सर्दी का मौसम आते ही सबके सामने ठंड एक समस्या बनकर खड़ी हो जाती है. जब सर्दी अपनी चरम सीमा पर होती है, उस वक्त किसानों को भी अपनी फसलों को बचाने की चिंता सताने लगती है. वहीं लगातार मौसम में बदलाव और तापमान में गिरावट की वजह से फसलों और पौधों पर ठंड और पाले की समस्या बढ़ जाती है. अगर समय रहते इन फसलों पर नियंत्रण नहीं पाया जाए तो किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है.
वहीं रबी की फसलों पर सबसे अधिक पाले का प्रकोप देखा जाता है. इसमें गेहूं और चने जैसी फसलों और पौधों को ठंड और पाले से सबसे अधिक नुकसान दिसंबर महीने से लेकर फरवरी महीने तक होता है. ऐसे में किसानों को ठंड और पाले से मरने से बचाने के लिए आसान तरीका अपनाना चाहिए.
जब भी पाला पड़ने की संभावना हो या मौसम विभाग की ओर से पूर्वानुमान या ठंड की चेतावनी दी जाए, तो गेहूं और चने की फसलों में हल्की सिंचाई करनी चाहिए. दरअसल सिंचाई करने से तापमान 0 डिग्री से नीचे नहीं जाता और फसलों को पहले से हो रहे नुकसान से बचाया जा सकता है. फसलों में सिंचाई करने से तापमान 0.5 से 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है. ऐसे में फसल में पाले का प्रभाव नहीं होता है. इसके अलावा शाम के समय सूखी घास फूस और उपलों को जलाकर खेत के नजदीक धुंआ करें.
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पाले से सबसे अधिक नुकसान नर्सरी वाले पौधों को होता है. नर्सरी वाले पौधों को पाले से बचाने के लिए रात के समय प्लास्टिक की चादर से ढकने की सलाह दी जाती है. ऐसा करने से प्लास्टिक के अंदर का तापमान 2 से 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है. इससे सतह का तापमान सामान्य बना रहता है जिससे पौधे पाले से बच जाते हैं, लेकिन यह महंगी तकनीक है. वहीं अगर आपको सस्ती तकनीक अपनानी है तो आप पुआल का इस्तेमाल पौधों को ढकने के लिए कर सकते हैं. वहीं पुआल का प्रयोग दिसंबर से फरवरी महीने तक करें. मार्च का महीना आते ही इसे हटा दें.
जिस दिन पाला पड़ने की संभावना हो उस दिन फसलों पर सल्फर के 80 WDG पाउडर को 03 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें. इसके बाद खेतों की सिंचाई कर दें. इससे फसलों को पाले से बचाया जा सकता है. इसके अलावा अगर हम केमिकल्स या रसायन के माध्यम से पाले के प्रभाव को कम करना चाहते हैं, तो हमें थायो यूरिया की एक ग्राम मात्रा दो लीटर पानी में घोलकर के 15 दिन के अंतराल में फसल पर छिड़काव करना चाहिए.
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