अगर आप किसान हैं और अभी भी पुराने तौर-तरीकों से खेती करते आ रहे हैं तो आप बिना रासायनिक दवा और खाद के भी मिट्टी की उत्पादक क्षमता बढ़ा सकते हैं. वहीं, खरपतवारनाशी के बिना भी खेत को खरपतवारों से मुक्त कर सकते है. जी हां, यह सुनकर आपको थोड़ी हैरानी जरूर होगी लेकिन ऐसा संभव है. दरअसल, किसानों को खेती में खरपतवार से सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है. खरपतवार से फसल को बचाने के लिए किसान निराई-गुड़ाई करते हैं लेकिन इसमें खर्च अधिक आता है. लेकिन अब इन खर्चों से बचने के लिए आप अपनी खेतों में मल्चिंग तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं क्या है मल्चिंग तकनीक और क्या हैं इसके पांच बड़े फायदे.
मल्चिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका उपयोग मिट्टी में नमी बनाए रखने, खरपतवारों को नष्ट करने, मिट्टी को ठंडा रखने और सर्दियों में पाले की समस्या से पौधों को सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है. कार्बनिक मल्च धीरे-धीरे टूटने के कारण मिट्टी की संरचना, जल निकासी और पोषक तत्वों को धारण करने की क्षमता में सुधार करने में भी मदद करती है.
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आमतौर पर मल्चिंग दो तरह की होती है जिसमें जैविक और अकार्बनिक मल्चिंग शामिल है. जैविक मल्चिंग- जैविक मल्चिंग का अर्थ है इसमे पौधों को ढकने के लिए फसलों की पराली, पेड़ों की पत्तियां, घास की कतरन इत्यादि का उपयोग किया जाता है. इसे प्राकृतिक मल्चिंग भी कहा जाता है. यह बहुत ही सस्ती होती है. इस विधि द्वारा आप बहुत कम खर्च में अपनी फसलों को खरपतवार मुक्त रख सकते हैं. अकार्बनिक मल्चिंग में पॉलीथीन, कपड़ा और ग्रीन नेट की परत चढ़ाई जाती है.
अगर आपको मल्चिंग विधि से खेत में सब्जी लगानी है, तो सबसे पहले खेत की अच्छी तरह जुताई कर लें. इसके साथ ही गोबर की खाद मिट्टी में मिला दें. उसके बाद खेत में उठी हुई मेड़ यानी बेड बना लें. इसके बाद ड्रिप सिंचाई की पाइप लाइन को बिछा दें. उसके बाद प्लास्टिक मल्च को अच्छी तरह बिछाकर दोनों किनारों को मिट्टी की परत से अच्छी तरह दबा दें. मल्चिंग पेपर पर गोलाई में पाइप से पौधों से पौधों की दूरी पर छेद कर दें. इसके बाद आप अपने बीज या पौधे की बुवाई कर दें.
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