कपास की खेती उत्तर भारत के पंजाब जैसे राज्यों में खासतौर पर की जाती है. गर्मी का मौसम आते ही कपास की बुवाई का समय भी शुरू हो जाता है. अगर सिंचाई की अच्छी सुविधा हो तो किसान मई-जून के महीनों में भी इसकी बुवाई कर सकते हैं. अच्छी उपज पाने के लिए बुआई से लेकर पोषक तत्वों तक कुछ खास बातों का ध्यान रखना जरूरी है. जानें इसकी खेती से जुड़ी कुछ खास बातें जो इसकी मिट्टी और बीज ट्रीटमेंट से जुड़ी हैं.
सिंचाई की अच्छी व्यवस्था हो तो मई का महीने में इसकी बुवाई की जा सकती है. बुवाई के लिए सीड-कम-फर्टी ड्रिल या प्लांटर का प्रयोग कर सकते हैं. कपास के लिए रेतीली लवणीय और सेम वाली मिट्टी को सही माना गया है. इस प्रकार की मिट्टी को छोड़कर हर तरह की मिट्टी में इसकर बुवाई की जा सकती है.
कपास की प्रमुख किस्मों में हाइब्रिड और देसी दोनों शामिल हैं. हाइब्रिड किस्मों में लक्ष्मी, एच.एस. 45, एच.एस.6, एल.एच. 144, एच.एल. 1556, एफ. 1861, एफ. 1378, एफ. 1378, एफ. 846 हैं. जबकि देसी किस्में जैसे-एच. 777, एच.डी. 1, एच. 974, एच.डी. 107 एवं एल.डी. 327 उगाई जा सकती हैं.
अमेरिकन, देसी और हाइब्रिढ कपास का क्रमशः 15-20, 10-12 और 4-5 कि.ग्रा./हेक्टेयर बीज काफी होता है. देसी कपास या फिर अमेरिकन के लिए 60×30 सेंमी. और हाइब्रिड किस्मों के लिए 90×40 सें.मी. पंक्ति से पक्ति और पौधे से पौधे की दूरी रखनी चाहिए.
उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी परीक्षण बाद आए नतीजों के आधार पर किया जाना चाहिए. कपास की देसी किस्मों के लिये 50-70 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 20-30 कि.ग्रा. फॉस्फोरस, अमेरिकन और देसी किस्मों के लिये 60-80 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 30 कि.ग्रा. फॉस्फोरस, 20-30 कि.ग्रा. पोटाश काफी होता है. वहीं हाइब्रिड किस्मों के लिये 150-60-60 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश/हेक्टेयर की जरूरत होती है. इसके अलावा 25 कि.ग्रा. जिंक प्रति हेक्टेयर का प्रयोग फायदेमंद है.
यह भी पढ़ें-
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today