आईसीएआर, पूसा ने किसानों के लिए फसल एडवाइजरी जारी की है. एडवाइजरी में कहा गया है कि मौजूदा मौसम में किसान गाजर की बुवाई मेड़ों पर कर सकते हैं. बुवाई से पहले मिट्टी में उचित नमी का ध्यान जरूर रखें. गाजर की उन्नत किस्म पूसा रूधिरा का बीज दर 2.0 कि.ग्रा. प्रति एकड़ की दर से बुवाई करने की सलाह दी जाती है. पूसा ने कहा है कि बुवाई से पहले बीज को केप्टान @ 2 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें और खेत में देसी खाद, पोटाश और फॉस्फोरस उर्वरक जरूर डालें. गाजर की बुवाई मशीन द्वारा करने से बीज 1.0 कि.ग्रा. प्रति एकड़ की जरूरत होती है जिससे बीज की बचत और उत्पाद की क्वालिटी भी अच्छी रहती है.
पूसा ने कहा है कि इस मौसम में किसान इस समय सरसों साग-पूसा साग-1, मूली- जापानी व्हाईट, हिल क्वीन, पूसा मृदुला (फ्रेच मूली), पालक- आल ग्रीन,पूसा भारती, शलगम- पूसा स्वेती या स्थानीय लाल किस्म, बथुआ- पूसा बथुआ-1, मेथी-पूसा कसुरी, गांठ गोभी-व्हाईट वियना, पर्पल वियना और धनिया- पंत हरितमा या संकर किस्मों की बुवाई मेड़ों (उथली क्यारियों) पर करें. बुवाई से पहले मिट्टी में उचित नमी का ध्यान जरूर रखें.
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यह मौसम में ब्रोकली, फूलगोभी और बंदगोभी की पौधशाला तैयार करने के लिए उपयुक्त है. पौधशाला भूमि से उठी हुई क्यारियों पर ही बनाएं. जिन किसानों की पौधशाला तैयार है वह मौसस को ध्यान में रखते हुए पौध की रोपाई ऊंची मेड़ों पर करें. मिर्च और टमाटर के खेतों में विषाणु रोग से ग्रसित पौधों को उखाड़कर जमीन में गाड़ दें. यदि प्रकोप अधिक है तो इमिडाक्लोप्रिड़ @ 0.3 मि.ली. प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें. किसान गुलाब के पौधों की कटाई-छटाई करें. कटाई के बाद बाविस्टीन का लेप लगाएं ताकि कवकों का आक्रमण न हो.
इस मौसम में गेंदे की तैयार पौध की मेड़ों पर रोपाई करें. किसान ग्लेडिओलस की बुवाई भी इस समय कर सकते हैं. किसानों को सलाह है कि खरीफ फ़सलों (धान) के बचे हुए अवशेषों (पराली) को ना जलाएं क्ंयोकि इससे वातावरण में प्रदूषण ज़्यादा होता है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है. इससे उत्पन्न धुंध के कारण सूर्य की किरणें फसलों तक कम पहुचती हैं, जिससे फसलों में प्रकाश संश्लेषण और वाष्पोत्सर्जन की प्रकिया प्रभावित होती है. इससे पौधों में भोजन बनाने में कमी आती है. इस कारण फसलों की उत्पादकता और क्वालिटी प्रभावित होती है.
किसानों को सलाह है कि धान के बचे हुए अवशेषों (पराली) को जमीन में मिला दें. इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है. साथ ही यह पलवार का भी काम करती है जिससे मिट्टी से नमी का वाष्पोत्सर्जन कम होता है. नमी मिट्टी में संरक्षित रहती है. धान के अवशेषों को सड़ाने के लिए पूसा डीकंपोजर कैप्सूल का उपयोग @ 4 कैप्सूल/हेक्टेयर किया जा सकता है. मौसम को ध्यान में रखते हुए धान की फसल यदि कटाई योग्य हो गई तो कटाई शुरू करें. फसल कटाई के बाद फसल को 2-3 दिन खेत में सुखाकर गहाई कर लें. उसके बाद दानों को अच्छी प्रकार से धूप में सूखा लें. भंडारण के पूर्व दानों में नमी 12 प्रतिशत से कम होनी चाहिए.
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