मखाने की खेती का नाम सुनते ही सबसे पहले हमारे दिमाग में बिहार के मधुबनी जिले का ख्याल आता है. जहां न सिर्फ इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. बल्कि गुणवत्ता का भी विशेष ख्याल रखा जाता है. यहां का मखाना न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश के साथ-साथ विदेशों में भी भेजा जाता है. मिथिला मखाना के स्वाद और गुणवत्ता के कारण इसे जीआई टैग भी दिया गया है. जिसके बाद मिथिला मखाने को एक नई पहचान मिली है. पहचान के साथ-साथ मिथिला मखाने की मांग भी समय के साथ बढ़ती जा रही है. जिस वजह से यहां के किसान अधिक से अधिक मखाने की खेती करते नजर आ रहे हैं. मखाने की खेती कर रहे किसान चाहें तो मखाने की खेती के साथ मछली और सिंघाड़ा की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. साथ ही इससे कमाई भी बढ़ा सकते हैं. आइए जानते हैं कैसे एक साथ इसकी खेती.
इंटीग्रेटेड कृषि प्रणाली खेती की एक आधुनिक तकनीक है. इस तकनीक में एक साथ कई कार्यों को बढ़ावा दिया जाता है. ताकि जगह का पूरा इस्तेमाल किया जा सके. इससे किसानों की आय बढ़ाने में भी काफी मदद मिलती है. सरल भाषा में कहें तो एकीकृत खेती में खेती के सभी घटकों को शामिल किया जाता है. जिससे किसानों को वर्ष भर आय होती रहती है. इस तकनीक में किसान अपनी मुख्य फसलों के साथ-साथ अन्य फसलों की भी खेती कर सकते हैं. इसमें एक घटक का उपयोग दूसरे घटक के लिए किया जाता है.
इससे किसान एक फसल पर अपनी निर्भरता कम कर सकते हैं या अपने नुकसान की संभावना कम कर सकते हैं. लगातार बढ़ती जनसंख्या और घटते प्राकृतिक संसाधनों के कारण किसानों को भी अपनी पद्धति और तकनीक दोनों में बदलाव करने की जरूरत है. इसे एकीकृत खेती मॉडल के रूप में भी जाना जाता है. इसे अंग्रेजी में इंटीग्रेटेड फार्मिंग के नाम से जाना जाता है.
ये भी पढ़ें: Makhana Farming: मखाने के खेत में सिंघाड़ा और बरसीम की भी कर सकते हैं खेती, ऐसे मिलेगा दोहरा लाभ
एकीकृत या समन्वित कृषि पद्धति एक ऐसी पद्धति है जो किसान के लिए उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों (भूमि, जल, श्रम, ऊर्जा और पूंजी) का सही मूल्यांकन करती है और स्थानीय पर्यावरण, मिट्टी, ऊर्जा को ध्यान में रखते हुए उपलब्ध संसाधनों का उचित उपयोग करती है. साथ ही आर्थिक और सामाजिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए ऐसा करने का अवसर प्रदान करता है. इस प्रणाली में यह भी ध्यान रखा जाता है कि एक घटक का अवशेष दूसरे घटक के काम आये ताकि उपलब्ध संसाधनों का पूरा उपयोग कर अधिकतम आय प्राप्त की जा सके.
एकीकृत मछली पालन गरीबों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने, पोषण और आय बढ़ाने में भी मददगार साबित होता है. वहीं मखाने की खेती के साथ मछली पालन भी संभव है. तालाब में मछली के साथ-साथ मखाना और सिंघाड़ा उगाकर प्रति इकाई क्षेत्र से अधिक आय प्राप्त की जा सकती है. इन तीन फसलों का उपयोग करके पानी जैसे महत्वपूर्ण कृषि संसाधन (घटक) की उत्पादकता को काफी हद तक बढ़ाया जा सकता है. साथ ही जल संकट वाले क्षेत्र की उत्पादकता भी कई गुना बढ़ जाती है.
मखाना-मछली और सिंघाड़ा की खेती के लिए सलाह दी जाती है कि मखाना के पौधे के खिलने से पहले तालाब से घास को अच्छी तरह से हटा देना चाहिए. तालाब में मांसाहारी मछलियों को खत्म करने के लिए 2.5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से महुआ खली का उपयोग करना चाहिए. तालाबों में मखाना की फसल लगाने के लिए पौधे से पौधे और कतार से कतार की दूरी एक मीटर होनी चाहिए. साथ ही तालाब के पूरे क्षेत्र का 10 प्रतिशत हिस्सा मछली के विकास के लिए खुला होना चाहिए. एक हेक्टेयर के तालाब में पांच हजार मछली के अंडे डाले जाने चाहिए. इन पांच हजार मछली के अंडों में क्रमशः रोहू का अनुपात 40 प्रतिशत और कतला, कॉमन कार्प और मिरगल का 20 प्रतिशत है. सिंघाड़ा एक तृतीयक फसल की तरह है जिसमें सिंघाड़ा फल की कटाई चार बार की जाती है जो नवंबर से दिसंबर तक जारी रहती है. जबकि मछली की निकासी दिसंबर से जनवरी तक यानी मखाना के पौधे के फूल खिलने से पहले पूरी हो जाती है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today