केंद्र सरकार ने लक्ष्य रखा है कि दिसंबर 2027 तक भारत दलहन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो जाएगा. इसलिए अब किसानों को उम्मीद है कि उनकी दलहन की फसल का सही दाम मिलेगा. लेकिन दाम तो तब मिलेगा जब अच्छी पैदावार होगी. अच्छी पैदावार के लिए खरपतवारों का नियंत्रण बहुत जरूरी है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) से जुड़े वैज्ञानिकों प्रदीप राजपूत, आदेश सिंह, रविंद्र कुमार राजपूत और दुर्गेश कुमार मौर्य ने अपने एक लेख में कहा है कि दलहन की कम उत्पादकता का एक मुख्य कारण खरपतवारों की उपस्थिति है. एक अनुमान के अनुसार दलहनी फसलों में लगभग 15-45 प्रतिशत तक उपज में कमी केवल खरपतवारों के कारण होती है.
देश की कृषि अर्थव्यवस्था में जाड़े के मौसम (अक्टूबर से मई के मध्य) में उगाई जाने वाली दलहनी फसलों का विशेष महत्व है. दलहनी फसलें प्रोटीन का उत्तम स्रोत होती हैं. इनमें लगभग 20 से 28 प्रतिशत तक बेहतर गुणवत्तायुक्त प्रोटीन पाया जाता है. दालें, देश का मुख्य आहार हैं. और भारत का दलहन क्षेत्रफल एवं उत्पादन की दृष्टि से विश्व में प्रथम स्थान है. यहां वर्ष 2020-21 में लगभग 25.58 मिलियन टन कुल दलहन उत्पादन हुआ था, लेकिन दलहन उत्पादकता अन्य देशों की अपेक्षा काफी कम है.
ये भी पढ़ें: Farmers Protest: दिल्ली-हरियाणा के आंदोलनकारियों को महाराष्ट्र के किसानों का समर्थन, प्याज की एमएसपी मांगी
फसलों में सर्वाधिक हानि खरपतवारों से होती हैं. खरपतवार अवांछित पौधे होते हैं जिनकी एक निश्चितस्थान व समय पर आवश्यकता नहीं होती है और बिना बोए अपने आप उग जाते हैं. इसके कारण खरपतवारों व फसलों के बीच पौषक तत्वों, जल, स्थान, प्रकाश आदि के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती हैं.
प्राकृतिक गुण के आधार पर इसकी पत्तियां लम्बी, संकरी तथा सामान्यतः शिरा-विन्यास वाली, तना बेलनाकार तथा अग्रशिखा शिश्नच्छद से ढका होना, जड़े सामान्यतः रेशेदार तथा अपस्थानिक ढंग की होती है. सेज वर्गीय खरपतवार भी घास की तरह ही दिखते हैं, परन्तु इनका तना बिना जुड़ा हुआ, ठोस तथा यदा-कदा गोल की अपेक्षा तिकोना होता है.
ये भी पढ़ें: Onion Price: किसान ने 443 किलो प्याज बेचा, 565 रुपये घर से लगाने पड़े, निर्यात बंदी ने किया बेहाल
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today