यूपी सरकार ने पिछले महीने पेश किए गए बजट में किसानों को अनुदान पर ड्रोन मुहैया कराने का प्रावधान किया था. आगामी वित्त वर्ष 2023-24 में इस प्रावधान काे लागू करने के लिए योगी सरकार ने तैयारी कर ली है.इससे पहले केंद्र सरकार की पहल पर किसानों को ड्रोन से फसलों में दवा का छिड़काव करने की सुविधा देने का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया था. इसके तहत बुंदेलखंड के किसानों काे यह सुविधा झांसी स्थित रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय द्वारा मुहैया कराई जा रही है.
प्रायोगिक दौर में झांसी जिले के लगभग 2 दर्जन गांवों के किसान ड्रोन सेवा का प्रयोग कर चुके हैं. किसानों में ड्रोन तकनीक के प्रति बेहतर रुझान को देखते हुए सरकार ने अब किसानों को अनुदान पर ड्रोन खरीदने की सहूलियत देने की पहल की है.
कृषि विभाग की ओर से बताया गया कि इस योजना के तहत कृषि विज्ञान में स्नातक डिग्री धारक किसान को या फिर किसानों के समूह को, सहकारी समितियों को या स्वयं सहायता समूहों को ड्रोन खरीदने के लिए छूट दी गई है. पहले चरण में 88 ड्रोन खरीदे जा सकेंगे. इसे खरीदने वाले किसान या समूह को ड्रोन की कुल कीमत पर 40 प्रतिशत का अनुदान यूपी सरकार की ओर से दिया जाएगा. ड्रोन की बाजार कीमत 7 से 10 लाख रुपये तक है.
हाल ही में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पश्चिमी यूपी के गन्ना किसानों को फार्म मशीनरी बैंक योजना के तहत अनुदान पर 77 ट्रेक्टर वितरित किए थे. साथ ही उन्होंने यूपी सरकार द्वारा गन्ना किसानों को फार्म मशीनरी बैंकों के माध्यम से तकनीकी सपोर्ट देने के क्रम में 30 ड्रोन भी अनुदान पर देने की घोषणा की थी.
सीएम योगी ने ये ड्रोन सहकारी गन्ना एवं चीनी मिल समितियों में स्थापित फार्म मशीनरी बैंकों के तहत गठित किसानों के समूह काे 40 प्रतिशत अनुदान पर देने की घोषणा की थी. गौरतलब है कि खेती में ड्रोन तकनीक के इस्तेमाल का यूपी में पहला सफल प्रयोग पश्चिमी यूपी के बिजनौर में पिछले साल किया गया था.
यूपी में झांसी स्थित केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय ने किसानों को मुफ्त में फसल पर ड्रोन से दवा का छिड़काव करने की सुविधा पायलट प्रोजेक्ट के तहत दी जा रही है. बुंदेलखंड में किसानों को यह सेवा मुहैया करा रहे ड्रोन के लाइसेंस प्राप्त पायलट डॉ आशुतोष शर्मा ने 'किसान तक' को बताया कि खेती में इस्तेमाल किए जाने वाले ड्रोन की बाजार कीमत आम तौर पर 7 से 10 लाख रुपये तक होती है. इस पर 40 प्रतिशत सब्सिडी मिलने पर किसानों के समूह या एग्रीकल्चर ग्रेजुएट किसान आसानी से खरीद सकेंगे. उन्होंने बताया कि अनुदान पर ड्रोन की खरीदने वाले समूह या किसान, किराए पर ड्रोन से दवा का छिड़काव करने की सुविधा अन्य किसानों को दे सकेंगे. इस प्रकार ड्रोन तकनीक किसान समूहों के लिए आय का जरिया भी बन सकेगी और किसान इस तकनीक का आसानी से लाभ भी उठा सकेंगे.
झांसी में गोपालपुरा गांव के प्रगतिशील किसान रोहित दुबे ने बताया कि किसानों के लिए ड्रोन तकनीक वरदान साबित हो सकती है. इसकी 10 लाख रुपये तक की कीमत को कुछ ज्यादा बताते हुए दुबे ने सरकार से मांग की है कि इसकी खरीद पर अनुदान को 50 प्रतिशत तक किया जाना मुफीद रहेगा.
पायलट डॉ शर्मा ने बताया कि इस ड्रोन का वजन 15 किग्रा है. इसमें दवा का छिड़काव करने के लिए 10 लीटर की टंकी है. इस प्रकार उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) के दिशानिर्देशों के मुताबिक इस ड्रोन को 500 मीटर से 2 किमी तक की रेंज में फसलों पर दवा का छिड़काव किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि ड्रोन उड़ाने से पहले एयर ट्रैफिक कंट्रोल (एटीसी) से अनुमति लेनी पड़ती है.
डॉ शर्मा ने बताया कि इस ड्रोन से 500 मीटर से 2 किमी तक के दायरे में 1 एकड़ क्षेत्रफल में महज 10 मिनट में 10 लीटर दवा के घोल का छिड़काव किया जाता है. जबकि सामान्य तौर पर किसानों को इस काम में 4 घंटे तक का समय लगता है और इसके लिए उसे 300 रुपये तक मजदूरी भी देनी पड़ती है. इतना ही नहीं ड्रोन तकनीक से फसल को निर्धारित मात्रा में दवा मिलने के कारण दवा की बर्बादी भी नहीं होने से किसान की उपज लागत में कमी आती है.
उन्होंने बताया कि किसान स्वयं भी ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल कर सकें, इसके लिए उन्हें विश्वविद्यालय द्वारा प्रशिक्षित भी किया जा रहा है. इसके लिए किसान को महज 10 वीं कक्षा तक शिक्षित होना जरूरी है. इच्छुक किसान को इसके लिए डीजीसीए के समक्ष आवेदन करना होगा. मात्र तीन दिन में किसान को ड्रोन उड़ाने में दक्ष कर दिया जाता है. इसके बाद उसे एक प्रमाण पत्र मिलता है. इसके आधार पर किसान ड्रोन तकनीक का खेती में इस्तेमाल कर सकता है. उन्होंने बताया कि बुंदेलखंड क्षेत्र में ड्रोन तकनीक के प्रति किसानों के रुझान को देखते हुए विश्वविद्यालय ने दो और प्रशिक्षित पायलटों को रखा है.
डाॅ शर्मा ने बताया कि इस ड्रोन का इस्तेमाल सिर्फ दवा के छिड़काव में ही नहीं, बल्कि बागवानी में भी किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि ड्राेन में सेंसर और कैमरा का बखूबी इस्तेमाल किया गया है. इसमें लगे सेंसर और कैमरे फसलों एवं फलदार वृक्षों में रोग की पहचान करके किसान को आगाह कर देते हैं. कैमरे से यह पता चलता है कि खेत या बाग में कितने इलाके में रोग फैला है. इसका नक्शा भी कैमरा बना कर किसान को देता है.
उन्होंने बताया कि ड्रोन में सेंसर के माध्यम से क्रैश होने का खतरा खत्म कर दिया गया है. सेंसर की मदद से ड्रोन को फसल और पेड़ों से निश्चित दूरी पर रखा जाता है. इससे ड्रोन क्रैश नहीं होता है. उन्होंने बताया कि इस ड्रोन की एक खूबी यह भी है कि जब भी इसकी बैटरी खत्म होने लगती है, तब यह जिस स्थान से उड़ता है, उसी स्थान पर खुद ब खुद वापस पहुंच जाता है.
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