भारत में बहुत से फलों की खेती की जाती है. इसमें सेब की खेती से अच्छा मुनाफा मिलता है. इस खेती को करने से किसान को कम लागत में अधिक मुनाफा मिलता है. क्योंकि सेब की कीमत अन्य फलों की तुलना में बहुत अच्छी होती है, इसीलिए बाजार में सेब की मांग हमेशा बनी रहती है. लेकिन वहीं सेब को कज्जली धब्बा रोग का खतरा सबसे अधिक रहता है. जिस वजह से किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है. ऐसे में सेब को कज्जली धब्बा रोग के प्रकोप से बचाने के लिए किसान इस दवा का इस्तेमाल कर सकते हैं.
जम्मू-कश्मीर के अलावा हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, पंजाब और सिक्किम में भी सेब की खेती होती है. अब इसकी खेती बिहार, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में भी होने लगी है. सेब की खेती के लिए गहरी, उपजाऊ मिट्टी, मिट्टी का पीएच 5 से 7 के बीच और खेत में अच्छी जल निकासी की आवश्यकता होती है. इसके उत्पादन में जलवायु का विशेष ध्यान रखा जाता है. इसके पौधों को अच्छी वृद्धि के लिए ठंडे मौसम की आवश्यकता होती है. फलों की अच्छी वृद्धि के लिए पौधों को सर्दियों में लगभग 200 घंटे की धूप की भी आवश्यकता होती है.
सेब के पौधे नवंबर से लेकर फरवरी के आखिर तक लगाए जा सकते हैं. लेकिन सेब उगाने के लिए जनवरी और फरवरी सबसे अच्छे महीने माने जाते हैं. नर्सरी से लाए गए पौधे एक साल पुराने और पूरी तरह स्वस्थ होने चाहिए. पौधे जनवरी और फरवरी में बोए जाते हैं. इससे पौधों को लंबे समय तक उचित वातावरण मिलता है, जिससे वे अच्छी तरह से विकसित होते हैं.
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भारत में सेब की कई किस्में प्रचलित हैं. इन किस्मों का चयन क्षेत्र की जलवायु और भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर किया जाता है. सन फूजी, रेड चीफ, ओरेगन स्पर, रॉयल डिलीशियस और हाइब्रिड 11-1/12 सेब की सबसे उन्नत किस्में हैं. इसके अलावा भी सेब की कई किस्में हैं. अलग-अलग जलवायु और स्थानीय परिस्थितियों में उगाई जाने वाली कई किस्में हैं, जिनमें टॉप रेड, रेड स्पर डिलीशियस, रेड जून, रेड गाला, रॉयल गाला, रीगल गाला, अर्ली शैनबेरी, फैनी, विनोनी, चौबटिया प्रिंसेस, डी'फ्यूज, ग्रैनी स्मिथ, ब्राइट-एन-अर्ली, गोल्डन स्पर, वैल स्पर, स्टार्क शामिल हैं.
कज्जली धब्बा रोग होने पर डाइथेन-जेड 78 (0.2 प्रतिशत) घोल का छिड़काव लाभदायक रहता है. यदि पौधे में तना कैंकर का प्रकोप हो तो खराब शाखा को थोड़े स्वस्थ भाग सहित काट कर जला दें. खुले भाग या पूरे वृक्ष पर बोर्डो मिश्रण का छिड़काव करें. इसी माह नए पौधे तैयार करने के लिए कलम चढ़ाएं. अगस्त में डिलिशियस किस्में पककर तैयार हो जाती हैं. उन्हें अच्छी और सुंदर पैकिंग कर बाजार भेजने की व्यवस्था करें. रुईया और सेंजोस स्केल आदि कीटों की रोकथाम के लिए सितंबर में मेटासिस्टॉक्स (0.5 प्रतिशत) का छिड़काव करें. फलों को तुड़ाई-पूर्व गिरने से रोकने हेतु 20 पी. पी.एम. नेफ्थेलीन एसिटिक अम्ल (2 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी में) का छिड़काव अगस्त में जरूर करें.
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