देश भर के किसान पारंपरिक खेती छोड़ अब कुछ हटकर करने की कोशिश कर रहे हैं. इस प्रयास में किसान अलग-अलग फसलों का चुनाव कर उसकी खेती करना पसंद करते हैं. ऐसे में देश के कई किसान ऐसे हैं जो आम फसलों की खेती ना करते हुए अब कमलम यानी ड्रैगन फ्रूट की खेती करते नजर आ रहे हैं. आपको बता दें कि ड्रैगन फ्रूट में कई तरह के विटामिन और मिनरल्स पाए जाते हैं. इसमें विटामिन सी, एंटीऑक्सीडेंट और फाइबर भरपूर मात्रा में मौजूद होता है, जो रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ाता है और पाचन संबंधी समस्याओं को भी दूर करता है.
यह फल गठिया और हृदय संबंधी बीमारियों को दूर करने में भी मददगार साबित होता है. जिस वजह से इन दिनों ड्रैगन फ्रूट यानी कमलम की मांग लगातार बढ़ती जा रही है. ऐसे में किसान कमलम की खेती कर अधिक कमाई कर सकते हैं. वो कैसे आइए जानते हैं.
कमलम की खेती 8.0 से 9.0 लाख रुपये के शुरुआती निवेश से शुरू की जा सकती है. इसे कमाई वाला बिजनेस कहा जा सकता है. इस फसल को गहन प्रबंधन (intensive management) कार्यों की आवश्यकता नहीं होती है. यहां तक कि आसपास के शहर के बाजारों में भी इसकी खुदरा कीमत 100-120 रुपये से ज्यादा मिलती है. किसान इसके दूसरे वर्ष से ही आय अर्जित कर सकते हैं, तीसरे वर्ष के दौरान वे इस फसल से लाभ प्राप्त कर सकते हैं. लगभग 4 लाख रुपये और चौथे साल से वे 6-7 लाख रुपये कमा सकते हैं.
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कमलम में उच्च पोषण मूल्य होता है. यह हृदय स्वास्थ्य को बनाए रखने में काफी मदद करता है. देश में कमलम की खेती के लिए एक बड़ा क्षेत्रा उपयुत्तफ है, इसलिए इस फल की खेती की अच्छी गुंजाइश है. इसकी पैदावार में वृद्धि के लिए बेहतर किस्मों के साथ उत्पादन तकनीकों को विकसित करने और किसानों के लिए अच्छी रोपण सामग्री उपलब्घ करवाने की आवश्यकता है.
ड्रैगन फ्रूट की सबसे खास बात यह है कि इसे कम उपजाऊ भूमि में भी लगाया जा सकता है और अच्छी पैदावार ली जा सकती है. इसके पौधे अप्रैल-जुलाई में लगाए जाते हैं. किसान इसके पौधे अपने जिले के कृषि केंद्र से खरीद सकते हैं. आत्मा योजना के तहत इस फसल को बढ़ावा देने के लिए किसानों को ड्रैगन फ्रूट के पौधे वितरित किये जाते हैं. किसान इस योजना का लाभ उठाकर ड्रैगन फ्रूट की खेती कर सकते हैं.
ड्रैगन फ्रूट को किसी भी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है. लेकिन इसके लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है. इसकी खेती के लिए गड्ढे खोदे जाते हैं और कंक्रीट के खंभे गाड़ दिए जाते हैं. दो खम्भों के बीच की दूरी लगभग 5 हाथ होनी चाहिए. इसके बाद स्तंभ के पास चार पौधे लगाए जाते हैं. रोपाई के समय पौधे को हल्का पानी दिया जाता है. फिर पौधों को समय-समय पर ड्रिप सिंचाई विधि से पानी दिया जाता है.
हर महीने पौधों में गोबर की खाद डालना अच्छा रहता है. किसान चाहें तो रासायनिक उर्वरकों का भी प्रयोग कर सकते हैं. अगर आप अच्छी पैदावार चाहते हैं तो आपको पौधे के आसपास उगने वाले खरपतवार को हटाते रहना चाहिए. लगभग 8 महीने के बाद पौधे खम्भे जैसे हो जाते हैं. 16 महीने के बाद पौधों पर छोटे-छोटे फल आने लगते हैं. हालाँकि, कलियाँ पहले निकलती हैं जिसके बाद फल लगने लगते हैं. 18 महीने के बाद फल का रंग पूरी तरह गुलाबी हो जाता है तब इसे तोड़ लेना चाहिए. इसके बाद यह फल बिक्री के लिए तैयार है.
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