अखरोट की खेती (Walnut Farming) को बागवानी की श्रेणी में रखा गया है. जो किसानों की आय को बढ़ाने में काफी मददगार है. हमारे देश में अखरोट का इस्तेमाल (Walnut Use) मिठाइयां बनाने से लेकर दवाइयां बनाने तक में किया जाता है. आयुर्वेद में इसे काफी महत्व दिया गया है. जिसके चलते हमारे देश में इसकी मांग बड़े पैमाने पर रहती है. अखरोट की खेती से मुनाफा कमाने के साथ-साथ यह हमारे स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक है. आईए जानते हैं कि किसान अधिक फायदे के लिए कैसे अखरोट की खेती कर सकते हैं.
भारत में अखरोट की खेती (Walnut Farming) के लिए उपयुक्त जगह हिमाचल, उत्तराखंड, कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश जैसे पर्वतीय और ठंडे इलाके हैं. अखरोट की खेती से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए 10 डिग्री तापमान होना जरूरी है. अखरोट की खेती के लिए गहरी दोमट मिट्टी और जल निकासी वाली जमीन काफी अच्छी होती है. इसके लिए 80 मिमी बारिश जरुरी होता है.
अखरोट की काफी अलग-अलग किस्में (Walnut Variety) हैं. जैसे- विलसन, काश्मीर बडिड, प्लेसैन्टिया, फ्रेन्क्वेट इत्यादि. इन क़िस्मों का इस्तेमाल किसानों द्वारा खूब किया जा रहा है. उच्च गुणवत्ता और मुनाफे के लिए किसान इन क़िस्मों का चयन करते हैं.
अखरोट की खेती करने के लिए सबसे पहले उसका पौधा तैयार करना पड़ता है और भारत के जलवायु के अनुसार इसके लिए सितंबर का महीना सबसे अच्छा होता है. इसके पौधे को तैयार होने में 2 से 3 महीने का समय लगता है. ऐसे में अखरोट की बुआई जनवरी के बीच में की जाती है. अखरोट की रोपाई करते समय 10 मीटर की दूरी पर गड्ढे खोदे जाते हैं और जमीन की सतह से 15 सेमी. ऊपर पौधे की रोपाई की जाती है. अखरोट की रोपाई से पहले 50 किलो गोबर की खाद, 150 ग्राम यूरिया, 500 ग्राम सुपर फॉस्फेट डाली जाती है.
आमतौर पर अखरोट के पौधे (Walnut Plants) रोपने के 10 से 12 साल में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इसके रोपाई के समय से 18 से 20 वर्षों के बाद पूरे तरीके से व्यावसायिक उत्पादन होता है.
एक पूरी तरह से तैयार अखरोट का पेड़ 150 किलोग्राम से अधिक का उत्पादन कर सकता है. हालांकि, एक अखरोट का पेड़ हर साल औसतन 40 से 50 किलोग्राम नट पैदा कर सकता है. आम तौर पर, उपज खेती और खेती की तकनीकी प्रथाओं पर भी निर्भर करता है.अखरोट की खेती से अच्छी आमदनी की जा सकती है. बाजार में इसकी कीमत 400 से 700 रुपए प्रति किलो होती है.
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