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किसानों ने ढूंढा पराली का सस्ता और टिकाऊ उपाय, कमाई बढ़ाने में भी है कारगर

किसानों ने ढूंढा पराली का सस्ता और टिकाऊ उपाय, कमाई बढ़ाने में भी है कारगर

पलाना गांव के किसान सुनील राणा ने बताया कि वह करीब 20 किसानों से पराली इकट्ठा करके एक शराब कंपनी को बेचते हैं, जिससे उन्हें 170 रुपये प्रति क्विंटल की कमाई होती है, जबकि किसानों को पराली न जलाने के लिए सरकार से 1,000 रुपये प्रति एकड़ इंसेंटिव के रूप में मिलते हैं.

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पराली प्रबंधन मशीन पराली प्रबंधन मशीन

हरियाणा में कुछ किसान ऐसे भी हैं जिन्होंने पराली का ठोस उपाय ढूंढ लिया है. ये किसान पराली जलाने के बजाय उससे कई काम की चीजें बना रहे हैं. इससे उन्हें कमाई तो हो ही रही है, साथ ही पर्यावरण की सुरक्षा भी हो रही है. हम यहां बात कर रहे हैं करनाल जिले के किसानों की जो पराली से कई काम की चीजें बना रहे हैं और बेच कर कमाई कर रहे हैं. करनाल के इन किसानों ने अपने आसपास के किसानों के लिए नजराना पेश किया है. वे बाकी किसानों को प्रेरित कर रहे हैं कि पराली को जलाए बिना उससे कई तरह के फायदे लिए जा सकते हैं.

स्ट्रॉ बेलर, हैप्पी सीडर और पैडी स्ट्रॉ चॉपर जैसी मशीनों का इस्तेमाल करके किसान पराली को जैव ईंधन और पशु आहार में बदल रहे हैं. उपलाना गांव के किसान सुनील राणा ने 'दि ट्रिब्यून' को बताया कि वह करीब 20 किसानों से पराली इकट्ठा करके एक शराब कंपनी को बेचते हैं, जिससे उन्हें 170 रुपये प्रति क्विंटल की कमाई होती है, जबकि किसानों को पराली न जलाने के लिए सरकार से 1,000 रुपये प्रति एकड़ इंसेंटिव के रूप में मिलते हैं.

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एक अन्य किसान जतिंदर कुमार ने बताया कि वे पिछले तीन सालों से पराली को बंडल बनाकर फैक्ट्रियों को 180-190 रुपये प्रति क्विंटल पर बेचते हैं. सोमनाथ, जिन्हें सब्सिडी पर बेलर मशीन मिली है, अपने पराली निपटान के काम में 50 मजदूरों को रोजगार देते हैं. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जैव ईंधन (बायोफ्यूल) की मांग पराली के प्रबंधन को बढ़ावा दे रही है. कृषि उपनिदेशक डॉ. वजीर सिंह ने बताया कि करीब 1,640 किसानों को पराली प्रबंधन मशीनरी के लिए परमिट मिल चुके हैं और वेरिफिकेशन का काम पूरा होने के बाद सरकार सब्सिडी देगी.

स्ट्रॉ बेलर मशीन का फायदा

किसान सबसे अधिक स्ट्रॉ बेलर मशीन का उपयोग कर रहे हैं क्योंकि इसका इस्तेमाल आसान है और इसके फायदे कई हैं. स्ट्रॉ बेलर मशीन ट्रैक्टर के साथ लगाई जाती है जो पराली को कंप्रेस करके बड़ी गांठों में बदल देती है. इससे पराली की गांठ को ढोना और किसी निश्चित स्थान पर पहुंचाना आसान हो जाता है. जैसे, पराली को बायोफ्यूल बनाने के लिए किसी फैक्ट्री में भेजना हो तो गांठ के चलते इसमें आसानी होती है. अगर पराली से चारा बनाना हो तो उससे भी गांठ से आसानी होती है. यहां तक कि उस गांठ को चारे के लिए उपचारित कर पशुओं को खिलाने में इस्तेमाल किया जा सकता है. 

हैपी सीडर ने कम किया आसान

स्ट्रॉ बेलर मशीन की तरह हैपी सीडर मशीन भी किसानों का काम आसान कर रही है. पराली को निपटाने में इस मशीन का योगदान बहुत अहम है. यह मशीन एक साथ दो काम करती है, इसलिए किसान इसका प्रयोग खेती को सुविधाजनक बनाने में कर सकते हैं. हैपी सीडर मशीन खेत में बीज की बुवाई करने के साथ पराली को भी हटाती है. किसानों की सबसे बड़ी चिंता होती है कि वे खेत से पराली हटाएं और उसमें बीज की बुवाई करें. यह मशीन दोनों काम एक साथ करती है. यहां तक कि पराली को पलवार में बदल कर खेतों में डालती है जो बाद में खाद में बदल जाता है.

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