भारत में फलों की कमी नहीं है. यहां कई प्रकार के फलों का बंपर उत्पादन होता है. अब तो भारत में कई किसान विदेशों में मिलने वाले महंगे फलों की खेती भी कर रहे हैं. आज हम आपको पपीते की खेती में पौधे के बौन रह जाने की समस्या को लेकर जानकारी देने जा रहे हैं और साथ ही इस समस्या को दूर करने के लिए जरूरी उपाय भी बताएंगे. दरअसल पपीता भी एक विदेशी मूल का फल है, जिसकी खेती की शुरुआत दक्षिण मैक्सिको और कोस्टा रिका में हुई थी, बाद में यह फल भारत पहुंचा.
आज के समय में देश में पपीते की खेती बड़े स्तर पर होती है और ऐसा लगता है कि यह यहीं का फल है. स्वाद और पोषण में लाजवाब यह फल अपने व्यवसायिक रूप से भी किसानों के लिए लाभकारी है. यह गांव-शहर सभी जगहों के बाजारों में आसानी से और किफायती कीमत में उपलब्ध रहता है. गरीब-अमीर सभी लोग इस फल को पसंद करते हैं. ऐसे में जानिए पपीते के पौधे के बौना रह जाने के कारण और उपाय...
भारत के ज्यादातर हिस्सों में पपीते की खेती संभव है. लेकिन कई बार इसका पौधा बौना का बौना रह जाता है और खाद-पानी देने के बाद भी नहीं बढ़ता है. दरअसल, ऐसा सफेद मक्खी की वजह से होता है और फिर खाद भी पौधे को नहीं बढ़ा पाती है.
जब पौधे में मक्खी लगती है तो इस अवस्था को निम्फ कहा जाता है.
मक्खी चपटी, अंडाकार और स्केल-जैसे दिखाई देती है. अलग-अलग प्रजाति की इस मक्खी का रंग पीला-सफेद से लेकर काला भी हो सकता है. यह मक्खी एक पत्ते पर ठहरकर उसकी निचली सतह से जुड़ जाती है और वहां से हिलती नहीं हैं. बाद में धीरे-धीरे यह पौधे के उस भाग को खाने लगती है.
अगर पौधा छोटा हो यानी कम समय का हो तो ऐसी अवस्था में सफेद मक्खी का हमला पौधे के विकास को काफी हद तक रोक सकता है. सफेद मक्खियां पौधे का रस चूस लेती है और पोषक तत्वों को कम करती हैं, जिससे पौधा बौना रह जाता है और पत्तियां पीली पड़कर बदरंग हो जाती हैं. कई बार गंभीर संक्रमण के चलते पत्तियां मुरझा भी जाती हैं.
सफेद मक्खियां 15 डिग्री और 35 डिग्री तापमान के बीच गर्म परिस्थितियों में पनपती हैं. हालांकि ज्यादा तापमान मक्खियां के विकास को बाधित करने में सक्षम है और उनके जिंदा रहने की दर घट जाती है. इसलिए यह मध्यम से उच्च नमी में सुरक्षित रहती हैं और शुष्क परिस्थितियां में नष्ट होने लगती है.
अगर पपीते का पौधा बौना रह जाए तो उसमें खाद की जगह एसिटामिप्रिड 60 से 80 ग्राम प्रति एकड़ की दर से डालना चाहिए. इसके अलावा डायफेंथियुरोन 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से डाला जा सकता है. साथ ही पौधे पर इमिडाक्लोप्रिड 2 से 3 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी में डालकर छिड़काव करने से भी इस समस्या से राहत मिल सकती है. इसके प्रयोग से पौधा बौना नहीं होगा और उत्पादन बढ़ने की संभावना ज्यादा रहेगी.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today