भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का बड़ा योगदान है. प्राचीन काल से ही खेती में गाय का महत्वपूर्ण रोल रहा है लेकिन समय के साथ धीरे-धीरे गाय का उपयोग कम होने लगा. किसान भी खूब पैदावार के लिए अंधाधुन रसायनिक उर्बरक का प्रयोग करने लगे जिससे मृदा की सेहत खराब होने लगी है. वहीं अब कृषि वैज्ञानिक भी मानने लगे है कि गाय के गोबर और गोमूत्र के प्रयोग से होने वाली खेती से जमीन की सेहत सुधरती है और पैदा होने वाले अनाज की गुणवत्ता में भी सुधार होता है. उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार इसीलिए प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने का काम कर रही है. बुंदेलखंड के सभी जनपदों में प्राकृतिक खेती को कृषि विभाग के द्वारा प्रोत्साहित किया जा रहा है जिसके चलते अब किसान भी गौ आधारित प्राकृतिक खेती के माध्यम से खेती करने लगे हैं. झांसी के चिरगांव के रहने वाले किसान धर्मेंद्र नामदेव भी गाय के गोमूत्र से खेती करते हैं. वही उनकी यह तकनीक भी काफी सफल हो रही है. अब उन्होंने गोमूत्र (Gaumutra) के प्रयोग से ही मूंग की खेती की है जिससे फसल काफी अच्छी हुई है, वहीं लागत भी कम आई है. इससे मुनाफा भी ज्यादा होने की पूरी उम्मीद है.
दलहनी फसलों की खेती करना जमीन की सेहत के लिए भी बढ़िया बताया गया है. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार दलहनी फसलों की खेती करने से जमीन में कई तरह के बैक्टीरिया पैदा होते हैं. इनके माध्यम से जमीन की उर्वरा शक्ति में सुधार होता है. वही अगर किसान के द्वारा गोमूत्र (Gaumutra) का प्रयोग किया जाता है तो जमीन की उत्पादकता में और भी ज्यादा सुधार होता है. दलहनी फसलों की खेती में गोमूत्र का प्रयोग करके धर्मेंद्र नामदेव काफी खुश है. उन्होंने किसान तक को बताया कि उन्होंने अपने एक बीघे की खेती में गोमूत्र का प्रयोग करके मूंग की फसल को उगाया जो काफी बढ़िया हुई है. 1 पौधे में 70 से 80 फलियां हैं और जिनका आकार भी काफी लंबा और मोटा है. उनका कहना है कि वे 2 सालों से अपने खेत में गोमूत्र का ही प्रयोग कर रहे हैं. वे कोई भी रासायनिक खाद और कीटनाशक का प्रयोग नहीं करते हैं जिसके चलते उनकी फसलों की गुणवत्ता में भी काफी ज्यादा फर्क आया है. वही उनके अनाज को बाजार में अच्छा दाम भी अब मिलने लगा है.
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उत्तर प्रदेश ,मध्य प्रदेश ,छत्तीसगढ़ में गोमूत्र का प्रयोग खेती में खूब हो रहा है. छत्तीसगढ़ सरकार तो ₹4 प्रति लीटर गोमूत्र खरीदने का काम कर रही है. गोमूत्र के माध्यम से सरकार प्राकृतिक कीटनाशक और उर्वरक भी बनाने का काम कर रही है. आपको बता दें गोमूत्र में नाइट्रोजन, गंधक, अमोनिया, कापर, यूरिया ,यूरिक एसिड, फास्फेट, सोडियम ,पोटैशियम ,मैगनीज, कार्बोलिक एसिड जैसे तत्व पाए जाते हैं. कृषि वैज्ञानिक डॉ. सुशील शुक्ला बताते हैं ये सारे तत्व फसलों की बेहतर विकास के लिए काफी जरूरी होते हैं. गोमूत्र को फसलों पर कीटनाशक के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके अलावा गोमूत्र में जीवामृत, बीजामृत भी बनाया जा सकता है जिससे जमीन उपजाऊ होती है.
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ अमिताभ रचित ने किसान तक को बताया कि रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों की अंधाधुंध प्रयोग के चलते जमीनों की उत्पादकता पर बुरा असर पड़ा है. हाल के सालों में सरकार भी अब जैविक खेती को प्रोत्साहित कर रही है. जमीन की सेहत को बचाने के लिए गोमूत्र और गाय के गोबर का प्रयोग काफी ज्यादा जरूरी है. इससे जमीन में आर्गेनिक मैटर की वृद्धि होती है जिससे मृदा की बिगड़ी सेहत में सुधार होता है.
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