उत्तर भारत के अधिकांश राज्यों में पराली कानिपटारा करना किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती और समस्या भी है. इसके निपटारण को लेकर कर तरह के उपाय किए जा रहे हैं. क्योंकि अधिकांश किसान जागरूकता के अभाव में पराली को जलाकर नष्ट कर देते हैं इसके कारण वायु प्रदूषण का खतरा बढ़ जाता है. पर अब हरियाणा के करनाल में किसानों ने पराली का समाधान ढूंढ लिया है. किसान अब पराली नहीं जलाने को लेकर खुद जागरूक हुए हैं. हालांकि सरकारी स्तर पर भी जागरूकता फैलाई जा रही है, लेकिन किसान अपने स्तर पर भी पराली को लेकर सावधान हैं. फसल अवशेषों का निपटारा करना पराली के किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती थी. इसलिए इसके निपटारे के लिए किसान इस पर आग लगा देते थे.
पराली में आग जलाने की घटनाओं के कारण यहां पर दिन में सड़कों पर धुंध छा जाता था इसके कारण सड़कों पर चलना भी मुश्किल हो गया था. इतना ही नहीं किसनों को पराली जलाने समय विभागीय अधिकारियों का भी डर रहता था की कहीं उनका चालान ना हो जाए. किसानों को इन परेशानियों को देखते हुए सरकार की तरफ से फसल अवशेष प्रबंधन के कई उपाय किए गए. इन उपायों के अब सकारात्मक नतीजे सामने आने लगे हैं. किसान पराली की गांठे बनवाकर फसल अवशेषों के निपटान में जुटे है. इससे सभी को फायदा हो रहा है. इतना ही नहीं किसान अब तो अपील करने लगे है कि कोई भी किसान फसल अवशेषों को जलाने की बजाए फसल अवशेष प्रबंधन के तरीकों को अपनाएं.
पराली की गांठ बनाने के फायदे को बताते हुए किसान दीपक ने कहा कि यह काफी सही होता है क्योंकि इससे प्रदूषण नहीं फैलता है और किसी को परेशानी नहीं होती है. कम खर्च में खेत साफ हो जाता है और किसानों को सहूलियत भी होती है. इसलिए अगर सरकार अधिक मदद करे तो और बेहतर परिणाम सामने आएंगे. दीपक ने बताया की पराली की गांठें बनाने पर एक हजार रुपये देने की घोषणा की गई है, लेकिन अभी तक उन्हें यह राशि नहीं दी गई है. वहीं एक अन्य किसान ने कहा कि फसल की कटाई के बाद पराली का निपटान करना किसान के लिए सबसे बड़ी समस्या थी. पर अब पराली की गांठें बनाने से किसान को काफी फायदा हो रहा है. प्रदूषण से बचाव हो रहा है, अब गांठें बनने से खेत से पराली की गांठें बनकर उठाई जा रही है.
किसान कंवलजीत सिंह ने कहा कि पराली की गांठें बनाने वाली योजना बहुत अच्छी है. पहले किसानों को समझ नहीं आता था कि फसल अवशेषों का निपटान कैसे करें, इसलिए आग लगाना उनकी मजबूरी थी. इसके कारण किसानों पर प्रदूषण फैलाने के आरोप लगते थे. लेकिन अब सरकार की पहले से पराली की गांठें बनने से किसानों को काफी राहत मिली है. पराली को खेत से बाहर निकाल लिया जाता है, साथ ही खेत अच्छी तरह से तैयार हो जाता है. इससे किसानों का आर्थिक नुकसान कम हुआ है. इसके अलावा चालान का भी डर नहीं है.
किसान सुरेंद्र सांगवान ने कहा किसान को मजबूरी में फसल अवशेष जलाना पड़ता था, लेकिन अब धीरे-धीरे साधन सामने आ रहे हैं जिससे पराली की गांठें बनाए जाने लगी है. इससे किसान को तो आर्थिक तौर पर फायदा हो ही रहा है, साथ ही प्रदूषण भी कम हुआ है. जिले में पराली जलाने की एक भी घटना हो, इसके लिए किसानों को लगातार जागरूक किया जा रहा है. साथ ही प्रति एकड़ मे गांठें बनवाने पर एक हजार रुपये सरकार की ओर से दिए जा रहे हैं. पहले सैटेलाइट के जरिए आग लगाने की घटनाओं का पता चलता था, लेकिन सभी विभागों के कर्मचारी खेतों में जाकर देखते हैं कि कहीं आग तो नहीं लगी हुई है. पहले जहां पराली जलाने के एक हजार मामले आते थे. वह आंकड़ा घटकर तीन सौ पर आ गया है. इस बार लक्ष्य है कि पराली जलाने की एक भी घटना नहीं हो.
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