है.

इसकी सबसे बड़ी खासियत इसकी 'मशीन फ्रेंडली' बनावट है. यानी, अब किसान चने की कटाई कंबाइन हार्वेस्टर से कर सकेंगे, जिससे मजदूरों पर निर्भरता खत्म होगी, खेती की लागत घटेगी और समय की भी भारी बचत होगी.

जलवायु परिवर्तन में भी 'फिट', गर्मी का नहीं होगा असर

विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अशोक कुमार सिंह ने बताया कि आज के दौर में जलवायु परिवर्तन और मौसम का बदलता मिजाज खेती के लिए सबसे बड़ा खतरा है. इस किस्म को इन चुनौतियों को ध्यान में रखकर ही विकसित किया गया है. उन्होंने बताया कि यह किस्म न केवल रोग प्रतिरोधी है, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रति भी सहनशील है.

अक्सर देखा जाता है कि फरवरी के अंत से मार्च के पहले पखवाड़े में जब तापमान अचानक बढ़ने लगता है, तो चने की फसल पर बुरा असर पड़ता है और दाने सिकुड़ जाते हैं. लेकिन, 'आरएलबीजी एमएच-4' पर तापमान बढ़ने का कोई खास प्रतिकूल असर नहीं देखा गया है, जो इसे बुंदेलखंड जैसे शुष्क और कम पानी वाले क्षेत्रों के लिए एक बेहतर विकल्प बनाता है.

मशीनी कटाई से घटेगी लागत और समय

विश्वविद्यालय के निदेशक प्रसार शिक्षा, डॉ. सुशील कुमार सिंह ने बताया कि किसानों के लिए चने की कटाई हमेशा से एक बड़ी चुनौती रही है. पारंपरिक किस्मों के पौधे अक्सर जमीन पर फैल जाते हैं या झुक जाते हैं, जिससे उन्हें काटने के लिए मजदूरों की जरूरत पड़ती है. इसमें लागत और समय दोनों बहुत अधिक लगते हैं.

'आरएलबीजी एमएच-4' को खासतौर पर इसी समस्या के समाधान के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे सीधे और मजबूत होते हैं, जिनकी ऊंचाई लगभग 60 सेंटीमीटर तक होती है. ये जमीन की ओर झुकते नहीं हैं. सबसे खास बात यह है कि इसमें फलियां जमीन से लगभग 20 सेंटीमीटर की ऊंचाई पर लगती हैं. इन दोनों खूबियों के कारण, किसान अब कंबाइन हार्वेस्टर या अन्य मशीनों से आसानी से चने की कटाई कर सकते हैं. इससे किसानों का श्रम, पैसा और समय, तीनों की बचत होगी और खेती ज्यादा मुनाफे का सौदा बनेगी.

कम समय में अच्छी पैदावार की गारंटी

यह नई किस्म सिर्फ मशीनी कटाई के लिए ही नहीं, बल्कि पैदावार के मामले में भी बेहतरीन है. वैज्ञानिकों के अनुसार, प्रति हेक्टेयर 15 से 20 क्विंटल तक की शानदार उपज प्राप्त की जा सकती है. किसान सही प्रबंधन और वैज्ञानिक तरीके से इसकी खेती करते हैं. यह किस्म 100 से 110 दिनों में पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है, जिससे किसान अगली फसल की तैयारी भी जल्दी कर सकते हैं.

कैसे तैयार की गई यह खास किस्म?

निदेशक शोध, डॉ. एसके चतुर्वेदी के अनुसार, इस किस्म को चने की दो बेहतरीन प्रजातियों 'जेनेसिस 836' और 'जाकी 9218'के संकरण से विकसित किया गया है. यह उन्नत किस्म विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय के पादप प्रजनन विभाग के वैज्ञानिकों की कई वर्षों की मेहनत का परिणाम है. उन्होंने बताया कि इसे 'वंशावली चयन विधि' के जरिए कई वर्षों तक अलग-अलग परिस्थितियों में परखा गया और आखिरकार सर्वश्रेष्ठ गुणों के साथ इसे चयनित किया गया.

इस किस्म के पौधे गहरे हरे रंग के पत्तों वाले होते हैं और सभी शाखाओं पर एक समान रूप से फलियां लगती हैं. इसका बीज गहरे भूरे रंग का और चिकनी सतह वाला होता है.

बुवाई का सही समय और बीज की उपलब्धता

उत्तर प्रदेश राज्य फसल विमोचन समिति ने इस किस्म को प्रदेश में खेती के लिए अनुशंसित कर दिया है. किसानों के लिए इसकी बुवाई का सबसे उपयुक्त समय 25 अक्टूबर से 10 नवंबर के बीच है. विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि वे जल्द ही इस नई किस्म के प्रदर्शन और बीज उत्पादन के कार्यक्रम शुरू करेंगे, ताकि यह बेहतरीन किस्म जल्द से जल्द किसानों के खेतों तक पहुंच सके और वे इसका व्यावहारिक लाभ उठा सकें.

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