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गन्ने का कैंसर है लाल सड़न रोग, ऐसे करें पहचान और इलाज

गन्ने का कैंसर है लाल सड़न रोग, ऐसे करें पहचान और इलाज

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार लाल सड़न से संक्रमित खेत में तुरंत कोई अन्य रोग रोधी गन्ना किस्म की बुआई कम से कम एक साल तक न करें. सुविधानुसार गेहूं-धान- हरी खाद या उपयुक्त फसलों के साथ फसल चक अपनाकर ही बुआई करें. अधिक बारिश होने पर लाल सड़न से संक्रमित खेत का पानी किसी दूसरे खेत में रिसाव रोकने के लिए मेड़ बनाएं.

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गन्ने की फसलों में लगाने वाले रोगों की कैसे पहचान करें किसान गन्ने की फसलों में लगाने वाले रोगों की कैसे पहचान करें किसान

भारत गन्ने का प्रमुख उत्पादक देश है. यहां उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में इसकी सबसे ज्यादा खेती होती है और सबसे ज्यादा चीनी मिलें इन्हीं दो प्रदेशों में हैं. गन्ने की फसल में जहां पानी की बहुत जरूरत होती है वहीं इसमें रोग भी बहुत लगते हैं, जिसकी रोकथाम करने में किसानों को काफी पैसा खर्च करना पड़ता है. गन्ने की फसल में लगने वाला एक ऐसा ही रोग है लाल सड़न, जिसे रेड रॉट भी कहते हैं. इसे गन्ने के कैंसर के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि इस रोग को लगने के बाद फसल बर्बाद हो जाती है. इसलिए किसानों को इसका खासतौर पर ध्यान रखने की जरूरत है. इसकी पहचान के लिए पहले लक्षण जान लेते हैं.

उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद ने इस रोग के लक्षण बताए हैं. इसके अनुसार लाल सड़न एक फफूँद जनित रोग है. इस रोग के लक्षण माह अप्रैल से जून तक पत्तियों के नीचले भाग (लीफ शीथ के पास) से ऊपर की तरफ मध्य सिरा पर लाल रंग के धब्बे मोतियों की माला जैसे प्रदर्शित होते हैं. माह जुलाई-अगस्त से ग्रसित गन्ने की अगोले की तीसरी से चौथी पत्ती एक किनारे अथवा दोनों किनारों से सूखना शुरू हो जाती है,  फलस्वरूप धीरे-धीरे पूरा अगोला सूख जाता है. तना को लंबवत काटने पर अंदर का रंग लाल होने के साथ उस पर सफेद धब्बे भी दिखाई देते हैं. तना अंदर से सूंघने पर सिरके अथवा अल्कोहल जैसी गन्ध आती है. 

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लाल सड़न रोग से कैसे होगा बचाव

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार किसान रोग रोधी गन्ना किस्म की ही बुआई करें.

लाल सड़न से अधिक प्रभावित क्षेत्रों में 0238 किस्म की बुआई न करें. इसके स्थान पर अन्य स्वीकृत गन्ना किस्म की रोग रहित नर्सरी तैयार कर बुआई का कार्य करें.

बुआई के पूर्व कटे हुए गन्ने के टुकड़ों को 0.1 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम 50 WP अथवा थायोफेनेट मेथिल 70 WP फफूंदनाशी के साथ रासायनिक शोधन अवश्य करें.

मिट्टी का जैविक शोधन मुख्य तौर पर ट्राइकोडर्मा अथवा स्यूडोमोनॉस कल्चर से 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 100-200 किलोग्राम कम्पोस्ट खाद में 20-25 प्रतिशत नमी के साथ मिलाकर अवश्य करें. 

बुआई के पूर्व कटे हुए गन्ने के टुकड़ों को सेट ट्रीटमेन्ट डिवाइस (फफूंदनाशी 0.1 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम 50 WP या थायोफेनेट मेथिल 70 WP, 200 मिमी एच.जी. पर 15 मिनट) या हॉट वाटर ट्रीटमेन्ट (52 डिग्री से.ग्रे. पर 2 घण्टे) या एम.एच.ए.टी. (54 डिग्री से.ग्रे., 95-99 प्रतिशत आर्द्रता पर 2 घंटे 30 मिनट) के साथ शोधन अवश्य करें.

अप्रैल से जून तक खेत की निगरानी

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार किसान अप्रैल से जून महीने तक अपने गन्ने के खेतों की निगरानी करते रहें. पत्तियों के मध्य सिरा के नीचे रूद्राक्ष या मोती के माला जैसे धब्बे के आधार पर पहचान कर पौधो को जड़ सहित निकालकर नष्ट कर दें. उन्हें गड्ढे में 10 से 20 ग्राम ब्लिचिंग पाउडर डालकर ढक दें अथवा 0.2 प्रतिशत थायोफेनेट मेथिल के घोल की ड्रेचिंग करें. रोग दिखाई देने पर उपरोक्त प्रकिया माह जुलाई-अगस्त में भी अनवरत जारी रखें. 

माह अप्रैल से जून तक 0.1 प्रतिशत थायोफेनेट मेथिल 70 WP या कार्बेन्डाजिम 50 WP का पर्णीय छिड़काव करें.

अधिक बारिश होने पर लाल सड़न से संक्रमित खेत का पानी किसी दूसरे खेत में रिसाव रोकने के लिए मेड़ बनाएं.

लाल सड़न से प्रभावित क्षेत्रों में 10 प्रतिशत संक्रमण से अधिक वाले रोग ग्रस्त फसल की पेड़ी न लें.

लाल सड़न से संक्रमित खेत में तुरंत कोई अन्य रोग रोधी गन्ना किस्म की बुआई कम से कम एक साल तक न करें. सुविधानुसार गेहूं-धान- हरी खाद या उपयुक्त फसलों के साथ फसल चक अपनाकर ही बुआई करें.

संक्रमित गन्ने की कटाई के बाद संक्रमित अवशेषों को खेत से पूरी तरह बाहर निकाल कर नष्ट कर दें तथा गहरी जुताई कर फसल चक अपनाएं.

अन्य प्रदेशों से बीज गन्ना लाने से पूर्व वैज्ञानिकों और शोघ संस्थानों से रिकमेंडेशन लेनी चाहिए.

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