
जुलाई-अगस्त के महीने में देश के किसानों की नजर हर वक्त आसमान की ओर रहताी है. किसानों को दिन-रात बारिश का इंतजार होता है. किसान हर वक्त भगवान से यही प्रार्थना करते हैं कि बारिश हो ताकि वे धान की रोपाई कर सकें. लेकिन आज हम आपकी मुलाकात जमुई के एक ऐसे किसान से कराने जा रहे हैं जो पूरे जिले में चर्चा में हैं. उनकी चर्चा इस बात को लेकर है कि वे धान की रोपाई के वक्त धान की कटनी कर रहे हैं. जमुई जिले में इस बार मॉनसून की कम बारिश की वजह से धान की रोपनी ने जोर नहीं पकड़ा है. किसान अभी खेत और धान का बिचड़ा ही तैयार कर रहे हैं. ऐसे में अगर कोई किसान धान की कटनी कर रहा हो तो उसकी चर्चा लाजिमी है. तो आइए पढ़ते हैं ये पूरी रिपोर्ट
जमुई जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र सोनो प्रखंड में लखनकियारी गांव है. यहां के खेतों में साफ दिखाई दे रहा है कि धान के बिचड़े तैयार हो रहे हैं. लेकिन पानी के अभाव में जिस तेजी से बिचड़ा का ग्रोथ होना चाहिए वो नहीं हो पा रहा. खेत भी धान की रोपनी के लायक तैयार नहीं हो पाया है. किसान मायूस हैं और इंद्र देव से बारिश के लिए प्रार्थना कर रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ एक किसान का खेत ऐसा भी है जहां धान की कटनी करीब-करीब पूरी हो चुकी है और खेतों में कटे हुए धान सूख रहे हैं.
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जमुई जिले में चर्चा का विषय बन चुके इस किसान का नाम है गुरुदेव मंडल. इनकी कड़ी मेहनत और लगन की वजह से इस साल की भीषण गर्मी में भी उनके खेत धान की फसल से लहलहा गए हैं. उनका यह अनोखा प्रयोग न केवल सफल रहा बल्कि दूसरे किसानों के लिए गुरुदेव मंडल प्रेरणास्रोत बन गए हैं. बिहार में आमतौर पर धान की खेती जून-जुलाई के महीने में शुरू हो जाती है. लेकिन इस साल मॉनसून में कम बारिश की वजह से धान की रोपनी अधिकांश स्थानों पर शुरू नहीं हो सकी है. जिले के अधिकतर किसान इस वक्त खेत और बिचड़ा तैयार करने में ही लगे हैं.
दूसरी ओर किसान गुरुदेव मंडल इस वक्त अपने धान की कटाई कर रहे हैं. इतना ही नहीं, जिस वक्त जिले में धान की रोपनी किसान शुरू करेंगे, उस वक्त गुरुदेव मंडल भी फिर से दूसरे धान की रोपनी शुरू कर देंगे. लखनकियारी के रहने वाले गुरुदेव मंडल ने गरमा धान की खेती की है. बिहार को छोड़कर देश के अन्य राज्यों में साल में दो या कहीं-कहीं तीन बार धान की फसल लगाई जाती है. लेकिन जमुई में आमतौर पर ऐसा देखने को नहीं मिलता है. गुरुदेव मंडल ने जो प्रयोग किया है, वह रंग लाया है.
गुरुदेव मंडल का कहना है यह उनका पहला प्रयोग था और जुआ समझकर डेढ़ बीघे में धान की फसल लगाई थी. उन्होंने बताया कि फागुन यानी मार्च के महीने में उन्होंने धान का बिचड़ा तैयार किया. धान की रोपनी की और करीब चार महीने बाद धान की फसल तैयार हो गई. इस बार भीषण गर्मी भी पड़ी थी. इस वजह से धान की फसल को जिंदा रखने में काफी मेहनत करनी पड़ी. अपने पैसे से बोरिंग कराकर पंपिग सेट का सहारा लिया और कभी बिजली नहीं होने की स्थिति में जनरेटर के माध्यम से भी खेतों की सिंचाई की.
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गुरुदेव मंडल किसान के साथ-साथ राजमिस्त्री का भी काम करते हैं. उनका कहना है कि एक बार वे रोजगार के लिए बेंगलुरु जा रहे थे. तभी बंगाल के बर्दमान में ट्रेन की खिड़की से देखा कि वहां गर्मी के मौसम में भी धान की खेती हो रही है. तब उन्हें लगा कि अगर बर्दमान में धान की खेती हो सकती है तो हमारे यहां भी ऐसा करना संभव है. उसके बाद गांव आकर धान लगाने का फैसला लिया. बिचड़ा नहीं मिलने पर घर के ही धान का बीज लगाया. आज उन्हें धान की अच्छी पैदावर मिल रही है. गुरुदेव मंडल को इस खेती में बिहार सरकार से किसी प्रकार का सहयोग नहीं मिला. उन्होंने कहा कि अगर सरकार उन्हें खेती करने में सहयोग करे तो वे जिले में एक मिशाल पेश कर सकते हैं.
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