जुगाड़ तकनीक बहुत काम की चीज है. इससे बड़े-बड़े काम आसान हो जाते हैं. वह भी बेहद कम खर्च में. ऐसा ही राजस्थान के धौलपुर के एक किसान ने कर दिखाया है. यह किसान पेड़-पौधों की पत्तियां, तना, गन्ने की खोई और अवशेष से जैविक खाद तैयार कर रहा है. गया प्रसाद नाम के इस किसान का जुगाड़ दूर-दूर तक चर्चा का विषय बना हुआ है.
गया प्रसाद नाम के ये किसान अपने खेतों में कई तरह की जैविक फसल उगाते हैं. इसमें जैविक हल्दी से लेकर जैविक गन्ने भी शामिल हैं. ये किसान अपने खेतों में जैविक गुड़ बनाकर लोगों को सप्लाई करते हैं. इन्होंने एमए और बीएड तक की पढ़ाई की है. अब वे जैविक खाद में नए प्रयोग कर रहे हैं.
किसान गया प्रसाद अपने खेतों में ही वर्मी कंपोस्ट खाद बनाते हैं और उसे खेतों में डाल कर जैविक खेती करते हैं. साथ ही परंपरागत खेती में सरसों, गेहूं, बाजरा, आलू समेत अन्य फसलों में वर्मी कंपोस्ट का ही प्रयोग कर रहे हैं. इस किसान ने बताया कि खेत से निकले अपशिष्ट, पेड़-पौधों के पत्ते, तने खेत में ही इकट्ठे कर देते हैं. फिर उससे खाद बनाई जाती है.
पेड़ पौधों के पत्ते और तनों के साथ गन्ने की खोई मिलाई जाती है. इसमें पशुओं का गोबर मिलाया जाता है. इसी गोबर को खेत में बनाए गड्ढे में सड़ाया जाता है. इस प्रक्रिया को पूरा करने में ज्यादा समय लगता है. इसलिए कंपोस्ट बनाने की एक नई विधि विकसित की गई है जिसमें केंचुए का प्रयोग किया जाता है. इसे वर्मी कंपोस्ट या केंचुआ खाद कहते हैं.
केंचुआ खाद प्लास्टिक, कूड़ा-करकट, फसल-अवशेष, गोबर, जूट के सड़े हुए बोरे आदि से बड़ी आसानी से बनाया जा सकता है. इसकी भी वही विधि है जैसी विधि ऊपर बताई गई है. इसमें सभी तरह के अवशेषों को गोबर के साथ मिलाकर खेत में बने गड्ढे में भर दिया जाता है. बारिश के समय केंचुए इसे वर्मी कंपोस्ट में तब्दील कर देते हैं.
इससे तैयार हुई खाद में वे सभी पोषक तत्व होते हैं जो फसलों को चाहिए. इस खाद में किसी भी प्रकार का दीमक भी नहीं लगता है. यह खाद पूरा पका हुआ होता है. केंचुओं के द्वारा बनाया गया यह खाद सबसे अच्छा माना जाता है. इसका इस्तेमाल सभी तरह की फसलों में किया जा सकता है. किसान चाहें तो इसके साथ जीवामृत का भी उपयोग कर सकते हैं, सरसों की खली और गुड़ का भी प्रयोग कर सकते हैं.
इस तरह के खाद बनाना कठिन जरूरी है, लेकिन फसलों और मिट्टी को बहुत फायदा है. अभी केमिकल खाद का प्रचलन बहुत अधिक है जिसे आसानी से खेतों में डाल दिया जाता है. लेकिन इसका बहुत बड़ा नुकसान फसलों पर और हमारी सेहत पर होता है. मिट्टी की उर्वरा शक्ति मारी जाती है, पानी प्रदूषित होता है और खान-पान में जहर की मात्रा बढ़ने से लोगों को तरह-तरह की बीमारियां घेरती हैं. इसकी तुलना में वर्मी कंपोस्ट बिल्कुल सुरक्षित है.(इनपुट/उमेश मिश्रा)
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