रबी सीजन में बोए गए गेहूं का पौधा जड़ों से फूट कर बढ़ने लगा है. इस दौरान खेत में खरपतवार भी तेजी से बढ़ते हैं. किसान खरपतवार से फसल को बचाने के लिए खरपतवारनाशी दवाओं का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन, कई बार सही समय और मात्रा में लापरवाही करने पर गेहूं का पौधा बांझ भी हो सकता है. गेहूं का पौधा अधिक खरपतवारनाशी के असर को झेल तो जाता है पर वह बांझ हो जाता है. यानी उसमें बाली तो बनती है पर दाना नहीं बन पाता है. इससे उत्पादन घटता है और किसान को भारी नुकसान उठाना पड़ता है. किसानों को इस समस्या से बचाने के लिए कृषि एक्सपर्ट ने सही तरीके से दवाओं के इस्तेमाल को लेकर निर्देश जारी किए हैं.
रबी सीजन के लिए गेहूं की बुवाई अक्टूबर से शुरू हो चुकी है. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार पिछले सप्ताह तक देशभर में 293.11 लाख हेक्टेयर में गेहूं की बुवाई की जा चुकी है, जो बीते साल के 284.17 लाख हेक्टेयर से करीब 9 लाख हेक्टेयर अधिक है. खरीफ सीजन में अच्छे मॉनसून के चलते खेतों में पर्याप्त नमी के चलते किसान गेहूं की जमकर बुवाई कर रहे हैं.
मिट्टी में भरपूर नमी ने गेहूं के पौधे का अंकुरण तेज किया है. पौधे के साथ ही खेत में खरपतवार भी तेजी से पनप रहा है. यूपी, एमपी, बिहार, हरियाणा, पंजाब समेत अन्य राज्यों के गेहूं किसान खरपतवार से परेशान हैं. ऐसे में वह फसल में दवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं. कृषि एक्सपर्ट ने दवा की अत्यधिक मात्रा से पौधे को बांझ होने से बचाने के लिए सही टाइमिंग अपनाने की सलाह दी है.
एक्सपर्ट ने कहा कि किसान गेहूं की बुवाई के 35 दिन के बाद और 45 दिन से पहले खरपतवारनाशी का इस्तेमाल कर लें. 40-45 दिन के बाद खरपतवारनाशी दवाओं का इस्तेमाल करने से गेहूं के पौधे से बालियां टेढ़ी मेढी निकलने की बीमारी हो सकती है. जबकि, बालियों से बालियां भी निकलनी शुरू हो सकती हैं. कृषि एक्सपर्ट ने कहा कि 80 से 85 दिन पर अगर खरपतवारनाशी दवाओं के स्प्रे करने से बालियों में दाने ही नहीं पड़ेंगे, बालियां बांझ रह जाएंगी.
गेहूं की फसल में पौधे के बढ़ने के साथ ही इन दिनों खरपतवार में भी तेजी से बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है. गेहूं की फसल में प्रमुख रूप से होने वाले खरपतवारों के नाम - जंगली मटर, रस्सा, कंडाई, हिरणखुरी, जंगली पालक, मामा, जई, मोथा, बथुआ, चटरी-मटरी, सैंजी, अंकरी, अंकरा, जंगली जई, जंगली गाजर जैसे खरपतवार हैं.
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