ओडिशा में चक्रवात दाना का भारी असर देखा जा सकता है. सबसे ज्यादा प्रभाव किसानों और उनकी खेती पर पड़ने की आशंका है. ओडिशा के तटीय जिलों में धान की खेती बड़े पैमाने पर होती है. ऐसे में चक्रवात की वजह से धान की फसल बर्बाद होने की कगार पर है. चक्रवाती तूफान में तेज बारिश और तेज हवाओं से धान के पौधे गिर सकते हैं और खराब हो सकते हैं. इसे देखते हुए कई वैज्ञानिकों ने खेत में खड़ी फसल को बचाने और कटाई के बाद रखी उपज की सुरक्षा के लिए एहतियाती उपाय अपनाने की सलाह दी है.
राज्य के कम से कम आठ जिलों - गंजम, पुरी, जगतसिंहपुर, जाजपुर, केंद्रपाड़ा, भद्रक, बालासोर और मयूरभंज - में भारी बारिश होने की संभावना है और इन इलाकों में खड़ी धान की फसलें डूब सकती हैं. इसे देखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तहत राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (एनआरआरआई) ने एक एडवाइजरी जारी की है, जिसमें वैज्ञानिकों ने धान की खेती करने वाले किसानों से फसल के नुकसान को कम करने के लिए एहतियाती कदम उठाने की अपील की है.
NRRI के निदेशक डॉ. ए के नायक ने कहा कि किसानों को स्थिति से घबराना नहीं चाहिए और सलाह का ईमानदारी से पालन करना चाहिए. वैज्ञानिकों ने किसानों से कहा है कि वे धान की फसल में जल निकासी के लिए नालियां खुली रखें, ताकि खेतों से अतिरिक्त पानी निकल जाए और जलभराव से होने वाले नुकसान को कम किया जा सके. सलाह में कहा गया है, "काटे गए चावल को भी सुरक्षित स्थानों पर ठीक से रखना चाहिए और तिरपाल से ढकना चाहिए, ताकि लंबे समय तक बारिश के कारण होने वाले नुकसान से बचा जा सके."
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वैज्ञानिकों की सलाह में कहा गया है कि बारिश रुकने के बाद किसानों को नमी कम करने के लिए धान के दानों को तुरंत एक या दो दिन धूप में सुखाना चाहिए और फिर अनाज को अच्छी क्वालिटी वाले बैग में भरकर लंबे समय तक उनकी क्वालिटी, बनावट, रंग, सुगंध और स्वाद बनाए रखना चाहिए.
सलाह में कहा गया है, "स्टोर किए गए अनाज में संक्रमण की स्थिति में, बेहतर परिणाम के लिए कम से कम सात से दस दिनों तक अनाज के बैगों को बिना किसी अंतराल या रिसाव के मोटे तिरपाल से ढककर काफी हवाबंद कंटेनरों में एल्यूमीनियम फॉस्फाइड की गोलियों का उपयोग करके धूमन (फ्यूमिगेशन या धुआं करना) की जरूरत होती है."
एल्यूमीनियम फॉस्फाइड का उपयोग कीटों और चूहों आदि को नियंत्रित करने के लिए फ्यूमिगेशन के रूप में किया जाता है. सलाह में कहा गया है, "जिन खेतों में फसलें देर से बोई गई हैं, वहां बारिश के बाद कैटरपिलर और ब्राउन प्लांट हॉपर के झुंड का भी ध्यान रखा जाना चाहिए."
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वैज्ञानिकों का यह सुझाव ऐसे समय में आया है जब ओडिशा के पुरी तट पर चक्रवात दाना का खतरा है. इस चक्रवात से 120 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से हवाएं चलेंगी. साथ ही तेज बारिश होगी. ओडिशा के अलावा बंगाल में भी इस तरह के मौसम का पूर्वानुमान दिया गया है. ओडिशा में धान की फसल प्रमुख है जिस पर दाना चक्रवात का खतरा मंडरा रहा है. अभी खेतों में तैयार फसल खड़ी है जबकि कुछ किसानों ने धान की कटाई कर खलिहानों में उपज को रखा है. ऐसे में उपज को बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने सलाह जारी की है.
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