बात करीब चार दशक पुरानी है. तब किसी किसान की संपन्नता का पैमाना दरवाजे पर बंधे बैलों की संख्या होती थी। धीरे-धीरे ट्रैक्टर ने बैलों को खेतीबाड़ी में अप्रासंगिक बना दिया. आज के दौर में ट्रैक्टर केवल खेत जोतने का साधन नहीं, बल्कि किसानों की खुशहाली, उन्नति और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन चुका है. ट्रैक्टरों की संख्या के लिहाज से देखें तो यूपी के किसान खुशहाल हैं.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा उत्तर प्रदेश की कमान संभालने के बाद करीब आठ वर्षों में ट्रैक्टर्स की संख्या में डेढ़ गुने से अधिक (62 फीसद) की वृद्धि हो चुकी है. वित्तीय वर्ष 2016-2017 में प्रदेश में कुल 88 हजार ट्रैक्टर थे. वित्तीय वर्ष 2024-2025 में यह संख्या बढ़कर 142200 हो गई.
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए किसानों का हित सर्वोपरि है. वह इस बात और खेतीबाड़ी में उत्तर प्रदेश की संभावनाओं को लगातार सार्वजनिक मंचों पर कहते आ रहे हैं. उनके मुताबिक नौ तरह की अलग-अलग कृषि जलवायु, इंडो गंगेटिक बेल्ट की दुनिया की सबसे उर्वर जमीन, गंगा, यमुना, सरयू जैसी सदानीरा नदियां, सबसे अधिक आबादी के कारण सस्ता श्रम और सबसे बड़ा बाजार होने के कारण उत्तर प्रदेश देश का फूड बास्केट बन सकता है. जरूरत इस बात की है कि किसानों के परंपरागत ज्ञान और आधुनिक विज्ञान को खेतीबाड़ी से जोड़ा जाए.
इसके लिए सरकार लगातार कृषि विज्ञान केंद्रों और द मिलियन फॉर्मर्स स्कूल के तहत संचालित किसान पाठशाला से किसानों को जागरूक करने के साथ उनको नवाचार के लिए प्रोत्साहित कर रही है. योगी सरकार, केंद्र की नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन के साथ अपने स्तर से भी किसानों के हित में जो भी संभव है वह कर रही है. इसका सबसे बड़ा प्रमाण अपने पहले कार्यकाल की पहली कैबिनेट मीटिंग में लघु सीमांत किसानों की एक लाख रुपये तक की कार्जमाफी. उसके बाद से तो यह सिलसिला ही चल निकला.
वर्षों से लंबित सिंचाई परियोजनाओं (बाणसागर, राष्ट्रीय सरयू नहर परियोजना, अर्जुन सहायक नहर परियोजना आदि) को पूरा कर सिंचन क्षमता में विस्तार, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के तहत गेहूं और धान के खरीद की पारदर्शी व्यवस्था, समयबद्ध भुगतान, कई नई फसलों खास कर मोटे अनाजों (मिलेट्स) को एमएसपी के दायरे में लाना.
गन्ने की खेती से जुड़े करीब 50 लाख किसानों के हित के लिए समयबद्ध भुगतान, चीनी मिलों का आधुनिकीकरण, नई चीनी मिलों की स्थापना, पेराई सीजन के दिनों में वृद्धि, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि का प्रभावी क्रियान्वयन, समय से खाद, बीज की उपलब्धता आदि ऐसे कदम रहे जिससे किसानों की आय बढ़ी. इसका नतीजा रहा हर फसल के उत्पादन में इस दौरान रिकॉर्ड वृद्धि. खासकर दलहन और तिलहन में. इन्हीं सारी वजहों से बहुउपयोगी ट्रैक्टर्स की खरीद और संख्या में वृद्धि हुई है.
ट्रैक्टर्स की संख्या में ये वृद्धि आगे अभी और रंग लाएगी, क्योंकि आज ट्रैक्टर्स के बिना खेती की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. यह सिर्फ जोताई के काम नहीं आता है. खेत की लेवलिंग, पॉवर स्प्रेयर से फसलों पर वाटर सॉल्यूबल उर्वरकों, कीटनाशकों के छिड़काव, मेड़बंदी, सीड ड्रिल के जरिए लाइन सोईग, आलू की बोआई से लेकर खोदाई, फसल अवशिष्ट को निस्तारित करने में मददगार है. ट्रैक्टर के जरिए संचालित होने वाले इन सभी कृषि यंत्रों पर सरकार करीब 50 फीसद अनुदान देती है.
इनके प्रयोग से श्रम की लागत घटती है। खेत की तैयारी, बोआई और फसल की कटाई से लेकर मड़ाई तक का काम आसान और अच्छा हो जाता है. यकीनन आने वाले वर्षों में किसानों की आय एवं ट्रैक्टर्स की संख्या भी बढ़ेगी. तब उत्तर की पहचान प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा के अनुसार देश के फूड बास्केट के रूप में होगी.
ट्रैक्टर्स की बिक्री के लिहाज से देश का भी ट्रेंड कमोबेश यही है. उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार मौजूदा वित्तीय वर्ष में की रिकॉर्ड (10 लाख) ट्रैक्टर्स की बिक्री की उम्मीद है. यह अब तक की सालाना बिक्री का रिकॉर्ड होगा. इसके पहले यह रिकॉर्ड वित्तीय वर्ष 2023 के नाम था. तब देश भर में 939713 ट्रैक्टर्स की बिक्री हुई थी. वित्तीय वर्ष 2024 में बिक्री की यह संख्या 867597 थी. बाजार के जानकारों के अनुसार रबी की अच्छी पैदावार, खरीफ में मौसम विभाग द्वारा अच्छी बारिश का पूर्वानुमान और बेहतर फसल नाते यह रिकॉर्ड बनना संभव होगा.
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