देश के कई राज्यों में वर्तमान समय में तापमान मे उतार-चढ़ाव और बारिश का दौर जारी है. वहीं देश के कई राज्यों में रबी सीजन की प्रमुख फसलें और दलहनी फसलें तैयार होने वाली है. इस बीच मौसम में उतार-चढ़ाव से किसानों को फसल नुकसान होने की आशंका दिख रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि बारिश से फसलों में रोग लगने के खतरे बढ़ जाती हैं और फसलों को नुकसान हो सकता है. किसानों को इस नुकसान से बचाने के लिए और अच्छी पैदावार दिलाने के लिए बिहार कृषि विभाग ने दलहनी फसलों जैसे, चना, मटर, मसूर, गेंहू और मिर्च की फसल पर विशेष ध्य़ान देने को कहा है. साथ ही इन लगने वाले रोगों के प्रबंधन के लिए एडवाइजरी भी जारी की है. कृषि विभाग कि ओर से बताया गया है कि इन फसलों में जब रोग लग जाए तो उसका बचाव कैसे करें. आइए जानते हैं.
इस मौसम में जहां तापमान में बहुत तेजी से उतार-चढ़ाव हो रहा है, ऐसी स्थिति में चना, मटर, मसूर और गेहूं में हरदा रोग के लगने के खतरे बढ़ जाते हैं. दरअसल बारिश होने के बाद तापमान में गिरावट होने से इस रोग के आक्रमण फसलों पर तेजी से बढ़ने लगते हैं. इस रोग के लगने पर चने के पौधों कि पत्तियों, टहनियों और फलियों पर गोलाकार सफेद और भूरे रंग के फोफले बन जाते हैं. जिससे फलियां खराब हो जाती हैं. मसूर में भी इसी तरीके के फोफले बन जाते हैं जो अंत में पौधों को सूखा देते हैं.
#दलहनी फसल में #हरदा रोग और #स्टेमफिलियम #ब्लाईट रोग की पहचान और प्रबंधन हेतु आवश्यक सुझाव। @VijayKrSinhaBih @SAgarwal_IAS @dralokghosh @abhitwittt @BametiBihar @icarindia @AgriGoI @IPRD_Bihar @Bau_sabour @Rpcau_pusa pic.twitter.com/rZPRE94HHj
— Agriculture Department, Govt. of Bihar (@Agribih) March 2, 2024
बात करें इस हरदा रोग कि तो ये फसलों पर हर साल नहीं लगता है, लेकिन इस रोग के लगने से किसानों को काफी नुकसान होता है. ऐसे में इस रोग से बचने के लिए किसानों को बुवाई के समय ही रोग रोधी किस्मों का चयन करना चाहिए. इसके अलावा जब फसलों पर इस रोग के लक्षण दिखने शुरु हो जाएं तब प्रोपिकोनाजोल 500 मिली में पानी का घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर में छिड़काव करें. साथ ही मैंकोजेब 2 किलो और कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 किलो का पानी में घोल बनाकर फसलों पर छिड़काव करें.
यह रोग मुख्य चना और मसूर में लगने वाला एक प्रमुख रोग है. इस रोग के लगने पर पौधों की पत्तियों पर बहुत छोटे-छोटे भूरे और काले रंग के धब्बे बन जाते हैं. जिसके बाद पहले पौधों के निचली भाग की पत्तियां खराब होने लगती हैं. इसके बाद ये धीरे-धीरे ऊपरी भाग पर फैलती जाती है और फसलों को नष्ट कर देती है. जिससे किसानों के उत्पादन और क्वालिटी पर असर देखने को मिलता है.
सबसे पहले तो किसान पौधों पर इस रोग के लक्षण को देखते ही उसे उखाड़ कर नष्ट कर दें या जला दें. इसके अलावा मैंकोजेब 2 किलो और कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 किलो का पानी में घोल बनाकर फसलों पर छिड़काव करें. इससे किसानों को इस रोग से छुटकारा मिलेगा.
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