
मछली पालन करने वाले किसानों के लिए एक बड़ी खुशखबरी है. अब झींगा प्रोसेसिंग से निकलने वाले कचरे को फेंकने की जरूरत नहीं है. बल्कि उससे पैसे कमाए जा सकते हैं, वो भी उसके दूसरे प्रोडक्ट्स बनाकर. महाराष्ट्र में Longshore Technologies Private Limited नाम की कंपनी ने भारत की पहली झींगा शेल बायोरिफाइनरी स्थापित की है. इसे ICAR-Central Institute of Fisheries Technology (ICAR-CIFT), कोच्चि का तकनीकी सहयोग मिला है. इस बायोरिफाइनरी के जरिए झींगा के कचरे से दवाइयों, कॉस्मेटिक्स और खाद में इस्तेमाल होने वाले उत्पाद बनाए जा रहे हैं.
झींगा की प्रोसेसिंग में उसकी बाहरी परत (शेल) और कुछ दूसरे हिस्से बच जाते हैं. इस कचरे को अक्सर बेकार समझकर फेंक दिया जाता है. लेकिन ICAR-CIFT ने पाया कि इस कचरे में कई मूल्यवान पदार्थ होते हैं, जिन्हें सही तकनीक से निकाला जाए तो इनका इस्तेमाल अलग-अलग इंडस्ट्री में हो सकता है. इन उत्पादों में कई चीजें हैं-
चिटिन और चिटोसान |
ये पदार्थ दवाइयों, खाद और कॉस्मेटिक्स में उपयोग किए जाते हैं. |
प्रोटीन हाइड्रोलिसेट |
यह एक प्रकार का प्रोटीन है, जिसका उपयोग पशु को दिए जाने वाले खाने और फूड इंडस्ट्री में होता है. |
(सोर्स: ICAR-Central Institute of Fisheries Technology, Kochi) |
यह तकनीक सिर्फ आर्थिक लाभ तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी बहुत फायदेमंद है. पहले झींगा का कचरा पानी और जमीन को प्रदूषित करता था. अब इस कचरे को उपयोगी उत्पादों में बदलने से प्रदूषण में भी कमी आएगी. ICAR-CIFT के डायरेक्टर डॉ. जॉर्ज निनन के मुताबिक, यह प्रोजेक्ट साइंटिफिक रिसर्च और इंडस्ट्री को एक साथ लाने का बेहतरीन उदाहरण है.
बता दें, इस प्रोजेक्ट की शुरुआत 2020 में हुई, जब अमेय नाइक ने झींगा कचरे से चिटिन और चिटोसान जैसे उत्पाद बनाने की संभावना पर काम करना शुरू किया था. अमेय नाइक EDII गुजरात (Entrepreneurship Development Institute of India) से ग्रदुएटेड हैं.
महाराष्ट्र के मुंबई में स्थित Longshore Technologies Pvt. Ltd. में हर दिन लगभग 2 टन झींगा शेल वेस्ट की प्रोसेसिंग होती है. इस कचरे से चिटिन, चिटोसान और प्रोटीन हाइड्रोलिसेट बनाए जाते हैं. यह प्लांट हर साल 400 टन झींगा कचरे की प्रोसेसिंग कर सकता है. इससे सालाना ₹25 लाख की आमदनी की उम्मीद की जा रही है.
अगर किसान झींगा शेल को बायोरिफाइनरी में बेचें, तो उन्हें अलग से इनकम हो सकती है. साथ ही झींगा कचरे को फेंकने की समस्या से भी छुटकारा मिल सकता है. इतना ही नहीं पर्यावरण प्रदूषण कम होगा और किसान भी टिकाऊ खेती की ओर बढ़ सकते हैं.
अगर झींगा के कचरे से जुड़े और भी उद्योग बनते हैं, तो मछली पालन करने वाले किसानों की आय में काफी बढ़ोतरी हो सकती है. साथ ही, यह पर्यावरण को सुरक्षित रखने में भी मददगार साबित होगा.
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