रासायनिक उर्वरक के बढ़ते प्रयोग के चलते खेतों की मिट्टी की सेहत खराब हो रही है. वहीं उत्तर प्रदेश में गिरती हुई मिट्टी की सेहत को सुधारने के लिए आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा एक खास तरह का प्रयोग भी किया जा रहा है. विश्वविद्यालय में 10 एकड़ से ज्यादा बंजर भूमि पर प्राकृतिक तरीकों से उपजाऊ बनाने का प्रयोग किया गया जो पूरी तरह सफल रहा. आज विश्वविद्यालय परिसर में कभी बंजर सी दिखने वाली जमीनों पर खूब फसल लह-लहा रही है. यहां तक की कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति के द्वारा बंजर से उपजाऊ हुई जमीनों पर रासायनिक उर्वरक की निर्भरता को भी कम करने के लिए प्रयोग किया जा रहा है जिसका सकारात्मक परिणाम अब दिखने लगा है. आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय के परिसर में बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने के साथ-साथ कैसे मिट्टी की सेहत को सुधारा जाए इस पर किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है.
उत्तर प्रदेश में आज भी 8 लाख हेक्टेयर से ज्यादा बंजर और अनुपजाऊ जमीन है. सरकार के द्वारा इन जमीनों को उपजाऊ बनाने के लिए प्रयास भी किया जा रहे हैं. इसी दिशा में आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ बिजेंद्र सिंह के द्वारा एक खास तरह का मॉडल तैयार किया गया है. विश्वविद्यालय परिसर में 10 एकड़ से ज्यादा बंजर जमीनों को प्राकृतिक विधि से उपजाऊ बनाया गया है. पिछले 1 साल से इन जमीनों पर धान और गेहूं की अच्छी पैदावार भी हो रही है. विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बिजेंद्र सिंह ने किसान तक को बताया कि उन्होंने गाय के गोबर और गोमूत्र को मिलाकर बीजामृत, जीवामृत के प्रयोग से बंजर जमीन को उपजाऊ ही नहीं बनाया बल्कि मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा भी बढ़ा दी है जिससे मिट्टी की सेहत में सुधार हुआ है.
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आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की बंजर जमीनों पर यहां के कुलपति डॉक्टर बिजेंद्र सिंह के द्वारा एक खास तरह का प्रयोग किया जा रहा है. उन्होंने परिसर के फॉर्म में एक चार्ट बनाया है जिसमें 2022 से शुरू किए गए प्रयोग में जमीन के पी.एच का स्तर और ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा को दर्शाया गया है. यहां खेतों में यूरिया की मात्रा को घटाने का प्रयास किया जा रहा है. कुलपति डॉ. बिजेंद्र सिंह का कहना है कि वह हर साल रासायनिक उर्वरक की मात्रा में 10 फ़ीसदी की कमी करते जा रहे हैं. इससे वह धीरे-धीरे रासायनिक उर्वरक के ऊपर हमारे खेतों की निर्भरता को कम करने का प्रयास कर रहे हैं जिससे कि आने वाले 5 से 6 सालों में प्राकृतिक विधि से भी भरपूर उत्पादन मिलेगा.
मिट्टी की सेहत में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा में लगातार गिरावट हो रही है. सामान्य रूप से जिस मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा अधिक होती है उसमें पैदावार अच्छी होती है और उपज की गुणवत्ता भी अच्छी रहती है. आमतौर पर खेती में रासायनिक खाद और कीटनाशक का इस्तेमाल करने पर मिट्टी में जैविक कार्बन की मात्रा घट जाती है और इससे वहां पैदावार भी प्रभावित होती है. आचार्य नरेंद्र देव विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ बिजेंद्र सिंह का कहना है कि एक खेत में प्राकृतिक तरीके से जैविक कार्बन की मात्रा को एक प्रतिशत बढ़ाने में 100 साल से भी अधिक का समय लगता है जबकि जिस खेत की मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा .5 फ़ीसदी से कम हो जाती है वह मिट्टी धीरे-धीरे बंजर हो जाती है. उनके फार्म में प्राकृतिक विधि के प्रयोग से खेतों में आयुर्वेदिक कार्बन की मात्रा में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. पिछले 1 साल में ही उनके प्रयोग के द्वारा इस तरह का बदलाव देखने को मिला है. उन्होंने बंजर जमीनों को उपजाऊ बनाने तथा मिट्टी की सेहत सुधारने के लिए गोबर ,गोमूत्र , गुड़ और सूखे पत्तों का इस्तेमाल किया है. जैविक और प्राकृतिक खेती के लिए यह तकनीक काफी फायदेमंद है. खेत में ऑर्गेनिक कार्बन को बढ़ाने के लिए किसानों को 1 किलो गोबर ,1 लीटर गोमूत्र, 50 ग्राम गुड़ और 10 लीटर पानी को अच्छे से घोल को मिलाकर 3 दिन रख दें. फिर खेत में सिंचाई के साथ इस प्रयोग करें. इससे मिट्टी की सेहत में बड़ा बदलाव दिखेगा.
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