आज हमारी खेती केमिकल उर्वरकों और कीटनाशकों पर बहुत अधिक निर्भर हो गई है, जिससे मिट्टी की सेहत बिगड़ रही है और इंसानी स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा है. इन चुनौतियों का सबसे अच्छा समाधान जैविक खेती है, जिसमें जैव उर्वरकों का उपयोग करके हम न केवल अपनी धरती को बचा सकते हैं, बल्कि कम लागत में बेहतर और सुरक्षित फसल भीउगा सकते हैं. रासायनिक उर्वरकों की जगह जैव उर्वरकों को अपनाना कई मायनों में फायदेमंद है. ये मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा बढ़ाकर उसकी संरचना और पानी सोखने की क्षमता को बेहतर बनाते हैं. ये रासायनिक खादों की तुलना में काफी सस्ते होते हैं, जिससे किसानों की लागत घटती है.
साथ ही, ये पौधों को संतुलित पोषण देकर फसल की पैदावार और गुणवत्ता दोनों बढ़ाते हैं. सबसे अहम बात यह है कि ये पर्यावरण के लिए सुरक्षित हैं और इनसे उगाई गई फसलें केमिकल अवशेषों से मुक्त होती हैं, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं.
एजोटोबैक्टर गेहूं, मक्का, बाजरा, धान तिलहन और सब्जी वाली फसलों के लिए एक शक्तिशाली जैव उर्वरक है, मिट्टी में स्वतंत्र रूप से रहकर काम करता है. इसके दोहरे फायदे हैं: पहला, यह हवा से नाइट्रोजन खींचकर प्रति हेक्टेयर 25 से 30 किलोग्राम तक की पूर्ति करता है, जिससे यूरिया जैसे रासायनिक उर्वरकों की खपत घटती है. दूसरा, यह जिबरेलिक एसिड जैसे प्राकृतिक विकास वर्धक हार्मोन भी बनाता है, जो बीजों के अंकुरण को तेज करते हैं और पौधों की जड़ों और तनों की वृद्धि में सहायक होते हैं. अध्ययनों से यह साबित हुआ है कि इसके प्रयोग से न केवल मक्का और कपास जैसी फसलों की उपज में तक की वृद्धि होती है, बल्कि यह सूरजमुखी में तेल, आलू में स्टार्च और मक्का में प्रोटीन की मात्रा बढ़ाकर फसल की गुणवत्ता भी सुधारता है.
एजोटोबैक्टर जैव उर्वरक को तीन मुख्य तरीकों से इस्तेमाल किया जा सकता है. बीज उपचार के लिए, एक पैकेट (200 ग्राम) कल्चर को आधे लीटर पानी में घोलकर 10-12 किलो बीजों पर अच्छी तरह मिलाया जाता है और फिर उन्हें छाया में सुखाकर बुवाई की जाती है. जड़ उपचार विधि में, सब्जियों की पौध या आलू-गन्ने जैसी फसलों के टुकड़ों को रोपने से पहले 10-15 मिनट के लिए एजोटोबैक्टर के घोल में डुबोकर रखा जाता है. वहीं, भूमि उपचार के लिए, 5 किलो एजोटोबैक्टर कल्चर को 50 किलो सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट में मिलाकर खेत की अंतिम जुताई के समय पूरी मिट्टी में समान रूप से छिड़क दिया जाता है.
जैव उर्वरकों में राइजोबियम कल्चर का दलहनी फसलों चना, मटर, मूंग, अरहर, सोयाबीन, मूंगफली) के लिए विशेष महत्व है. जब इसे बीजों पर लगाया जाता है, तो इसके जीवाणु पौधों की जड़ों में घुसकर छोटी-छोटी गुलाबी गांठें (Nodules) बना लेते हैं. ये गांठें पौधे के लिए एक छोटी फैक्ट्री की तरह काम करती हैं, जो हवा से नाइट्रोजन खींचकर उसे पोषक तत्व में बदलती रहती हैं. इसके सही इस्तेमाल से प्रति हेक्टेयर खेत को 30 से 40 किलोग्राम नाइट्रोजन (लगभग 100 किलो यूरिया के बराबर) मिल सकती है और फसल की उपज में 10 से 20 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो सकती है.
बीजों को उपचारित करने के लिए, लगभग 100 ग्राम गुोड़ या चीनी को आधे लीटर गर्म पानी में घोलकर पूरी तरह ठंडा कर लें. ठंडा होने पर इसमें राइजोबियम कल्चर का एक पैकेट जो 200 ग्राम होता है, उसे अच्छी तरह मिलाएं. अब इस घोल को 10 किलोग्राम बीजों पर डालकर हल्के हाथों से मलें ताकि हर बीज पर एक परत चढ़ जाए. इसके बाद बीजों को छाया में 15-20 मिनट सुखाकर तुरंत बुवाई कर दें. बीजों पर फफूंदनाशक या कीटनाशक भी इस्तेमाल करना है, तो हमेशा FIR फफूंदनाशक, कीटनाशक, राइजोबियम क्रम का पालन करें, यानी कल्चर का प्रयोग सबसे आखिर में करें.
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