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किसान-Tech: ना जुताई का खर्चा, ना खेत तैयार करने का झंझट, जीरो टिलेज खेती के बारे में जानें सबकुछ

किसान-Tech: ना जुताई का खर्चा, ना खेत तैयार करने का झंझट, जीरो टिलेज खेती के बारे में जानें सबकुछ

ऐसे वक्त में जब किसान खेती की लागत घटाने और अधिक से अधिक श्रम और समय बचाने की कोशिश में हैं, जीरो टिलेज खेती एक दम सही तकनीक है. फार्मिंग की इस पद्धति में खेती भी किफायती होती है और मिट्टी भी सेहतमंद रहती है. आइये जानते हैं बिना जुताई की खेती से जुड़ी हर जरूरी बात.  

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जीरो टिलेज खेती जीरो टिलेज खेती

ये वो वक्त है जब ज्यादातर किसानों की रबी की फसल कट चुकी है और अब या तो खेत खाली हैं या फिर किसान भाई अगली फसल के लिए खेत तैयार करने का सोच रहे हैं. लेकिन अगर हम आपसे ये कहें कि आपको अब अगली फसल की बुआई के लिए खेत ना तो जोतने की जरूरत है और ना ही इसे अलग से तैयार करने में लागत लगानी पड़ेगी. किसान टेक की इस सीरीज में हम आपको खेती की ऐसी ही एक टेक्नोलॉजी के बारे में विस्तार से समझाएंगे जो ना सिर्फ आपकी अगली खेती किफायती बनाने में मदद करेगी बल्कि अच्छा खासा मुनाफा भी दिला सकती है. साथ ही हम आपको ये भी बताएंगे कि जीरो टिलेज फार्मिंग या नो-टिल फार्मिंग की क्या जरूरत है, इससे कैसे मिट्टी का कटाव कम किया जा सकता है, जीरो टिलेज खेती कैसे की जाती है और इसके क्या नफा-नुकसान हैं? ये सब कुछ हम आपको आगे बताने वाले हैं.

क्या है जीरो टिलेज फार्मिंग?

इसे आसान भाषा में ऐसे समझिए कि अगर आप बिना जुताई के या बगैर खेत तैयार किए ही बुआई कर लेते हैं तो उसे शून्य जुताई या फिर नो-टिल खेती कहते हैं. इस तकनीक में किसान बीज को ड्रिलिंग की मदद से सीधे मिट्टी के अंदर रोप देते हैं. इसके लिए बाकायदा मशीनें आती हैं जो ट्रैक्टर में लगाकर बीज को खेत में बिना जुताई किए ही बो देते हैं. खेती की ये तकनीक पारंपरिक टिलिंग फार्मिंग से एक दम अलग है और यह किसानों के लिए बेहद किफायती भी है. हालांकि जीरो टिलिंग की तकनीक से सभी तरह की फसलें नहीं की जा सकतीं, इसकी कुछ सीमाएं भी हैं. इसके अलावा इस तरह की फार्मिंग से किसानों का खेत तैयार करने में लगने वाला पानी, जुताई का खर्चा और समय भी बहुत बच जाता है.

जीरो टिलेज फार्मिंग की जरूरत

अगर वक्त में पीछे जाकर देखा जाए तो भारत में जीरो टिलेज फार्मिंग या नो-टिल खेती 1960 के दशक से ही शुरू हो चुकी थी, लेकिन इसका जिस तरह से विस्तार होना चाहिए था, उस तरह हुआ नहीं. जब देश ने हरित क्रांति का दौर देखा तो उत्तर-पश्चिमी भारत में गेहूं और चावल का बेतहाशा उत्पादन हुआ. इससे क्रांति से देश की भूख तो मिटी लेकिन मिट्टी कुपोषित होने लगी. इसके लिए खेतों में रसायनयुक्त खाद और कीटनाशक डाले गए जिसके परिणामस्वरूप मिट्टी के कटाव, बेअसर जल प्रबंधन, भूमि का क्षरण और मिट्टी के पोषक तत्व कम हो गए.

लिहाजा इस चुनौती की गुड़ाई करने के लिए नो-टिल खेती या जीरो टिलेज फार्मिंग का विकास किया गया. इसके तहत बिना खेत तैयार किए और बिना जुताई के ही गेहूं की ड्रिलिंग करके बुआई की जाने लगी. गेहूं के अलावा जीरो टिलेज पद्धति से सरसों, तिल और फलियां सहित कई तरह की फसलों की बुआई की जा सकती है. जीरो टिलेज खेती ऐसे इलाकों के लिए बेहद कारगर है जहां ढलान वाले खेत हैं या फिर जहां रेतीली या सूखी मिट्टी है. ऐसे खेतों में इस तकनीक से मिट्टी के कटाव को कम करने में मदद मिलती है. बिना जुताई वाली खेती की इस तकनीक से मिट्टी की गुणवत्ता और उर्वरता में भी बेहतरी होती है. इतना ही नहीं इससे मिट्टी में जैविक क्रिया और कार्बन पदार्थों की भी पर्याप्त मात्रा बढ़ती है जिससे केमिकल फर्टिलाइजरों की जरूरत घटती है.

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बिना जुताई वाली खेती के फायदे

  • जीरो टिलेज फार्मिंग का सबसे पहला फायदा तो यही है कि ये खेती की लागत को कम करती है और किसानों के पैसे बचते हैं.
  • इससे मिट्टी की नमी बचाने में मदद मिलती है और साथ ही खेत तैयार करने के लिए अलग से सिंचाई की जरूरत नहीं होती.
  • नो-टिलिंग तकनीक से मिट्टी का कटाव कम करने में भी मदद मिलती है.
  • खेती का यह तरीका नम इलाकों में ज्यादा कारगर है जहां, हवा और पानी के कटाव की संभावना ज्यादा रहती है.
  • इसके अलावा, मिट्टी की बार-बार जुताई ना होने के कारण उसके अंदर के पोषक तत्व भी बचे रहते हैं और कार्बन तत्वों की क्रिया भी नहीं टूटती.
  • जीरो टिलेज की वजह से मिट्टी में रहने वाले जीव, जैसे केंचुए और अन्य मित्र-बैक्टीरिया भी जिंदा रहते हैं. जो फसल की सेहत बढ़ाते हैं.
  • बिना जुताई की खेती से मिट्टी की जैविक सेहत में सुधार होता है और ये उपजाऊ भी बनती है.
  • नो-टिलिंग पद्धति के कारण खेत जोतने और इसे तैयार करने में लगने वाला वक्त भी बचता है.

जीरो टिल खेती के कुछ नुकसान

  • बिना जुताई के फसल बोने के लिए अलग से मशीन की जरूरत होती है, जिसकी शुरुआती लागत अधिक होती है.
  • चूंकि खेत की जुताई नहीं होती है, इससे खरपतवार भी बढ़ने लगती है. इससे निपटने के लिए नियमित रूप से खेतों में दवाओं का छिड़काव करना पड़ता है.
  • जब कोई किसान जुताई वाली पारंपरिक खेती छोड़कर बिना जुताई वाली खेती पर आता है तो इसके परिणाम दिखने में समय लगता है.
  • इस तरह की खेती पद्धति से पौधों में रोग फैलने की संभावना थोड़ी ज्यादा रहती है.  
  • लंबे समय तक खेत की जुताई ना होने के कारण पानी की नालियों को लगातार संवारना पड़ता है.

नो-टिल फार्मिंग कैसे करें?

शून्य जुताई तकनीक का मकसद केवल इतना है कि मिट्टी की मूल संरचना को कम से कम बिगाड़ा जाए और फसल की बुआई कर दी जाए. इसके तहत मिट्टी में सीधे वहीं छेद किया जाता है जहां बीज डाला जाना है. कुछ विशेष उपकरणों की मदद से मिट्टी में खांचे बनाए जाते हैं और उनमें तुरंत बीज बो कर ढक दिया जाता है. जीरो टिलेज तकनीक के लिए कुछ विशेष मशीनों का जरूरत होती है-

  • सीडर मशीन
  • ड्रिलर
  • डिस्क हल
  • डिस्क हैरो
  • रोटावेटर

भारत में बिना जुताई की खेती की स्थिति

गंगा के मैदानों में जहां गेहूं और चावल की खेती की जाती है, वहां जीरो टिलेज खेती प्रचलित है. इस तकनीक का उपयोग आंध्र प्रदेश के दक्षिणी जिलों में चावल के अलावा मक्का की फसल में भी किया जाता है. बिना जुताई की खेती खरीफ की फसलें जैसे- धान, मक्का, सोयाबीन कपास, अरहर, मूंग और बाजरा आदि के लिए मुनासिब है. इसके अलावा खेती की यह तकनीक रबी की फसलें जैसे- गेहूं, चना, सरसों और मसूर के लिए कारगर है. देशभर में जीरो टिलेज खेती के लिए कई तरह के उपकरण भी उपलब्ध हैं जिन पर राज्य एवं केंद्र सरकार उचित सब्सिडी भी देती है.

(स्वयं प्रकाश निरंजन की रिपोर्ट)