उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में डेरी फार्म के माध्यम से कमाई करने वाले पशुपालकों की संख्या बढ़ रही है. सरकार की कामधेनु योजना भले ही बंद हो गई है, लेकिन इसके द्वारा खुली हुई डेरी फार्म आज भी संचालित है. लखनऊ के गोमती नगर के खरगापुर इलाके में संचालित हो रही ऐसी ही एक डेयरी का संचालन पंकज मिश्रा कर रहे हैं. उनके पास साहिवाल और गिर नस्ल की 75 से ज्यादा देसी गाय हैं. डेरी पालन के साथ-साथ वह औषधीय पौधे की खेती भी कर रहे हैं. औषधीय पौधों से वह अपने पशुओं को स्वस्थ रखने के साथ-साथ दूध में औषधीय गुण भी पैदा कर रहे हैं. उनके इस प्रयोग से दूध की खपत बढ़ गई है जिस को पूरा करने के लिए वे अब और ज्यादा पशु पालने की तैयारी कर रहे हैं.
डेयरी उद्योग के माध्यम से शहरी क्षेत्र में लोगों को रोजगार के अवसर मिल रहे हैं तो वही अच्छे दूध की मांग के चलते डेयरी चलाने वाले लोगों का मुनाफा भी बढ़ रहा है. कामधेनु योजना के माध्यम से डेयरी चला रहे पंकज मिश्रा दूध ही नहीं पैदा कर रहे हैं बल्कि दूध की गुणवत्ता में भी इजाफा कर रहे हैं. उन्होंने दूध में औषधीय गुण को बढ़ाने के साथ-साथ पशुओं को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी औषधीय पौधों को उपयोग किया है. इन औषधीय पौधों के माध्यम से वे खुद अपने परिवार के साथ साथ डेयरी में पल रहे 75 पशुओं को भी स्वस्थ रखने का काम कर रहे हैं. औषधीय पौधों के माध्यम से दूध की गुणवत्ता में और भी ज्यादा इजाफा हो रहा है जिससे उनके दूध की मांग बढ़ गई है. उनकी डेयरी से रोजाना 600 लीटर दूध पैदा होता है लेकिन उपभोक्ताओं की बढ़ती संख्या को पूरा करने के लिए उन्हें और भी ज्यादा गाय खरीदने की जरूरत है.
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डेरी फार्म का संचालन करने वाले पंकज मिश्रा बताते हैं कि वो डेयरी में गिर और साहीवाल नस्ल की 75 से ज्यादा पशुओं का पालन कर रहे हैं. वहीं इन पशुओं को स्वस्थ रखने के लिए उन्होंने औषधीय पौधों में कपूर, अश्वगंधा, इलायची सिंदूर, गिलोय, तुलसी, हल्दी के पौधों को लगाया है. वहीं इन औषधीय पौधों को वह अपने पशुओं को स्वस्थ रखने के लिए प्रयोग करते हैं. वह हर रोज अपनी गायों को 1.5 से 2 किलो नीम के पत्ते खिलाते हैं. इसी के साथ-साथ हल्दी का प्रयोग अपने पशुओं पर करते हैं जिसके माध्यम से दूध की मात्रा में तो इजाफा हो रहा है. बल्कि दूध की पौष्टिकता भी बढ़ रही है.
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