देश में इस साल मॉनसून का आगमन जल्दी हुआ है. मॉनसून की केरल में एंट्री के कुछ दिन में ही यह महाराष्ट्र पहुंचा. अब मॉनसून मध्य प्रदेश और राजस्थान के ज्यादातर क्षेत्र को कवर कर चुका है. इन तीनों ही राज्यों में खरीफ सीजन की प्रमुख फसल सोयाबीन का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है. तीनों राज्यों में किसान इस फसल की बुवाई की तैयारियों में जुटे हुए हैं. ऐसे में यहां के किसानों के लिए कृषि एक्सपर्ट ने जरूरी सलाह दी है, जिन्हें फॉलाे कर किसान अच्छे से फसल का ध्यान रख सकते हैं.
वर्तमान में इन तीनों राज्यों में ज्यादातर जगहों पर मॉनसून तो पहुंच चुका है, लेकिन कई जगहों पर मिट्टी काे पर्याप्त नमी देने लायक बारिश नहीं हुई है. ऐसे में जहां अच्छी बारिश नहीं हुई है, वहां के किसानों को सलाह दी जाती है कि वे अभी सोयाबीन की बुवाई न करें. किसानों को सलाह दी जाती है कि जब 3-4 बार बारिश होने या 100 मिमी बारिश हो जाने की स्थिति में ही सोयाबीन की बुवाई करें. इससे बीजों को पर्याप्त नमी मिलेगी और उनमें अुंकरण अच्छे से होगा.
कृषि वैज्ञानिकों की किसानों को सलाह है कि वे क्षेत्र की जलवायु के हिसाब से अनुकूल सोयाबीन की किस्मों को खेती के लिए चुनें. साथ ही उन्नत उत्पादन तकनीक को अपनाएं. वहीं बीज दर और बुवाई के लिए किसानों को सलाह दी जाती है कि वे सोयाबीन को सिफारिश के अनुसार, 45 सेमी कतार की दूरी पर बोएं.
बीज की बुवाई 2-3 सेमी की गहराई में करें और पौधे से पौधे की दूरी 5-10 सेमी रखें. सोयाबीन की खेती में बीज दर 60-70 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है. किसान बुवाई करते समय ध्यान रखें कि बुवाई के लिए उपलब्ध बीज का अंकुरण परीक्षण करें, बीज जब कम से कम 70 प्रतिशत अंकुरित हो जाएं तो बुवाई करें.
कृषि वैज्ञानिकों ने खरीफ फसलों के लिए बुवाई को लेकर कुछ तकनीकी जानकारी और बारीकियां भी बताई है. उन्हाेंने कहा कि पिछले कुछ सालों से खरीफ फसल के दौरान सूखे, बहुत ज्यादा बारिश और असामयिक बारिश की घटनाओं के कारण फसल प्रभावित होने की स्थितियां बन रही हैं. ऐसे में इन उलट परिस्थितियों से फसल का बचाव करने के लिए किसानों को सलाह दी जाती है कि वे सोयाबीन की बुवाई के लिए बीबीएफ (चौड़ी क्यारी प्रणाली) या रिज्ड फरो पद्धति (कूड़ मेढ़ प्रणाली) का इस्तेमाल करें.
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