मक्का, जिसे आमतौर पर 'कॉर्न' कहा जाता है, आजकल हर घर में विभिन्न रूपों में उपयोग होता है. मक्के के उत्पाद जैसे स्वीटकॉर्न, बेबीकॉर्न और पॉपकॉर्न आदि की मांग दिन-ब-दिन बढ़ रही है. खासकर जायद ऋतु में मक्का की खेती किसानों के लिए एक बेहतरीन लाभ दे सकती है. खरीफ और रबी की तुलना में कम समय में अधिक आमदनी देती है. यही कारण है कि इसकी खेती में तेजी से वृद्धि हो रही है. हालांकि, खरीफ और रबी मक्का के मुकाबले जायद मक्का का क्षेत्रफल कम है. फिर भी इसके उत्पादन से किसानों को अच्छा मुनाफा मिल रहा है क्योंकि इसके उत्पादन की अवधि 55 से 70 दिन के बीच होती है, जिससे जल्दी मुनाफा मिलता है.
स्वीट कॉर्न, जिसे अमेरिकन भुट्टा भी कहा जाता है, शहरी इलाकों में विशेष रूप से लोकप्रिय है. इसकी तुड़ाई कच्चे भुट्टे के रूप में परागण के 18 से 22 दिन बाद की जाती है. स्वीट कॉर्न की खेती उत्तर प्रदेश के पर्यटक जिलों और शहरी क्षेत्र के जिलों में अधिक लाभप्रद साबित हो रही है. स्वीट कॉर्न की प्रमुख किस्में मिष्ठी, हाई ब्रिक्स 39, हाई ब्रिक्स 53, कैंडी, सेंट्रल मक्का वी. एल. स्वीट कॉर्न 1 और एन 75 हैं. इसकी बुवाई 15 फरवरी तक कर देनी चाहिए. प्रति एकड़ बीज की मात्रा 10 किलो होनी चाहिए, जिससे प्रत्येक एकड़ में लगभग 20,000 भुट्टे मिलते हैं. एक एकड़ में स्वीट कॉर्न की फसल 50 से 60 दिन में तैयार होती है और इसकी अनुमानित उपज 60,000 से 70,000 रुपये तक हो सकती है.
बेबी कॉर्न, जिसे शिशु मक्का भी कहा जाता है, मक्का के अनिषेचित भुट्टे होते हैं जिन्हें सिल्क आने के 1 से 3 दिन के भीतर तोड़ लिया जाता है. बेबी कॉर्न की खेती का एक प्रमुख लाभ यह है कि इसकी बिक्री के लिए अच्छा बाजार उपलब्ध है. बेबी कॉर्न की खेती से किसानों को प्रति एकड़ 40,000 से 45,000 रुपये तक का मुनाफा मिल सकता है. बेबी कॉर्न को फरवरी से नवंबर के बीच बोया जा सकता है. उत्तर प्रदेश में बेबी कॉर्न की प्रमुख किस्में आई.एम.एच.बी 1539, सेंट्रल मक्का के, वी.एल. बेबी कॉर्न 2, एच.एम. 4, जी 5414 हैं. इन किस्मों के माध्यम से बेबी कॉर्न की खेती को बेहतर तरीके से किया जा सकता है.
बेबी मक्का में पौधों की संख्या 40,000 प्रति एकड़ रखनी चाहिए, जिसके लिए प्रति एकड़ 10 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है. इसकी उपज 6 से 7 क्विंटल प्रति एकड़ होती है, जबकि बिक्री मूल्य 7 से 8 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक मिलता है. इस प्रकार, प्रति एकड़ लाभ 40,000 से 45,000 रुपये तक हो सकता है.
बसंत ऋतु में आलू और सरसों की फसल के बाद जायद मक्का के दाने के लिए खेती की जा सकती है. इसे शून्य जुताई प्रणाली में भी उगाया जा सकता है, विशेष रूप से आलू के बाद सीधा पाटा लगाकर उसकी सीधी बुवाई की जा सकती है. बसंतकालीन मक्का की बुवाई 20 जनवरी से 20 फरवरी के बीच करने से अधिकतम लाभ मिलता है. साथ ही पानी की बचत भी होती है. हालांकि, इसकी बुवाई 20 मार्च तक भी की जा सकती है. उत्तर प्रदेश में पीएमएच 10, पीएमएच 8, पीएमएच 7 और डीकेसी 9108 जैसी किस्मों की खेती इस ऋतु में सफलतापूर्वक की जा सकती है. मक्के की फसल मई के अंतिम पखवाड़े से लेकर जून के पहले पखवाड़े तक पककर तैयार हो जाती है. इसकी औसत उपज 20-25 क्विंटल प्रति एकड़ होती है.
मक्के की बुआई हमेशा लाइनों में करनी चाहिए ताकि हर पौधे को पर्याप्त जगह मिल सके. किस्म के अनुसार बुआई की दूरी अलग-अलग हो सकती है, और यदि यह दूरी सही से न रखी जाए तो उत्पादन में कमी हो सकती है.
इस तरह जायद मक्का की खेती किसानों के लिए एक लाभकारी अवसर प्रदान करती है.
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